कोई भी उत्तराखंडी कभी, नहीं रह सकता है बेरोजगार,
सिर्फ, समझ की कमी है हमारी, जो है जीवन का आधार.
आपको लग रहा होगा अटपटा, सोच करती है कमाल,
क्या कमी है उत्तराखंड में, जहाँ है कुमायूं और गढ़वाल.
अगर, बाहर के व्यक्ति वहां, काम करके हो रहे मालामाल,
तुम हो नौकरी की तलाश में, चाहे हो जाएँ अपने फटे हाल.
लिखना पढना ज्ञान के लिए, हर इंसान के लिए है जरूरी,
दूर करो अज्ञान के परदे को, सोचो, फिर क्या है मजबूरी?
पहाड़ पर पर्यटक हर साल, लाखों की संख्या में घूमने जाते,
पहाड़ के पारंपरिक उत्पादों को बेचकर, उनसे पैसा क्योँ नहीं कमाते?
पहाड़ पर जब आता है पर्यटक, बहुराष्टीय कम्पनी के उत्पाद खाता पीता,
पहाड़ की वादियों में फाइव स्टार संस्कृति पर, पैसा लुटाकर लौटता रीता.
लुप्त होते पहाड़ के कुटीर उत्पादों का, तकनीकी ज्ञान लेकर उद्योग लगाओ,
कर्महीन नहीं, ईमानदार और मेहनती बनो, जीवनयापन के लिए पैसा कमाओ.
नौकरी कभी नहीं होती भली, क्योँ कसिस भरा जीवन अपनाओ,
कहता है कवि "जिज्ञासु" आपको, स्वरोजगार करो और कमाओ.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू" (दूरभास:9868795187)
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
२५.८.२००९,
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