डांडी-कांठी सेयिं छन जुन्याळि रात मा....
जोन गैणा बिळ्म्याँ छन छ्वीं बात मा....
जैन्का स्वामी परदेश होयिं ऊदास,
सोचण लगिं फुर्र उड़ि जौं स्वामी का पास,
झळ-झळ जोन हेरि, होंणि ऊदास.......
कब आला स्वामी घौर, लगिं छ सास...
मुल-मुल हैंसंणी जोन आधी रात मा...
वीं तैं हेरि-हेरि बोन्नि काळी रात मा....
स्वामी तेरा झट्ट आला मै तैं हेरणा,
जन तू देखणी छैं मैकु वनि देखणा,
रैबार देणा त्वैकु नि होंणु उदास,
जब आलि बग्वाळि तब औलु तेरा पास.
"जुन्याळि रात" मा होन्दु मन ऊदास,
दूर छन जौंका स्वामी नि छन पास....
डांडी-कांठी सेयिं छन जुन्याळि रात मा....
जोन गैणा बिळ्म्याँ छन छ्वीं बात मा....
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
10.8.2009
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