Monday, August 3, 2009
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
न चाहती धन-दौलत न कोई गहना
आकर पास बैठ, दो बोल मीठे सुनाना
अब न बनाना फिर से कोई बहाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
गाँव के खेत-खलियान तुम्हें बुलाते हैं
कभी खेले-कूदे अब क्यों भूले कहते हैं
जरा अपना बचपन का स्कूल देखते जाना
अपने बचपन के दिनों को याद करना
भूले-बिसरे साथियों की सुध लेते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
गाँव-घर छोड़ अब तू परदेश जा बसा है
बिन तेरे घर अपना सूना-सूना पड़ा है
बूढ़ी दादी और माँ का भी यही कहना है
अपने परदेशी नाती-पूतों को देखना है
आकर घर हसरत उनकी पूरी करना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
खेती-पाती में अब लोगों का मन कम लगता है
गाँव में रहकर उन्हीं शहर का सपना दिखता है
उजडे घर, बंजर खेती आसूं बहा रहे हैं
कब सुध लोगे देख आसमां पुकार रहे हैं
आकर अपनी आखों से हाल देखते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
गाँव के बूढे बुजुर्ग याद करते रहते हैं
सभी नाते रिश्तेदार भी पूछते रहते हैं
क्यों नाते रिश्तों को तुम भूल गए हो!
जाकर सबसे दूर परदेशी बने हुए हो
आकर सुबकी खबर सार लेते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
कविता रावत
भोपाल
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Kavita
ReplyDeleteAapane rula diya.
man ko bahut sakoon
mila ki abhi bhi dard
baaki hai kuch garwali
bhai bahino ke man mein.
Aapako rakhi ki subh
kamnai.
Adar Sahit
B.P. NAITHANI
NEW DELHI
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bp_naithani@hotmail.com