उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Thursday, August 6, 2009

पुनर्जन्म

कल्पना में हो गया,
बन गया मैं बाघ,
पहुंचा फिर उत्तराखंड में,
अपने गाँव को भाग.

देखा मुझे मेरे पोते ने,
हल्ला खूब मचाया,
भगाओ इस बाघ को,
यहाँ कहाँ से आया.

नहीं भागा मैं गाँव से,
बैठा, जहाँ लगता मंडाण,
मारा सबने लाठी से,
हो गया मैं हन्टाण.

मूक हो सब कुछ सहा,
सबका था मैं पित्र,
बहुत बूढा था उनमें,
मेरा एक प्रिय मित्र.

उसने रोका सबको,
करो न ऐसा काम,
"पुनर्जन्म" हुआ हो,
किसी पित्र का,
रहा हो यही ग्राम.

बात मान ली ग्रामवासियौं ने,
जैसा बूढे प्रिय मित्र ने बताया,
फिर तो क्या था हर ग्रामवासी,
मेरे लिए खाना पीना लाया.

खूब खाया पिया मैंने,
जाने को कदम बढाया,
आने देना इस बाघ को,
सबने सोचा, मन बनाया.

फिर तो क्या था,
जाता रहता, अपने प्यारे गाँव,
देख प्रेम ग्रामवासियौं का,
रूकते नहीं मेरे पांव.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
31.7.2009

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments