गड्वाली की साहित्य बोली/भाषा थै सिख्ण का वास्ता वख की सरकारल एक इनो प्रोग्राम शुरू करी की ,जो भी गढ़वाली कै भी बिसय माँ परीक्षा थै पास कारलू अर जू भी, छुम्मा बौ पर , सोध या पी एच डी कारलू
उथै अबोध जी की तीन नाटक दिए जाला ! दगडा दगडी वेथै " गढ़ वा गढ़वाली कु महाप्राण " की उपाधि दिए जाली ! अर साथ माँ बिदाई समारोह का दिन चखल पखल जू जतका पे साक .. छ्मोटन , गिलासुल, तोलोल जैकू जू छंद हो, बिना रोक टोक का खाई पे सकालू ! हे भी, ----- जनी ये घोषणा ह्युवे .. कालेजू का दरवाजो पर भीड़ पर कनी भीड़ आया ताबा की क्या बुन ! बाजा बाज त रात ही ऐगे छा की , न ह्यवा कखी मेरु नंबर नि आयु !
सरकारल अपनों काम कदे अर अब स्कुल को उका अध्यापको कु छो .. झूट नि बुनू साब .. उन भी कुवी कसर नि छोडी गडवाल अर गड्वाली नौ पर रोटी सिक्णै अर खाणिपैणी ! ग़ ड वा ल नौ की सर्तकता
उनकी नजर में क्या छै, वो यु रेगी >>>>
ग़ से ...... गल घुली दे, ये का वास्ता आई .. द्यली पैसी
ड ..से .. डकार तक नि ले .. साब !
वा .से वाह वाह करद करद नि थकीनी वो
ल ..से .. ल्याचा नि लगा जब तक वे प्रोग्रामा का
साल समाप्त हुवे ! बिदाई समारोह माँ बिध्यारथियुं न छ्क्वे पे .. बाजा बाज चित .. बड़ी मुस्किल से खडा करए गीनी टी बी वाल्लोने पूछी " कैसा लग रहा है "
" है ,, क्या ??? .."
" मैंने कहा .. एसे समारोह के बारे में आप क्या सोचते है "
" रोज होने चहिये .. "
हां ' --- खाओ पीओ .., ' भाड़ में जाए उपाधी सिपाधी ... मै तो कहता हूँ इस प्रोग्राम का नाम ही खाओ पीओ होना चाहिए ! जनि बोली , पतडम भुइम पोडिगे !
Copy Right@परासर गौड़ १३ अगस्त ६.५० बिखुन
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