गौळा फर हरेक मनखी का,
बध्याँ छन बंधन,
जौंका फेर मा अल्झ्युं छ,
यीं दुनियाँ का जाळ मा,
कुछ मनखी पहाड़ का हम,
प्रदेश मा रूमणाणा छौं,
मन भटकणु छ कखि,
वे प्यारा कुमौं अर गढ़वाल मा.
रात दिन सोचणा छौं,
कब निब्टलि प्रदेश की जिंदगी,
तब जौला "मुण्ड निखोळु" करिक,
अपणा प्यारा मुल्क,
रौला सुखि हाल मा,
देवभूमि उत्तराखंड का,
प्यारा कुमौं अर गढ़वाल मा.
जागणा होला हमतैं,
अपणा मुल्क का प्यारा,
घन्ना, मंगतु अर मोळु,
हमारा मन भी उलार छ,
कब होलु "मुण्ड निखोळु".
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(यंग उत्तराखंड और मेरा पहाड़ पर प्रकाशित और सर्वाधिकार सुरक्षित)
दिनांक: ७-९-२०१०
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments