जैन्कु असली नौं क्या थौ, क्वी नि जाणदु,
कोसी अर् रामगंगा का, बीच कू इलाकु,
जख गोर्ख्यौन अत्याचार करिन,
वींकी बहादुरी की बात, आज भी माणदु.
जल्लाद गोर्ख्याणि जब, काळी कुमौं मा,
सल्ट की बस्तियौं मा ऐन,
लोग उन अत्याचार करिक,
तड़फैन अर् सतैन.
दूधि पेंदा छ्व्ट्टा बच्चा, जल्लाद गोर्ख्यौन,
ऊख्ल्यारा कूटिन, लोगु की सम्पति लूटिन,
ज्वान नौना नौनी ऊन, दास दासी बणैन,
कुछ बेचि थूचिन, कुछ नेपाल ल्हिगिन.
जगदेई की कोलिण कामळी बुणदि थै,
ऊंका खातिर, जू गोर्ख्यौ की डौर कु,
लुक्यां था लखि बखि बणु मा,
जान बचौण का खातिर, कोल्यूं सारी,
जगदेई का नजिक, सल्ट क्षेत्र मा.
जगदेई की कोलिण,
जलख अर् जमणी का बीच,
अपणी झोपड़ी का ऐंच,
एक ऊंचि धार मा गै,
बदनगढ का पार, हो हल्ला सुणिक,
सल्ट जथैं उठदु धुवाँ देखिक,
ग्वर्ख्या आगीं-ग्वर्ख्या आगीं,
जोर-जोर करिक भटै.
कोलिण कू भटेणु सुणिक,
द्वी जल्लाद गोरख्या सिपै,
झट्ट वख मू ऐन,
कोलिण का कंदुड़,
नाक अर् स्तन काटिक,
अपणी राक्षसी प्रवृति का,
क्रूर कर्म दिखैन.
कोलिण का प्राण, पोथ्लु सी ऊड़िगैन,
जल्लाद गोरख्या सिपैयौन,
कोलिण की लाश, झोपड़ी भीतर धोळि,
झोपड़ी फर आग लगाई,
उत्तराखंड की महान वीरांगना,
"जगदेई की कोलिण",
राखु बणिक ऊठ्दा धुवां मा समाई.
सत्-सत् नमन त्वैकु, जगदेई की कोलिण,
तू थै उत्तराखंड की शान,
याद रख्लि जुग-जुग तक,
उत्तराखंड की धरती अर् लोग,
तेरु महान बलिदान.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
30.7.2009
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