कवि ने देखा पेड़ के ऊपर,
बैठि एक हिल्वांस,
कैसे है बास रही,
हो रहा सुखद अहसास.
बांज बुरांश का जंगल है,
बह रही है बयार,
ठंडी हवा में झूम रहे,
दूर दूर देवदार.
प्रकृति का सुखद नजारा,
लग रही है ठण्ड,
चित्रण कर रहा कवि,
जहाँ हैं उत्तराखण्ड.
हिंवाळि काँठी दिख रही,
मारी आपस में अंग्वाळ,
देखना हो कवि मित्रों,
चलो कुमौं अर् गढ़वाळ.
अब बताता हूँ वो पंछी,
गा रहा मीठा गीत,
कानों में है गूँज रहा,
मधुर शैल संगीत.
कल्पना में देख रहा हूँ,
अपना प्यारा पहाड़,
"पहाड़ का पंछी" उड़ रहा,
जहाँ हैं जंगल झाड़.
शहरी जीवन भोग रहे,
मन में है एक आस,
बद्रीनाथ जी कब दूर होगा,
कठिन दुखद प्रवास.
पहाड़ प्रेम में डूबा,
कसक में कवि "जिज्ञासू"
आये याद पहाड़ की,
मत बहाना आंसू.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
28.7.2009
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments