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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, September 29, 2010

अतीत उबरी यनु थौ

रज्जा का जमाना मा, जनतान बिगार बोकी,
होणी खाणी कनुकै होण, शिक्षा कू विकास रोकी.

जनता का खातिर रज्जा, बल बोलान्दु बद्रीनाथ थौ,
अनपढ़ जनता कू भाग, संत्री-मंत्रियों का हाथ थौ.

आजादी का बाद भी, लोग भूखा तीसा रैन,
आस अर औलादन, कंडाळी,खैणा-तिमला खैन.

लाणु पैन्नु यनु थौ, टल्लौं मा टल्ला लगौंदा,
रात सेण कनुकै थौ, खटमल, ऊपाणा खूब तड़कौन्दा

उबरी बाटौं कू हिटणु थौ, सैणी सड़क दूर थै,
जख भी जाण हिटिक, जनता भौत मजबूर थै.

आजादी का बाद पाड़ मा, सब्बि नौना नौनी स्कूल गैन,
शिक्षा प्राप्ति का बाद, रोजगार का खातिर प्रवासी ह्वेन.

विकास की बयार बगि, अब यनु निछ पहाड़ मा,
अतीत उबरी यनु थौ, अब मनखी कम छ पाड़ मा.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(२८.७.२०१०)
दिल्ली प्रवास से.....

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