जोगियूँ कि टोली घुमद घुमद कै गाऊ क पास पहुची जख कोइ थॊकदार जी अप्णॊ नै घर छा बणणा ! जनी चॊक मा गैनी एक जोगील बोली ..
"---- जजमान सुखी रा .. घर अन्न ध्न्न से भुरियू रा ! "
थोकदारजील आसण बिछाई, उथै बोली " __ बैठा , आप त सिध पुरुष छावा .. जर मारु हथ त देखा धॊ ?"
जॊगिल उकु हथ पकडी ह्थ्गुली थै गौर से देखी क्य बोलि ----
"--- भै ... जजमान एक बात बोलु , ? "
जज्मान बोली .. " बोलो साब ब्वाला .. बे झिझ्क से ब्बाला "
" तेरी रेखा बतोणि छी कि ‘त्वैम पैसॊ कि क्वी कमि नि न.. त्वैमु त पैसै पैसा राला .. "
वैल घडैक जोगीकु मुख देखी , अर बोली .. " ठीक छा बुना ...सत बचन ..! " बडी मुश्किल से त, एक रुप्या आन्द ! अर वोभी थोडा देर मा
रैजगरीम याने चैन्ज्म बद्लि जान्द ! ९९ से क्भी उबु हि नि गै ! उठी , भितर बिटि एक चवनी लैकि उथै देकी बोलि .." ल्याव आपै भैट .!."
जोगिल देखि बोली यु क्या .. चवनी ..??? "
वो बोली ".._ लगद च की मेरी अर तुमरी रेखा एक जनी छ्न .. ७५ पैसा ऒरी मिलैक एक कल्दार ब्णै लिया ! "
परासर गौड
अगस्त १९ दिन्मा १२ ५० प्र
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