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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, September 29, 2010

Young Uttarakhand Career Guidance Camp - Report

इस कैंप की विस्तृत जानकारी देने से पहले मैं पूरी यंग उत्तराखंड टीम और पूरे उत्तराखंड वाशियों की तरफ से अपने उन सभी भाई, बहिन, माता-पिता और बुजुर्गों को श्रन्धाजली अर्पित करता हूँ जिन्होंने उत्तराखंड और देश के अन्य शहरों में चल रही प्राकृतिक आपदा में अपनी जान गवाईं है. भगवान् सभी मृत आत्माओं को स्वर्ग में शांति प्रदान करे.

कैरियर गाईडेंस कैंप

दिल्ली स्थित उत्तराखंडी प्रवासियों की एक सामाजिक संस्था "यंग उत्तराखंड " समय समय पर विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों का क्रियान्वयन करती रहती है जिसका उधेश्य केवल उत्तराखंड के जन समूह का सर्वागीण विकास करना है. यंग उत्तराखंड उत्तराखंड की लोक संस्कृति, साहित्य, समाज और उत्तराखंड के लोक कल्यांर्थ हेतु समय समय पर अपनी कार्यक्षमतानुसार विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करती रहती है. इसी कड़ी में एक सामजिक कार्य जिसको "करियर गाईडेंस कैंप" का नाम दिया गया का आयोजन समय समय पर उत्तराखंड के दूरस्थ ग्रामीण क्षत्रों के विद्यालयों में आयोजित करता है, जिसका उधेश्य आने वाली नौजवान पीढ़ी जो अभी अपने शैक्षिक अवस्था में हैं, को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में उपलब्ध विभिन्न अवसरों से परिचित करवाना है.

हर वर्ष की भांति भी इस वर्ष यंग उत्तराखंड संस्था द्वारा गत १८ सितम्बर २०१० को पौड़ी जिल्ले के जी आई सी इंटर कॉलेज में एक कैरियर गाईडेंस कैंप का आयोजन किया गया. झे एक श्लोक याद आ रहा है, जो अपने आप में एक सभ्य और शैक्षिक समाज के लिए बहुत कुछ कह जाता है.

न चोरहार्यं न च राजहार्यम
न भ्रातभाज्य न च भारकारी
ब्यये कृते वर्धत एव नित्यं
विद्या धनं सर्व धनं प्रधानम


वास्तव में विद्या रुपी धन का जिस्तना ब्यय किया जाय उसका वर्धन उतना ही होता जाता है. इसी विद्या रुपी धन को बाटने के लिए यंग उत्तराखंड संस्था इसका आयोजन कैरियर गाईडेंस कैंप के रूप में आयोजित करती है.

उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में कैरियर गाईडेंस कैंप की आवश्यकता क्यों?

आज के सूचना प्रोद्योकिकी युग को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आज हम सभी दुनिया में क्या घट रहा है, क्या क्या नयी टेक्नोलोजी आ रही है, सभी लोग इससे परिचित होंगे. जहाँ कंप्यूटर, मोबाइल, टी वी ने आज हमारे घरों में अपनी पहुच बना दी है जो कि आज हमारी दैनिक दिनचर्या का एक अभिन्न अंग भी बन गया है. ये प्राय देखने को मिलता है कि दिल्ली और देश के अन्य बड़े शहरों में निवास करने वाले सक्षम लोगों के घर बच्चा बाद में जन्म लेता है और उसके मनोरंजन की सामाग्रियों का जुटना पहले ही शुरू हो जाता है. भारत के बड़े शहरों में रहने वाले उच्च और माध्यम वर्ग के अभिवावक जहा बच्चे के जन्म के बाद ही उसके भविष्य, उसकी शिक्षा और उसके कैरियर के लिए चिंतित दिखाई देते है यकीन मानिए ऐसा हमारे उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के अभिवावकों में ऐसी अनुभूति बहुत कम देखने को मिलती है. जहाँ बड़े शहरों में अभिवावकों द्वारा बच्चे के नर्सरी में दाखिला लेने के बाद ही उनको एक लक्ष्य बोधित कराया जाता है कि बेटा/बेटी आगे चलकर तुम्हे अमुक चीज बननी है और हमारा नाम रोशन करना है, वही हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता है. बच्चा स्कूल में दाखिला लेता है, बच्चा स्कूल में क्या करता है, क्या पढता है, इसकी सुध लेने की शायद कोइ भी अभिवावक कोशिश करता होगा मैं ये निश्चित होकर नहीं कह सकता. शायद ये जागरूकता की कमी है या कोई अन्य कारण, इस पर मंथन की सक्थ आवश्यकता है. एक ग्रामीण वातावरण में पला बढ़ा होने के कारण और वही से शिक्षा ग्रहण करने के अपने अनुभव के आधार पर मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को इतना पता जरूर होता है कि ८वी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ९वीन में साईंस लेना है (भले वो उस काबिल हो या न हो), १०वी और १२वी में प्रथम आना है, किसी का उद्देश्य केवल १०वी १२वी को पास करना होता है, आगे जाकर बी ऐ, बी एस सी और एम् ऐ, ऍम एस सी करना है और उसके बाद बी एड. यही उनका कैरियर गोल होता है. जो मेरा अनुभव कहता है, वो बस यही कहता है . अब आप लोग समझ सकते हो कि क्यों हमको इन क्षेत्रों में कैरियर गाईडेंस कैंप लगाने की आवश्यकता है.

जी आई सी नौगाँव खाल कैरियर गाईडेंस कैंप - संक्षिप्त परिचय:

जैसा मैंने पहले कहा कि गत १८ सितम्बर २०१० को यंग उत्तराखंड संस्था द्वारा जी आई सी नौगाँव खाल पौड़ी गढ़वाल में एक कैरियर गाईडेंस कैंप का आयोजन किया गया जिनमे प्रतिभाग करने वाले लोगों के नाम इस प्रकार है -


१. सर्व श्री चंद्रकांत नेगी जी
२. सर्व श्री विपिन पंवार
३. सर्व श्री मनु रावत
४. सर्व श्री सुशील सेंदवाल
५. श्रीमती कीर्ति सेंदवाल
६. सर्व श्री आशीष भाटिया
७. सर्व श्री आशीष पांथरी
८. सुभाष काण्डपाल


यंग उत्तराखंड की ८ सदस्यीय टीम में १७ सितम्बर २०१० रात्रि १० बजे दिल्ली से अपनी यात्रा शुरू की जिसमे ३ वर्षीय एक छोटी से बच्ची ( सर्व श्री सुशील सेंदवाल जी की बिटिया) भी शामिल थी जो हमारी इस जोखिम भरी यात्रा का साक्षी बनी

चिर सजग आंखें उनींदी, आज कैसा ब्यस्त बाना
जाग तुझको दूर जाना
अचल हिमगिरी के ह्रदय में आज चाहे कंप हो ले
या प्रलय के आंसुओं में मौन अलसित ब्योम रो ले
आज पी आलोक को डोले तमीर की घोर छाया
जाग या विद्युत शिखाओं में निठर तूफ़ान बोले
पर तुझे है नाश पथ पर चिह्न अपने छोड़ जाना जाग तुझको दूर जाना



कवि की इन पंक्तियों का स्मरण करते हुए, ये जानते हुए भी कि आजकल उत्तराखंड में सफ़र तय करना उचित नहीं है, प्राकृतिक आपदाओं से विप्पित उत्तराखंड जहाँ तहां केवल त्राही ही त्राही नजर आ रही है फिर भी यंग उत्तराखंड की ८ सदस्यी टीम चल पडी अपनी मंजिल की ओर. कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से गुजरते हुए (जिसका वर्णन रिपोर्ट के अंत में जरूर करूँगा) टीम १२ बजे के लगभग जी आई सी नौगाँव खाल के प्रांगण में पहुची, जहा पर विद्यालय के प्रधानाचार्य द्वारा अपने विद्वान गुरुजन वर्ग और और विद्यालय के छात्रों के साथ यंग उत्तराखंड टीम का स्वागत किया गया.


प्रारंभिक स्वागत के उपरांत सभी टीम सदस्य कैंप की तैयारी में जुट गए. कुछ समय बाद १०वी और १२वी के छात्रों को एक सभागार में एकत्रित कर टीम के वरिष्ट सदस्य माननीय श्री चंद्रकांत नेगी जी द्वारा यंग उत्तराखंड संस्था का परिचय छात्र छात्रों और विद्वत गुरुजन वर्ग के साथ करवाया. तदुपरांत श्री नेगी जी ने कैरियर गाईडेंस कैंप की और छात्रो को कैरियर के प्रति सजग रहने की मह्तता पर प्रकाश डाला.

तदुपरांत श्रीमती कीर्ति सेंदवाल जी ने कंप्यूटर शिक्षा के बारे में छात्रों को विस्तृत जानकारी प्रदान की. कंप्यूटर क्षेत्र में शिक्षा और रोजगार के अवसरों पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करते हुए छात्रों को कंप्यूटर क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए प्रेरित किया. साथ ही साथ चिकित्सा के क्षेत्र में शिक्षा और कैरियर के बारे में छात्रों को विस्तृत जानकारी प्रदान की. छात्र बड़ी तन्मयता और नोटबुक को साथ लेकर श्रीमती कीर्ति सेंदवाल जी को सुन रहे थे और मैं बीच में देख रहा था कि कई बच्चे साथ साथ में अपनी नोटबुक में कुछ कुछ बातें नोट कर रहे थे, जो कि एक अच्छा संकेत दिखाई दे रहा था.


तदुपरांत श्री चंद्रकांत नेगी जी ने छात्रों को आत्म विश्वास के महत्व के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की और और छात्रों को अपना आत्म विश्वास बढाने के लिए प्रेरित किया.
तदुपरांत श्री सुशील सेंदवाल जी ने छात्रों को प्रबंधन क्षेत्र (मैनेजमेंट) में शिक्षा और रोजगार की असीम संभावनाओं के बारे में अवगत करवाया. इसके साथ ही श्री सेंदवाल जी ने आज के प्रतियोगी युग में अंग्रेजी शिक्षा का ज्ञान और उसके महत्व के बारे में छात्रों को विस्तृत जानकारी प्रदान की.


तदुपरांत श्री आशेष भाटिया जो मूलरूप से उत्तराखंडी न होकर भी जिन्होंने हमारे कैंप को ज्वाइन किया. श्री आशीष भाटिया जी ने आई आई टी के टोपर और आई आई टी कानपुर के स्वर्ण पदक विजेता रहे है. श्री आशीष भाटिया जी ने इंजीनियरिंग क्षेत्र में शिक्षा और रोजगार के बारे में छात्रों को विस्तृत जानकारी प्रदान की. साथ ही साथ में विभिन प्रकार की इंजीनियरिंग प्रतिगोगी परीक्षाओं की तैयारी किस प्रकार करनी चाहिए इसकी जानकारी भी छात्रों को प्रदान की. सभी छात्र बड़ी तन्मयता होकर श्री भाटिया जी को सुन रहे थे और मैं देख रहा था कि कैंप के बाद भी कई छात्र ब्याक्तिगत रूप से श्री भाटिया जी से कैरियर के बारे में गुफ्तगू कर रहे थे.

तदुपरांत श्री आशीष पांथरी जी ने विभिन प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेसिक शैक्षिक योग्यता और प्रतियोगी फॉर्म के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की

तदुपरांत टीम के अन्य सदयों द्वारा एक सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया

सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता आयोजन का उधेश्य:

छात्रों को वर्तमान सम सामयिकी पर नजर रखने और विभिन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने की ओर मुखरित और प्रेरित करने के लिए यंग उत्तराखंड टीम ने अपने सदस्यों और विद्यालय के गुरुजन वर्ग की देख रेख में २५ मिनट की एक छोटा सी प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया. इस प्रतियोगी परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त करने वाले जो तीन छात्र थे उनके नाम इस प्रकार है:

1st पवन पांथरी
2nd. प्रीतम बिष्ट
3rd. विनीत नौटियाल

विजेता छात्रों के उत्साह वर्धन हेतु पारुतोशिक रूप में हर एक बच्चे को एक एक शील्ड प्रदान की गयी जो कि हर एक बच्चे के लिए प्रेरणा का काम करेगी, ऐसा हमारा विश्वास है


छात्रवृति प्राप्त करने वाले छात्र:

यंग उत्तराखंड संस्था द्वारा कुछ आर्थिक रूप से अक्षम छात्रों को आर्थिक मदद के रूप में छात्रवृति प्रदान की गयी जिनके नाम इस प्रकार है:

१. विनीत नौटियाल (12th)
२. प्रकाश सिंह (11th)
३. हिना (11th)
४. कुलदीप सिंह (11th)
५. श्रवण सिंह (11th)

इसके अलवा यंग उत्तराखंड द्वारा कैरियर से सम्बन्धित पुस्तकें स्कूल के पुस्तकालय को दान दी

हम भगवान् से प्रार्थना करते है कि इन बच्चों का भविष्य उज्जवल हो और सुख समृधि का इनके घर में वास हो.

यंग उत्तराखंड संस्था को इस कैंप के सफल आयोजन के लिए दी गयी धन राशी देने वाले दानी दाताओं की सूची:



यंग उत्तराखंड अपने उन तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आर्थिक रूप से सहायता करने वाले उन सभी दानी दाताओं और एक शब्द में कहों तो सहयोग कर्ताओं का दिल से धन्याबाद करते हैं जिनके सहयोग के बिना शायद ये काम मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था.

१. सर्व श्री चंद्रकांत नेगी जी - 5000
२. सर्व श्री गणेश बिजल्वान - 5000
३. सर्व श्री सौरभ नाकोटी - 1000
४. प्रकाश सिंह बिष्ट - 500
५. श्रीमती अलका गोदियाल भट्ट - 2000
६. सर्व श्री जय गुसाई -500
७. गुप्त दान -1000
८. सर्व श्री सुभाष कुकरेती -500
९- सर्व श्री विजय पाल सिंह - 500
१०. श्रीमती अनीता डिमरी -5000
११. सर्व श्री जसदेव सिंह नेगी -1000
१२. सर्व श्री दीपक -500
१३. सर्व श्री आशीष पांथरी 1000
१४. सर्व श्री निर्मल पांडे-500
१५. सर्व श्री प्रताप थाल्वाल 151
१६. सर्व श्री शांतनु सिंह -1000
१७. सर्व श्री पंकज पटवाल -500
१८. सर्व श्री सुशील सेंदवाल - 500
१९. सर्व श्री हेमेन्द्र गुसाई -5000





कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है-

तन से सेवा कीजिये, मन से भले विचार
धन से इस संसार में, करिए पर उपकार.


ऐसी वैचारिक और परोपकारी सोच रखने वालों की आज भी हमारे समाज में कमी नहीं है. एक बार पुनह इन सभी सहयोगकर्ताओं का सहृदय धन्यावाद

समापन समारोह:

कैंप के समापन पर यंग उत्तराखंड टीम के वरिष्ठ सदस्य श्री चंद्रकांत नेगी जी द्वारा विद्यालय परिसर एवं आदरणीय प्रधान्चार्य महोदय और समस्त गुरुजन वर्ग को पूरी संस्था की ओर से धन्यबाद प्रेषित किया गया जो कि उन्होंने संस्था को इस विद्यालय परिसर भी कैंप लगाने का अवसर प्रदान किया. प्रत्युतर में विद्यालय के प्रधानाचार्य द्वारा सभी सदस्यों को धन्यबाद दिया और संस्था द्वारा संचालित ऐसे सामाजिक कार्यों की भूरी भूरी प्रंशंसा की. प्रधानाचार्य महादोय ने भविष्य में भी ऐसे ओर कैंप लगाने का निवेदन संस्था से किया और संस्था के उज्जवल भविष्य की कामना की.



अंतत:

कवि मथिलीशरण जी की २ पंक्तियाँ याद आ रही है-

मैं यहाँ नहीं संदेशा स्वर्ग का लाया
इस पृथिवी को ही स्वर्ग बनाने आया


कितनी बड़ी बात मथिलीशरण गुप्त जी ने इन २ पंक्तियों में कही है, अगर हम सभी लोग इन पंकित्यों का अर्थ समझ ले और उसको आत्म सात करने की कोशिश करें तो जरूर एक दिन यह पृथिवी स्वर्ग बन जाएगी, न कोई भूखा सोयेगा, ना कोई पानी के लिए तरसेगा, न कोई जाड़े की कंपकपाती ठण्ड में ठिठुरता हुआ नजर आएगा, न कोई बच्चा अशिक्षित रहेगा, न कोई केवल इसलिए अपनी मृत्यु को प्राप्त करेगा कि इलाज के लिए उसके पास पैसा नहीं था. एक सभ्य समाज बनेगा, एक संस्कारित समाज बनेगा, एक दयावान समाज बनेगा और सबसे बड़ी बात एक आदर्श राष्ट्र का निर्माण होगा जिसमे ये सभी गुण समायोजित होंगे.

इस प्रकार के शिवरों का आयोजन समाज में एक चेतना जगाने के लिए और एक सुसंस्कृत और शैक्षिक समाज बनाने के लिए इस आशा के साथ किया जाता है कि आने वाली पीढ़ी और समाज को इसका १०गुना होके ब्याज मिले अर्थात उनको इसका १० गुना होके लाभ मिले.

रास्ता है लम्बा
मंजिल है दूर
मिलके चलेंगे मिलके जरूर
हम हैं नए नयी है सोच हम चलेंगे तान के जोश
अब हमें कोई दर नहीं
जब मिलकर चलते है हम सभी



इसी आशा के साथ कि अभी हमारी मंजिल बहुत दूर है, हमें अपने समाज को बहुत कुछ लौटाना है जिसने आज हमें इतना सब कुछ दिया, कहते है कि मात्री और पित्र ऋण को कभी भी नहीं चुकाया जा सकता है, उसी प्रकार हमारे उपर एक और ऋण है वो है हमारी इस जन्म और कर्म भूमि का ऋण जो हम कभी नहीं चुका सकते बस अपनी तरफ से केवल एक कोशिश जरूर कर सकते है. आप सभी लोगों से विनती है कि इस कारवां में तन मन और धन जुड़िये और एक नयी चेतना का विकास समाज में प्रज्वलित करें.

हमारा मकसद केवल कैरियर गाईडेंस कैंप तक ही सीमित नहीं है,. हम उत्तराखंड के उज्जवल भविष्य के लिए और उत्तराखंड के जन समूह, उत्तराखंड की लोक संस्कृति,साहित्य और समाज के लिए हर वो कार्य अपनी क्षमतानुसार करना चाहते है, जिसमे लोक हित छिपा हो, जिसमे उत्तराखंड का विकास निहित और और जिसमे एक सभ्य समाज की परिकल्पना कल्पित हो. आप सभी सदस्यों का अमूल्य योगदान इसमें वांछनीय है.

अंत में कवि की इन पंक्तियों के साथ छोड़े जा रहा हूँ कि जरूर कल एक सबेरा होगा और हर प्रकाशमयी सबेरे के साथ हमारे साथ नव चेतना से परिपूर्ण, अपनी मातृभूमि और जन्मभूमि के लिए समर्पित भाव से काम करने वाले लोग जुड़ते जायेंगे और एक नया सामाजिक कारवां बनता जायेगा.

देख दुर्भाग्य धीरज न खोना,
शीघ्र शौभाग्य फेरा लगेगा
रात्रि जितनी अँधेरी रहेगी भोर उतना उजेरा लगेगा



आपके बहुमूल्य सुझावों और प्रतिक्रियाओं का हमेशा तहे दिल से स्वागत किया जाता है. इस कैंप के बारे में भी यदि आपके पास कुछ सुझाव है तो जरूर हम तक पहुचाएं, निश्चित रूप से आपके सुझाव आने वाले सामाजिक कैरियर गाईडेंस कैंप में सहायता प्रदान करेंगे. इस कैंप के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करने के लिए यंग उत्तराखंड डिस्कसन फोरम पर आएये.वहा पर आप कैंप से समबन्धित फोटोस और वीडियोज का आनंद ले सकते है.


http://www.younguttarakhand.com/community/index.php
http://www.younguttarakhand.com/
जय हिंद जय उत्तराखंड
सुभाष काण्डपाल

आवा गढ़वाळी सिखला -१३

Let us Learn Garhwali -13
Bhishma Kukreti
व्याकरण (Grammar )
अविकारी पद (अव्यय )
गढवाली मा अविकारी श्ब्दुं भरमार च . अविकारी शब्द चार किस्मों होंदन पण गढवाली मा पांच किस्मौ अव्यय होंदन
१- क्रिया विशेषण
१अ - कालवाचक ------ अब्बी, ब्याळी /ब्याले , भोळ, अज्युं , एकदां , कैबरी -कैबरी
१ब - स्थानवाचक ------अगने, ऐंच , ढीस, मळथूण , मथि, मूड़
१ स - रीतिवाचक ----- ठंडो - मठों/ ठnडु -मठु , अन्कैक /औंकैक , घल्ल
1 ड़ - प्रश्नवाचक -----किले, क्थ्गा, कख
१ इ- परिमाणवाचक -- अति, थुपडोंन , इच्छि, बिंडि
१ फ -कारणवाचक - यान, इलै
१ ग - स्वीकार्वाच्क --योअ, हूँअ , हो
1 ह - निषेधवाचक - ऊंह , अहाँ , कर्तना ,
२- सम्बन्ध वोधक
ऐथर, बगैर, सी, दगडे ,
३- स्म्मुच्च्य वोधक
3a - संयोजक ----- अर, बि,
३ब - वियोजक -- चा, निथर
३स - विरोध दर्शक --- पर
३ द - परिमाण दर्शक -- यान /इलै
3 ई - कारण वाचक - किलेक़ि
३ फ - उद्देश्य वाचक - जनकी /ज्याँक़ि
३ ग - संकेत वाचक ---- जु, त
h - व्याख्या वाचक -- हैंकि ऩा ! यानी क़ि !
४ - विस्मयबोधक
स्या !, दयार ! , चूचो ! यूँ ! हे राम दा ! हैं ! ह्व़ा !
५ - अनुकार मूलक
टळपळ- टळपळ, ख्ल्तं , खीं -च्वी, पुल्ल - पुल्ल , सड़म. द्ड्म, च्यां

सीएम वंश की असंतुष्टि

लोक के तंत्र में ‘सीएम’ वंशीय प्राणियों की असंतुष्टि का असर क्लासरूम तक में पहुंच चुका था। मास्टर जी बेंत थामे थे। मगर, बेंत का मनचाहा इस्तेमाल न कर पाने से वे बेहद असंतुष्ट भी थे। विधायिका और कार्यपालिका नामना कक्षा के छात्र मास्साब की बेंत से बेखौफ उनके हर आदेश का ‘अमल’ निकालकर प्रयोग कर रहे थे। सो मुछों पर ताव देकर मास्साब ने छात्रों से ‘सीएम’ वंश की असंतुष्टि पर निबन्ध तैयार करने को कहा। फरमान जारी होते ही कक्षा में सन्नाटा सा पसर गया। क्योंकि वे छात्र भी एक सीएम (कामनमैन) वर्ग से जो जुड़े थे। सभी छात्र निबन्ध पत्र की कापी तैयार करने के लिए मुंडों को जोड़कर बौद्धिक चिंतन में मशरूफ हो गये। निश्चित ही छात्रों ने भी अपनी ज्ञान ग्रन्थियों को खोलकर काफी कुछ लिखा। इस काफी कुछ से सार-सार के संपादित अंश सैंदिष्ट हैं।
‘सीएम’ वंश की धराओं का भूगोल समाज सापेक्ष संस्कृति में दो पंथों में विभक्त है। एक निगुण धारा। जोकि ‘कामनमैन’ के रूप में यथास्थिति वाद पर किंकर्तव्यविमूढ़ है। निगुण इसलिए, क्योंकि ‘सीएम’ इनके लिए कुछ भी अच्छा कर दे ये उसका गुण नहीं मानते हैं। तो दूसरा सगुण मार्गीय ‘चीफ मिनिस्टर’ पंथ। जोकि हाईकमान की नित्य पाद् पूजा के निहितार्थ को जानता है। वह अपनी मूल बिरादर वंश की अपेक्षा हाईकमान को ही तरजीह देता है। आखिर कुर्सी के नीचे पद का गलीचा हाईकमान का ही है।
भेद-विभेद के बावजूद दोनों पंथ एक दूसरे के पूरक भी हैं और यदाकदा विरोधी भी। एक वोट देता है, दूसरा वोट मांगने के साथ ही छीनता भी है। एक उत्तरोत्तर विकास की अभिलाषा में बार-बार ठगा जाता है। दूसरा ‘ठग’ कला में उत्तरोत्तर पारंगतता हासिल करता है। नतीजा कि ‘माया महा ठगनी....’ की अर्थवत्ता के बाद भी एक महीन रेखा में दोनों आपस में बंधे रहते हैं। इस रेखा का प्रतिकाकार कभी गाढ़ा हो उठता है और कभी फासलों में अनपेक्षित दूरी भी बना डालता है। निगुण पंथी जहां सतत् विकास के दावों की हकीकत जानने के बाद भी दलीय निष्ठाओं के चलते संतुष्ट होने का प्रयास करता है। तो सगुण मार्गी विकास के लिए ‘बांक’ भर देने से संतुष्ट नहीं होता। बल्कि बांक देने की परंपरा पर अविश्वास भी जाहिर करता है। यही वक्त होता है। जब सगुण ‘सीएम’ निज तुष्टि का राजफाश करने की बजाय ‘असंतुष्टि राग’ को ‘तोड़ा’ बनाकर यथासमय ‘बिलम्बित’ ताल की संगत में गाता चला जाता है। और दूसरा सीएम महज इसलिए तुष्ट कि पहला ‘सीएम’ असंतुष्ट तो है। हालांकि आमतौर पर यह रणनीतिकारों की मत सम्मति का भाव नहीं है।
असंतुष्टि को प्रायः गति व प्रगति का कर्ता माना जाता है। जब कुर्सी वाला सीएम राग असंतुष्ट की प्रस्तुति से विभोर हो तो, जन्मना ‘असंतुष्ट’ सीएम (कामनमैन) निश्चित ही अपने असंतुष्टि के शेयरों को ‘दलाल पथ’ में भुनाने की कोशिश करता है। हालांकि वहां भी उनके धड़ाम होने में देर नहीं लगती। सो आखिर में उसे वोटों की बिकवाली का सहारा लेकर अपना अस्तित्व गांठने का इंतजाम हर हाल में करना होता है। लिहाजा दूसर ‘सीएम’ की अपेक्षा कामनमैन के मौजूं असंतोष में विस्मय जैसा कुछ भी उभरकर नहीं आता।
क्लासरूम में जहां सभी छात्र निबन्ध के बंधैं को निपुण जुलाहे की भांति तांत-तांत बुन रहे थे। तो वहीं मास्साब रूटीन चैकिंग में सभी कापियों से सार-सार गह रहे थे। कि, कामन सीएम की संगत के चिरंतन ठौर चाय-काफी हाऊस हुआ करते हैं। जहां वे अपनी दलीय निष्ठाओं के साथ तुर्की बा तुर्की धोबी पछाड़ का दांव आपस में हमेशा खेलते हैं। इस दौरान यदि तर्क-वितर्क की गेंद हाफबॉली हुई तो समझो लगा छक्का और ‘सुदामा’ की गेंद हुई तो गई जमुना में। हालांकि तब भी सचिव ब्रांड रेफरी उनका रन काउंट नहीं करता है। वहीं गेंद यदि बाऊंस हुई तो दूसरा सीएम अक्सर बल्ले के साथ खुद को भी लाइन से हटा लेता है। ऐसे में इन अड्डों पर बौद्धिक जुगाली का माहौल तापमान के सेल्सियस बढ़ा देता है। निष्कर्षतः तेल कितना पिरोया गया, इसमें कामनमैन के सरोकार भले ही झाग बनाने तक ही सीमित रहते हों। मगर ‘संजयों’ को मालूम है कि, कई बार इस तेल का असर ‘वियाग्रा’ से भी मारक होता है। उधर ‘सीएम’ जानते हैं कि, उनका ‘राग असंतुष्ट’ बंदरों को बंटवारे के बाद भी उन्हें संतुष्ट रखेगा। क्योंकि उनका काम भी सिर्फ तुष्ट रखना है। पुष्ट रखना कदापि नहीं। असंतुष्ट रथ के सारथी ‘सीएम’ की दिशा दशा का वर्णन करते हुए छात्रों ने लिखा कि, इस वर्ग का प्राणी राजभोग की विलासिता में तो संतुष्ट रहता है। किंतु, वैभव की कुर्सी के पायों की स्तंभन शक्ति के लिए ‘वियोगी होगा.....’ की शैली में हमेशा असंतुष्टि के विराट दर्शन देता है। ताकि निगुण सीएम अपनी तुष्टि के सपनों को उनकी तुष्टि से ‘मैच’ न कर सके।
निबन्धीकरण के दौरान छात्रों की कापियों से मास्टर जी का टेपीकरण अभियान जारी था। वे छात्रों के ‘सीएम’ ज्ञान से अविभूत भी नजर आ रहे थे। लेकिन वे भी संतुष्टि के अपने भावों को सगुण ‘सीएम’ की तरह चेहरे पर आने से रोके हुए थे। मास्साब निबन्ध का निष्कर्ष जानना चाहते थे। परन्तु, छात्रों ने भी उतावलेपन की बजाय ‘वेट एण्ड वाच’ के लक्षणों को ही अपनी आखिरी पंक्तियों में उद्धृत किया।

मुण्ड निखोळु

गौळा फर हरेक मनखी का,
बध्याँ छन बंधन,
जौंका फेर मा अल्झ्युं छ,
यीं दुनियाँ का जाळ मा,
कुछ मनखी पहाड़ का हम,
प्रदेश मा रूमणाणा छौं,
मन भटकणु छ कखि,
वे प्यारा कुमौं अर गढ़वाल मा.

रात दिन सोचणा छौं,
कब निब्टलि प्रदेश की जिंदगी,
तब जौला "मुण्ड निखोळु" करिक,
अपणा प्यारा मुल्क,
रौला सुखि हाल मा,
देवभूमि उत्तराखंड का,
प्यारा कुमौं अर गढ़वाल मा.

जागणा होला हमतैं,
अपणा मुल्क का प्यारा,
घन्ना, मंगतु अर मोळु,
हमारा मन भी उलार छ,
कब होलु "मुण्ड निखोळु".

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(यंग उत्तराखंड और मेरा पहाड़ पर प्रकाशित और सर्वाधिकार सुरक्षित)
दिनांक: ७-९-२०१०

देवभूमि तेरा दर्द

तिस्वाळे हैं गाँवों के धारे,
नदियाँ हैं तो प्यासे लोग,
कैसे बुझेगी पर्वतजनों की तीस?
देखो कैसा हैं संयोग.

प्राकृतिक संसाधन बहुत हैं,
मनमोहक प्रकृति का सृंगार,
पलायन कर गए पर्वतजन,
जहाँ मिला उन्हें रोजगार.

रंग बिरंगे फूल खिलते हैं,
जंगलों में पक्षी करते करवल,
वीरानी छा रही गावों में,
कम है मनख्यौं की हलचल.

जंगल जो मंगलमय हैं,
हर साल जल जाते हैं,
कितने ही वन्य जीव,
अग्नि में मर जाते हैं.

पुंगड़े हैं बंजर हो रहे,
कौन लगाएगा उन पर हल?
हळ्या अब मिलते नहीं,
बैल भी हो गए अब दुर्लभ.

पशुधन अब पहाड़ का,
लगभग हो रहा है गायब,
छाँछ, नौण भी दुर्लभ,
घर्या घ्यू नहीं मिलता अब.

ढोल दमाऊँ खामोश हैं,
ढोली क्यों उसे बजाए,
हो रहा है त्रिस्कार उसका,
परिजनों को क्या खिलाए.

नदियों को है बाँध दिया,
गायों को है खोल दिया,
देवभूमि की परंपरा नहीं,
हे मानव ऐसा क्यों किया?

हे पर्वतजनों चिंतन करो,
सरकार अपनी राज्य है अपना,
"देवभूमि तेरा दर्द" बढ़ता ही गया,
साकार नहीं सबका सपना.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरा पहाड़, यंग उत्तराखंड पर प्रकाशित)
(१६.८.२०१०)दूरभास: 09868795187
जन्मभूमि: बागी-नौसा, चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल

दयब्तौ की खोज !

बोड़ी चौकम छे बैठी ! आंदा जान्दो दगड छे बच्याणी , कि तैबेरी , मेल्या खोलै रामचन्देरी वाख्म एकी बोड़ी से छुई लगाद लगाद पूछंण बैठी

"... हे जी , तुमल भी सुणी ? "
बोड़ी बोली .. "--- क्या ?"

".. ह्या , बुने, क्वाठा भीतर का वो जेवोर , जौकु नौ .... कने लियु उकु नौ " ! बिन्गैकी की बुलद "------ जौक नौ, स्युजू तुमरा देलम बैठुच ! "
बोड़ील वे जाने देखी आर बोली .. " वो कुता सिंह ..! ."

"हांजी, हां ...! " वी--- वी .... "
वीजने घूरी की बोड़ी बोली " ----- कनु क्या ह्वे कुता सिंह थै ? "
" -----सुणम.. आई कि, उकु नाती घोर च बल औणु , अपना दादा प्रददौ कि कुड़ी थै दिखनो अर अपणा नार्सिंग देब्तो कि पुजाई कनु ? "

"---हाँ --- हाँ !" ददल ,त, नि खोजी आज तक अपणी गौंकु बाटु, अपणी पुगाड़ी - पटुली ! ताखुँदै राई ता जिन्दगी भर ! बोई बाटु हेरी २ मोरीगे ! कुड़ी धुर्पाली उजड़ी गीनी !

न उ आयु अर ना नौनी ! द्वी पड़ी तक कैल भी याख्की शुद्ध नि ले ! बोड़ील , सांस लेकी अर वेकि कुड़ी जाने हेरी बोली .... " ब्वारी .. मित बुनू छो कि, यु नर्सिंग इनी ताखुन्दा बस्या लुखो थै भी नाचे नाचे घोर बुलादु ना त कनु छायू ! पैल, ये सबी नौकरी खुज्यणु तखुन्द गिनी ! अर, अब , वो सबी ..., ये जनि अपणा अपणा दय्बतो थै खुज्यानु घोर ऐ जांदा ना..., त , हे पणमेस्वरा .. मी भी त्वेमा सबा रुपया चढाई ध्युलू ! चला , भलु ह्वे वे द्याब्तो जैल वेका नाती पर अपणु रंग दिखाई ! अर वो घर बाड़ी ह्वे !


पराशर गौर
दिनाक ४ अगस्त २०१० स्याम ६ ५३ पर

बसगाळ्या बरखा

चौक मा चचेन्डी, तोमड़ी लगिं,
कुयेड़ी लगिं घनघोर,
तितरू बासणु गौं का न्योड़ु,
द्योरू होयुं अंध्याघोर.

मनखी बैठ्याँ भितर फुंड,
बरखा लगिं झकझोर,
फूल्टी भरी ऊस्यौण लग्याँ,
मुंगरी, गौथ अर तोर.

हरीं भरीं दिखेण लगिं,
कोदा झंगोरा की सार,
डांडी कांठ्यौं मा छयुं छ,
संगति हर्युं रंग हपार.

रसमसु होयुं छ द्योरू,
बगदा बथौं कू फुम्फ्याट,
कखि दूर सुणेण लग्युं,
गाड गद्न्यौं कू सुंस्याट.

विरह वेदना मन मा लगिं,
पति जौंका परदेश,
देवतौं छन मनौण लगिं,
कब बौड़ि आला गढ़देश.

छोरा छन कौंताळ मचौणा,
ऐगि "बसगाळ्या बरखा",
दादा दादी बोन्न लग्याँ,
हे बेटों भितर सरका.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(१.८.२०१०)
दिल्ली प्रवास से.....

अतीत उबरी यनु थौ

रज्जा का जमाना मा, जनतान बिगार बोकी,
होणी खाणी कनुकै होण, शिक्षा कू विकास रोकी.

जनता का खातिर रज्जा, बल बोलान्दु बद्रीनाथ थौ,
अनपढ़ जनता कू भाग, संत्री-मंत्रियों का हाथ थौ.

आजादी का बाद भी, लोग भूखा तीसा रैन,
आस अर औलादन, कंडाळी,खैणा-तिमला खैन.

लाणु पैन्नु यनु थौ, टल्लौं मा टल्ला लगौंदा,
रात सेण कनुकै थौ, खटमल, ऊपाणा खूब तड़कौन्दा

उबरी बाटौं कू हिटणु थौ, सैणी सड़क दूर थै,
जख भी जाण हिटिक, जनता भौत मजबूर थै.

आजादी का बाद पाड़ मा, सब्बि नौना नौनी स्कूल गैन,
शिक्षा प्राप्ति का बाद, रोजगार का खातिर प्रवासी ह्वेन.

विकास की बयार बगि, अब यनु निछ पहाड़ मा,
अतीत उबरी यनु थौ, अब मनखी कम छ पाड़ मा.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(२८.७.२०१०)
दिल्ली प्रवास से.....

लग्याँ छन जुगाड़ मा

जिन्दगी चन्नि छ सब्यौं की,
मन मारिक जन भि चलु,
महंगाई की मार मा,
कनुकै पळलि आस औलाद,
हमारा देश का सब्बि मनखी,
लग्याँ छन जुगाड़ मा.

कटणि छ जनता की जेब,
जौंका खातिर,
ऊ सब्बि ठगणा छन,
भोली-भाली जनता तैं,
राजनीती की आड़ मा,
सत्तापक्ष अर विपक्ष द्वी,
सत्ता का खातिर,
लग्याँ छन जुगाड़ मा.

पहाड़ कू घर्या घ्यू ,
दाळ, गौथ अर तोर,
छौंकण का खातिर जख्या,
कख बिटि मिललु,
सोचदा छन ऊ,
जू नि रन्दन पाड़ मा,
कु होलु यनु रिश्तेदार,
प्यारा पाड़ मा,
जू भेजि द्यो कैमु,
लग्याँ छन जुगाड़ मा.

उत्तराखंडी कवि,
लिख्दा छन पहाड़ फर,
रन्दा नि छन पाड़ मा,
कल्पना करदा छन,
कविता लिखण सी पैलि,
कनुकै लिखौं सुन्दर कविता,
लग्याँ छन जुगाड़ मा.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(२८.७.२०१०)
दिल्ली प्रवास से.....

पहाड़ सी ऊंचा

मनखी का इरादा,
मेहनत अर लग्न,
साकार करदि सुपिना,
होन्दि छ लक्ष्य की प्राप्ति,
मिल्दि छ प्रसिद्धि,
मन मा भारी सकून,
पहाड़ सी उंचा ऊठिक.

पहाड़ प्रेरणादायक छन,
अटल इरादा कू संचार होन्दु छ ,
मनखी का मन मा,
कल्पनाशीलता पैदा होन्दि छ,
कवि, लेखक, छायाकार,
गितांग का मन मा.

बहादुरी कू भाव पैदा होन्दु,
सैनिक का मन मा,
जन, माधो सिंह भण्डारी,
गबर सिंह, दरमियान सिंह,
वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली,
उत्तराखंड आन्दोलन का शहीद,
जौंका इरादा अर काम,
"पहाड़ सी ऊंचा" था.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(२५.७.२०१०)

Critical History of Garhwali Poetry

History of Indian Language Literature
History of Himalayan Literature
History of Garhwali Literature
Critical History of Garhwali Poetry
Parvati : Collection of 100 Lyrical Garhwali Poems by Abodh Bandhu Bahuguna
Bhishma Kukreti
Abodh Bandhu Bahuguna does not need any introduction in Garhwali literature. Bahuguna did not leave any creative field of language literature in garhwali which, he did not touch. Parvati is poetry collection createdd by Abodh in fifties and sistees and published in 1966 (second edition published in 1994 with Hindi translation of all poems )
Famous Garhwali language critic Dr Govind Chatak rightly said that there is enthusiasm of youth and there is pathos in the poems because there are hundred Garhwali poems in Parvati and all are with different subjects, diverse emotions and raptures. Dr Chatak further states that in this poetry collection, Bahuguna touched many known and unknown subject related to society and the hope or aspiration of developing garhwali society.
Writing introductory note, dr Shiva Nand Nautiyal describes the poems of Bahuguna of Parvati as showing the reality of place (Garhwal) , time and aroma of Garhwal. However, this author feels that the poems are aimed for intellectual people than common men.
Bahuguna narrates the life of Garhwali women very effectively and shows her different role as child she is sister of younger ones, lover, mother, grand mother , a hard worker, an economist, and warrior too . Bahuguna has been successful in showing the emotions of women’ pain, love, separation from her husband , waiting for good happening for her and family members, struggle in caring for family at all stages of life, sacrifices of Garhwali women.
Abodh Bandhu Bahuguna reaches on his height when he recites the struggle of Garhwalis in their village. The readers relate their life with the poems and that make Bahuguna a successful poet of Garhwali.
In totality there are more than hundred subject in this poetry collection, which Bahuguna touched efficiently .
From language point of view, he used all types of words aimed mostly to intellectuals and even his experiment on creating new words are aimed to intellectuals rather than common men. This author is of opinion that nothing is wrong for aiming intellectuals by Bahuguna.
From the points of view of poetic construction, subject and total effect , renowned garhwali literature expert Dr Hari Datt Bhatt Shailesh states that there is mirror of Garhwal in the poems of Bahuguna. Balvant Singh Bisht stresses that the poems of Abodh Bahuguna are sensual and sensitive.
This poetry collection Parvati has significance in Garhwali literature because after its publications the poets of Garhwali language got inspiration and hope that there is substance in creating and publishing Garhwali literature.

Parvati
Collection of 100 lyrical Garhwali poems
(first edition in 1966 and second edition in 1994)
By : Abodh Bandhu Bahuguna
Garhwali Prakashan
B-2, B 48, Janakpuri, New Delhi 110058
Copyright@ Bhishma Kukreti, Mumbai, India, 2010

Anjwal: One of the Great Satirical Poetry Collections in World Literature

History of Indian literature
History of Uttarakhand languages Literature
History of Garhwali literature
Critical History of Garhwali Poetry
Anjwal: One of the Great Satirical Poetry Collections in World Literature
(Review of Anjwal -Garhwali Poetry collection by Kanhaya Lal Dandriyal ‘The Great Poet’)
Bhishma Kukreti
No doubt, Sada Nand Kukreti (1923) initiated satire as serious business in Garhwali by publishing first Garhwali story Garhwali That’ in Vishal Kirti but in true sense in modern Garhwali poetic field, Kanhaya Lal Dandriyal used satirical poems as to make serious and even frightening remarks on the dangers of the sweeping social, economical, spiritual changes taking place throughout Garhwal and among migrated Garhwalis . Many critics as nathi Prasad Suyal state that we may find similarities in the work of Kanhya Lal Dandriyal and Horace, Persius, and Juvenal for Dandriyal’s satires about the life, vice, and moral decay Kanhaya Lal saw around him as ‘Garhwali Sanstha’ of this volume.
When Hindi critic Dr Manjula Dhoundiyal read poems of Anjwal, she said to this author “ I shall put Kanhaya Lal Dandriyal near to a French satirist of seventeenth century Roger Rabutin de Bussy for his wit and calmness in describing the changes”
Manmohan Jakhmola a post graduate in English literature, a literature lover and great admirer of Kanhaya Lal Dandriyal says that Dandriyal had to work hard for creating satirical Garhwali poems when most of the Garhwali poets were either following Hindi literature or busy in old style in terms of subject and versification, Kanhaya Lal came with new subject and the original satire of Garhwal into Garhwali literature. Jakhmola further says that Dandriyal might have worked hard in creating satire in Garhwali as eighteenth century American satirists as Lemuel Hopkins, Joel Barlow, Philip Freneau , John Trumbull, Hugh Henry Brackenridge did hard work in creating satire .
The second edition of Anjwal has fifty poems of Dandriyal. First issue was published in 1969 and Anjwal became a mile stone in the Garhwali poetic field that from here the Garhwali poems transformed style , body, subjects , and creativity of Garhwali poems as well the thinking of Garhwali poets . The Garhwali poems took new shape from conventional wisdom in many ways.
The poems show that Kanhaya Lal Dandriyal was very sensitive, had the eyes ofa critic and had the power of narrating serious and critical the subject through humorous and satirical methodology. Kanhya Lal show the putrefied social system through effective wit that readers laugh but feel acute pain inside their mind, intellect and ego. Madan Duklan a garhwali critic and editor states that the poems of Anjwal are provocative but do not create enmity among the society.
Famous Garhwali folk literature expert, Hindi dramatist, Hindi poet, story teller, critic Govind Chatak says that the satirical poems as Satya Narayan Brat Katha, Mi Garhwali chhaun, Dhyabron ki Rally, Garhwali sanstha, Hamaru Garhwal are the world class poems and these poems are one of best poems among two hundred best satirical poems of world literature. Lokesh Navani a Garhwali critic and Puran Pant a poet and editor state about these poems and other poems that these poems are the classic poems for international literature.
Girish Sundriyal a Garhwali poet says that his other poems Sarsu Sanhar, Thyakra are best examples of bringing realism with the capsule of satire and humor into Garhwali literature in seventies.
Harish Juyal a marvelous satirical Garhwali poet supports the statement of Dr Govind Chatak that style of Jagar. Rakhwali and Tantra Mantra in many Garhwali poems of Kanhya Lal Dandriyal are very effective and readers enjoy those poems by heart.
The garhwali critic and Garhwali literature publisher Nathi Prasad Suyal states , “ In the poems of Dandriyal , we find the mixer of realism, experiencing , pain for wrong changes happenings, and at the same time the poet provide suggestions to as teacher but differently than his predecessor Garhwali poets.”
Bhishma Kukreti wrote in the special issue of Hamri Chitthi about Kanhya Lal Dandriyal that the poems of Anjwal of Kanhya Lal Dandriyal are the inner experiences of a Garhwali women, which no Garhwali poet could touch so marvelously as Dandriyal did . Kukreti called Dandriyal as Ardh NariIswar at the time of creating poetries.
About the poems of Anjwal, Nathi Prasad Suyal and Dr Govind Chatak rightly said that Dandriyal did not leave any important aspect of life in Garhwal and life of migrated common Garhwalis.
Jaipal Singh Rawat a famous Garhwali symbolic poet state that no Garhwali poets of past as Dandriyal used Garhwali symbols so perfectly that even a common person can fully understand the meaning and insight of poems of Dandriyal.
Parashar Gaud the great admirer of Kanhaya Lal Dandriyal finds that Kanhaya Lal Dandriyal was expert of creating real images of rural Garhwal and life sketches of common migrated Garhwalis so effectively that makes him one of the greatest poets of all world languages.
Each poems of Anjwal take the readers to one important aspect of garhwali life of sixties and before.
Kanhya lal Dandriyal was the master of garhwali vocabulary and this poetry collection is the proof. The poems are so simple and under stable that a migrated Garhwali who never read Garhwali literature will also read all poems and will enjoy.
Anjwal is a heritage of world languages literature and we should arrange proper distribution of this poetry collection all corners of world among Garhwalis.

Anjwal
Poet : Kanhya Lal Dandriyal
Publisher:
Maulyar Prakashan
7 D, L.P. Maurya Enclave
Peetampura, Delhi, 110088
Copyright@ Bhishma Kukreti, Mumbai, India, 2010

गढ़वाली व्यंजन / कुमाउनी व्यंजन / हिमालय के व्यंजन

Ethnic Food of Uttarakhand, Garhwali food, Kumauni Food, Ethnic Himalayan Food
गढ़वाली व्यंजन / कुमाउनी व्यंजन / हिमालय के व्यंजन
हरीश जुयाल (बदलपुर , गढ़वाल )

किसिम - किसिम का गढ़वळी व्यंजन
जुयाल़ा घरम आज प्क्याँ छन
आवा भैजी आवा जी
जु बि तुमर ज्यू ब्वनू च
कीटि -कीटि क खावा जी
दस भेली की सूजी खैन्डी च . छै नाल़ी क खुसका पक्युं
दल्यां चणो की दाळ धरीं च पुवौं न पुरो बिठलु भर्युं
भूड़ा -पक्वड़ा स्वाल़ा अरसा , लड्डू -पूरी , लगुड़ा -पटुड़ा
दड़बड़ी खिचड़ी, सड़बडु छ्न्च्या , चुनमंडो कु तौल धरयुं
आ ए दीदी , आ ए भुली , तु बि आ ए बौ ...
उड़द रयाँसू की दाळ पकीं च डिगचा धरयां छन छवाड़ मा
बासमती का चौंळ पकैकी तौला धरयां छन प्व़ार मा
लमींडा/ चचिंडा . ग्वदडि , छीमी , भिन्डी , लिंगुडा, खुन्तडा अर अचार
राई , मूल़ा, टुकुल, की भुजी तुमारो गिच्चाऊ खुण कर्युं ठुंगार
आ बोडी, आ काकी, आ मेरी समदण ...
ग्थ्वणि, फाणु , गिंजडि पकीं चा भदवल़ा छन भोरिक
फरफरी कौणि का भड्डू धरयां छन दाळ पकीं च तोर की
मूल़ा की थिंचवणि , पलिगौ धपड़ी , लया की चटणी , चून कु रोट
ड़्वळणि -झन्गवरु मरसा की भुजी कंड़ळी-बाडि घोट्म घोट
आ ये पौण ...
अल्लू क गुटका , ग्युं क फुल्का , निरपाणि की खीर पकीं
गैथुं का भरवाँ रवटलौं समणि घी की माँणि धरीं
तैडु गीन्ठी क परता भ्र्याँ छन ज्ख्या तुडका मा खूब भूटयां छन
ग्वीराळ , सकीना, बेथु , बसिंगू , बंसकल़ा ल्हेकी छन खुडक्यां
सिंगनि का ग्वबका घन्डाघोर , कुख्ड्या च्यूं का डेग धरयां
तिमला दाणी , खडिका टुक्कू , रौला प्फ्डी की भुजी बणी
टिमाटरूं कु झोंळ बन्यून च तुमारो खातिर झैळ लगीं
आवा कक्या सास जी , बड्या सास जी ...तू बि आ स्याळी जी
पीणा खुणी छांछ धरीं च , छांची मा नौणी गुंद्की घ्वलिँ
चटणा-खुणि आमे चटणि चटपटि, चसचसी , चटणि चिन्नी घ्वलिँ
फल फ्रूट मा लिम्बो क्छ्बोळी , पपीता खावा लूण रल्यूं
गल्ल प्क्याँ छन बेडु तिमला लूण दगड तेल रल्यूं
हैरी कखड़ी मा चिरखा दियां छन , भरवाँ लूण की चटणि पिसीं
हिसर , किन्गोड़ा ,करंडा , बिरन्गुळ, खैणा, हरड़, बयड़, किम्पू
टीपी टीपी तैं ढवकरा भ्र्याँ छन काफुलूं की कंडी भ्वरीन
घिन्घोरा , मेंलु, आडु, आम , औंल़ा, बेर दळम्याँ , बिजवरा
सेब, संतरा, घर्या क्याल़ा धाई लगाणा
आवा भैजी , अव्वा जी
सौंप सुपारी की जगा म्यारा सुप्प भर्याँ छन चूड़ा अर खाजा से
अखोड़ धरयां छन च्यडाउन दगड़म भ्न्ग्जीरो , तिल खूब रल्यां
काल़ा भट्ट का खाजा भुज्याँ छन कौन्यालुं का कुटरा ख्व्ल्याँ
मरसा क खील, ग्युं टाडा , मुगरी भूजिक ड़लुणा भ्रयाँ
छ्युंती म्याला , ब्वदल़ा टीपिक , सुरजा कौंल़ा धरयां तुम खुणि
बात हिटा को गुजारो कर्युं च भ्न्गुला तुमड़ा भ्रयाँ तुम खुणि
किसिम - किसिम का गढ़वळी व्यंजन
जुयाल़ा घरम आज प्क्याँ छन
आवा भैजी आवा जी
जु बि तुमर ज्यू ब्वनू च
कीटि -कीटि क खावा जी

सर्वाधिकार @ हरीश जुयाल, बदलपुर, पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखंड २०१०

सौण/सावन कु मैना माने खीर कु मैना

Ethnic Food of Uttarakhand , Food of Garhwal, Food of Kumaun, Himalayan Food
सौण/सावन कु मैना माने खीर कु मैना (The month Savan means month of Kheer )
Bhishma Kukreti
गढ़वाळी -कुमाउनी पंचांग कु मुताबिक आज से (16-7-2010) सौण/सावन शुरू ह्व़े गे . आज गौं मा खीर बणाण से सौण की शुरुवात करे जांद
तकरीबन हर दुसर दिन गौं मा खीर बणये जांद. असल मा ये बगत सौण मा घास खूब होंद त गौड़ भैंस जादा दूध दीन्दन त खीर दुसर तीसर दिन बणदी .
खीर बणाणो तरीका क्या च ? चौंळ या झ्न्ग्वर तैं दूध, पाणी अर मिट्ठो दगड़ थड़कए जांद अर खीर तैयार . खीर बणणो उपरान्त खीर मा घ्यू /घी डाल़े जांद
गढवल़ी मा एक लोक गीत बि च
सौण मा खीर बणये जांद भौत
सयां जी खीर khaayi जयां
Copyright Bhishma Kukreti, Mumbai, India, 2010

भर्याँ रूटळ (Stuffed Roti )

रूटळया त्यौहार उत्तराखंड का प्रमुख त्यौहारों में गिना जत्ता है . यह त्यौहार आषाढ़ के अंतिम दिन याने सेक को आता है और शाम को भरीं रोटियाँ बनकर इस त्यौहार को मनाते है
Uttarakhand Food, Food of Garhwal, Kumauni Food , Himalayan food
भर्याँ रूटळ (Stuffed Roti )
भर्याँ रूटळ बणाण ब्युंत ( विशेज्ञता ) को काम च . उल्युं आटो कि लोई पुटुक दाळ कु मस्यट भरे जांद . मस्यट माने उस्यई दाळ तैं मैणु मसालों दगड़ पीसिक लोई जन बणाण . भर्याँ रूटळ जादातर रयांस या सूँट कि दाळ कु मस्यट से बणान्दन . भ्र्याँ रूटळ घ्यू / घी क दगड़ खये जांद

दारू देवी की कृपा सी

भौत दिनु बिटि,
बचपन कू,
एक लंगोट्या यार,
जैका दगड़ा,
ऊ प्यारा दिन बित्यन,
आज तक नि मिलि फेर,
अचाणचक्क,
मैकु वैकि याद आई,
वे लंगोट्या यार कू,
कैमु माग्युं,
मोबाइल नम्बर खुजाई,
फट्ट सी नंबर मिलाई,
वख बिटि लंगोट्या यार की,
गळबळ आवाज आई,
हे भाई कू छैं तू?

मैन बोलि, हे मकानु दा,
मैं छौं रे मैं, तेरु बचपन कू,
लंगोट्या यार खिम सिंह,
कन्नु छैं हे लाठ्याळा,
याद नि औन्दि त्वैकु मेरी?

अरे! दिदा क्या बोन्न,
मैकु भी तेरी,
याद भौत औन्दि छ,
जब रंदु मुक्क ढिक्याण पेट,
औन्दि छन मन मा ऊदौळि,
क्या बोन्न भुला अब,
शरील भी बुढया ह्वैगी,
अब "दारू देवी की कृपा सी",
जिन्दगी कटणि छ,
पैलि एक गिलास पेंदु छौं,
फेर पलंग मा सेन्दु छौं.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित,

खाड्डु अर बाखरू नि छौं

सुपिना मा देखि मैन,
पाड़ पिड़ान घैल ह्वैक,
छट पटाण थौ लग्युं,
मैन पूछि, हे पाड़ जी क्या ह्वै?

पाड़जिन मैकु बताई,
आज मैं बिमार छौं,
पर कै सनै मै फर,
कतै दया नि औन्दि,
मेरा कपड़ा फटिग्यन,
मेरा बदन फर चीरा धर्यलन,
मैकु सदानि बुखार रंदु छ,
पीठ फर मेरा बणांग लगौन्दन,
क्या बतौँ, भौत सतौन्दन.

मैन बोलि पाड़ जी,
आपकी दुर्दशा देखिक,
मेरा मन मा भि,
भारी पिड़ा छ,
पर आज मनखि,
भारी स्वार्थी अर लालची ह्वैगी,
आपकी दुर्दशा वैका हाथन ह्वै.

हाँ यू सच छ,
हे कवि "जिज्ञासु",
क्वी नि पोंज्दु,
मेरा डळबळ औन्दा आंसू,
यनु न करा, हे मनख्यौं,
मैं "खाड्डु अर बाखरू नि छौं"

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित,

अपणि बोली भाषा"

उठाई मैन कलम,
लिख्यन मन का भाव,
प्रयोग करि अपणि भाषा,
यीं आस मा,
फललि फूलली,
"अपणि बोली भाषा",
यछ मेरा कवि मन की आशा.

भलु नि होन्दु भै बन्धु,
"अपणि बोली भाषा" कू त्रिस्कार,
संस्कृति कू नाश होन्दु,
जड़ सी मिटदा संस्कार.

अंग्रेजुन विश्व स्तर फर,
करि अपणी भाषा कू प्रसार,
आज विश्व स्तर फर होणु छ,
उंकी भाषा कू विस्तार.

देवतौं कू मुल्क हमारू,
प्यारू कुमायूं अर गढ़वाल,
कायम रलि भाषा संस्कृति?
मन मा ऊठणा छन सवाल.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
३.७.२०१० को रचित....दिल्ली प्रवास से

Description of Tirth (Auspacious places ) of Garhwal in Mahabharata

History of Garhwali Literature

History of Garhwali Poetry

Description of Tirth (Auspacious places ) of Garhwal in Mahabharata

Bhishma Kukreti

In Indian Sanskrit literature creation, there is importance of Garhwal area from the tie of Vedas. It is said that Rishis and Mahrshis created Vedas in Garhwal area. Maharshi Ved Vyas created Mahabharata with the help of lord Ganesh in Garhwal area. There is a place called Vyas Chatti (banelsyun patti, Pauri Garhwal at the meeting place of rivers Ganges and Nayar) where sage Vyas did tapah.

The greatest poet of Sanskrit Kalidas belonged to Kaviltha village in Chamoli Garhwal. Kalidas described Garhwal beautifully and in details in Abhigyan Shankutalam and Kumar Sambhav.

Before Kalidas, we find the description of Garhwal in terms of geographical and demographical detailing in Mahabharata which was created before five thousand years back.

In ninety th chapter of Vanparv or Teerthparva , there is full details of geographical description of Garhwal (from 1 to 34 Shlokas) .

Mahabharata creator described the following rivers:

1- Yamuna

2- Sarswati

3- Ganges/Bhagirathi

4-Dwasdati

There is description of hot springs in Badrikashram (Badrinath )along with the bank of Ganges (Alaknanda )

From places point of view , the following shlokas are very important for knowing the historical back ground of Garhwal wherein the creator described about :प्लेसेस
सनतकुमार: कौरव्य पुण्यम कांखलम तथा
पर्व्तश्च पुरुर्नाम यत्र यात: पुरुरवा: (वनपर्व -९०, २२ )
भ्रिगुर्यत्र तपस्तेपे महर्षिगणसेविते
राजन स आश्रम: ख्यातो भृगुतुंगो महागिरी: (वनपर्व -९०, २३)
नारायण: प्र्भिवुष्णु शाश्वत: पुरुषोत्तम (वनपर्व, ९०, २४
तस्यातियशस: पुण्या: विशाला बद्री मनु
आश्रम: ख्याय्ते पुणय स्त्रीसु लोकेषु विश्रुत : (वनपर्व, ९०, २५ )
There is description of following areas in the above shlokas

1- Gangadwar (Haridwar)

2- Kankhal (Today’s Kankhal (haridwar)

3- Bhrigushring ( Today’s Bhrigukhal, Udaypur patti Pauri Garhwal near Haridwar )

4- Puru Parvat (the hill range starting from Haridwar to Kalon Dand (Lainsdawn)

5- Badrika Ashram (Badrinath area)

6- ganges near badrikashram (Alaknanda)

7- Nar Narayan mountains

There is also description of Kirat and Kinnars the original inhabitants of Garhwal in this chapter of Mahabharata

Copyright@ Bhishma Kukret, Mumbai, India, 2010

पटुड़ी

Garhwali Food, Kumaoni Food, Ethnic Food of Uttarakhad, Himalayan Food
पटुड़ी
Bhishma Kukreti
पटुड़ी माने कै मस्यटु मा लूण मर्च, मैणु -मसालों . ल्यासण, आदू पीसिक/मिलैक तेल मा रोट जन पकैक बणये जाव
पटुड़ी यांक बणान्दन :--
१- पितली (काचो दाण) मुगर्युं तैं सिलवट मा पीसिक मस्यट मा लूण मर्च मसालों मिलैक तवा या कढ़ाई मा रोट जन बणये जांद .
२- भिज्यां गौथ का मस्यट से
३- भिजयाँ उड़द कु मस्यट से
बकै कबी कबी हौरी भिजयाँ दालुं क मस्यट से बि पटुड़ी बणये जांद
Copyright @ Bhishma Kukreti, Mumbai, India, 2010

भुज्याँ बुखण /खाजा (चबेना )

Garhwali Food, Kumaoni Food, Ethnic Food of Uttarakhand, Himalayan Food
भुज्याँ बुखण /खाजा (चबेना )
Bhishma Kukreti
जब अनाज या दाळऊँ तैं हिसरउन्द भुजे जाव त वै अनाज तैं बुखण बोल्दन.
मुख्य रूप से यूँ अनाज , तिलहन या दाळ ऊँ से बुखण बणये जान्दन :
१- मुंगरी
२- ग्युं
३- मर्सू
४- जुंडळ
५- भट्ट
६- चणा
७- तिल
सट्टी तैं बि भुजे जांद पण वान्खूण चूड़ा बुल्दन
बुखणु मा भुज्याँ भ्न्गुल-तिल , अखोड़, गुड़ रळऐक बुकये जांद .
Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai, India, 2010

हिमालय बचावा

आज आवाज उठणि छ,
कैन करि यनु हाल वैकु,
हे चुचों! यनु त बतावा,
हिम विहीन होणु छ,
जख डाळु नि जम्दु,
हिमालय सी पैलि,
वे हरा भरा पहाड़ बचावा,
बांज, बुरांश, देवदार लगावा,
कुळैं कू मुक्क काळु करा,
जैका कारण लगदि छ आग,
सुखदु छ छोयों कू पाणी,
अंग्रेजु के देन छ कुळैं,
पहाड़ हमारा पराण छन,
वैकी सही कीमत पछाणा.

कनुकै बचलु हिमालय?
वैका न्योड़ु गाड़ी मोटर न ल्हिजावा,
तीर्थाटन की जगा पर्यटन संस्कृति,
जैका कारण होणु छ प्रदूषण,
पहाड़ की ऊँचाई तक,
ह्वै सकु बिल्कुल न फैलावा.

पहाड़ कूड़ा घर निछ,
प्रकृति का सृंगार मा खलल,
वीं सनै कतै न सतावा,
ये प्रकार सी प्रयास करिक,
प्यारा पहाड़ बचावा,
हिंवाळी काँठी "हिमालय बचावा".

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
2.7.2010 को रचित....दिल्ली प्रवास से

"नाती की पाती"

दादा चश्मा लगैक,
पढ़ण लग्युं छ,
"नाती की पाती",
क्या होलु लिख्युं?

नाती लिखणु छ,
दादा जी क्या बतौण,
तुमारी याद मैकु,
अब भौत सतौणि छ,
बचपन मा तुम दगड़ी,
जू दिन बितैन,
अहा! उंकी याद अब,
मन मा औणि छ.

आज भि मैं याद छ,
जै दिन मैन ऊछाद करि थौ,
तब आपन मैकु,
पुळैक खूब समझाई,
पर मेरा बाळा मन मा,
उबरी समझ नि आई.

अब मैं बिंगण लग्युं छौं,
आपसी आज दूर हवैग्यौं,
पुराणी यादु मा ख्वैग्यौं,
अब मैं जब घौर औलु,
चिठ्ठी मा जरूर लिख्यन,
क्या ल्ह्यौण तुमारा खातिर,
अब ख़त्म कन्नु छौं पाती,
तुमारा मन कू प्यारू,
मैं तुमारु नाती.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
२१.८.२००७ को रचित....दिल्ली प्रवास से

उसयाँ बुखण

Kumaoni Food, Garhwali Food, Ethnic Food of Uttarakhand , Himalayan Food
उसयाँ बुखण
Bhishma Kukreti
बुखण माने जू बुकये जांद . . बुखण द्वी बनिक होंदन . अनाज/दाळऊँ तैं भुजिक बणयाँ बुखण या अनाज/ दालुं उसयाँ बुखण .
अनाज / दाळ तैं इखुली या रल़ो मिसों करिक उसए जांद अर उसयाँ बुखणु मा पिस्युं लूण मर्च मिलैक उन्नी खै ल्याओ
निथर बुखणु तैं छौंके बि जांद . छौंकणोऊ तेल मा पैलि भ्न्गुल को छौंका लगये जांद फिर बुखणु तैं लूण मर्च, मैणु मसालों दगड़ छौंके जान्दन
उन दाळ क उसयाँ बुखणु तै पीसिक मस्यट बि बणदू जंक साग बणदू भर्याँ रूटळ/स्वाळ बणदन
उसयाँ बुखण कुणि अनाज :----
मुगरी
दाळ क बूखण ::---
गौथ
सूँट
लुब्या (राजमा )
रयांस
चणा
भट्ट
Copyright @ Bhishma Kukreti, mumbai, India, 2010

पहाड़ी लोग केकड़ा क्यों नहीं खाते हैं ?

Kumaoni Dishes, Garhwali Dishes, Ethnic Dishes of Uttarakhand, Himalayn Dishes
पहाड़ी लोग केकड़ा क्यों नहीं खाते हैं ?
Bhishma Kukreti
उत्तराखंड में पीने के पानी (धार) के आस पास केकड़े (गिगुड़ , Crabs) बहुतायत में पाए जाते हैं .
किन्तु पहाडी केकड़े नहीं खाते हैं. हाँ मैदान में विषेशत: मुंबई में खा लेते हैं .
पहाड़ों में केकड़ा न खाने का मुख्य कारण है कि केकड़ा (गिगुड ) भूतों का खाना माना जाता है.
भूत पूजै में केकड़े को भूतों के खाने के साथ चढाया जाता है . यही कारण है कि पहाड़ों में केकड़ा नहीं खाया जाता है
इखाडी/इकहड़ी रोटी भी नहीं खायी जाती है
इकहडी अथवा इखाड़ी रोटी का अर्थ है है कि जो रोटी एक ही और पकाई जाती हो . पहाड़ों में इखाड़ी रोटी भी नही खाई जाती है क्योंकि
इखाड़ी रोटी भी भूतों के भोजन स्वरुप भूत पूजा में चढाई जातीं है (खासकर बच्चों पर लगे भूत शांति हेतु )
Copyright @ Bhishma Kukreti , Mumbai, India, 2010

Garhwal ka Jatiy Itihas -5

History of Garhwal
Garhwal ka Jatiy Itihas -5
Brief History about Pandas of Devprayag ( Diprayagi Pandon ka Itihas )
Original write up : Mohan Lal Babulkar
Presented by Bhishma Kukreti
the histroy of Devprayagi Pandas start from the time when Jagadguru Shankracharya established Badrinath /kedarnath dham and established Raghunath Ji temple in Dev Prayag around 800 AD. from that time, the Brahmins related to Shankrachary Math (South India) started to come to Garhwal and settled there including Dev Prayag
There are eight Thoks of Dev Prayagi Pandas in Dev Prayag (Many are migrated to many places )
Thok -1 : Pujari and Karnatak
Thok-2 : Arjunya, , Raibani and Babuliye
Thok-3 : Akhniyan and Maliya
Thok-4: Kothiya (Later on settled in Koti)
Thok-5- Todriya
Thok -6 -Tailang, , Tevadi, Bandoliya and Chaube
Thok-7- Dhayani or Dhyani (now, settled in many places as dev Prayagi Bhatt )
Thok 8- Maharashtra and Palyal
These Thoks are no mre in existence:
Pujari bans and Bavn Hajai
Mohan Babulkar states that these Pandas are Drvid, Tailang, karnatak, Guad or Maharashtrian

Himalayan Dishes, Recipes , Food, Dishes of Uttarakhand

Himalayan Dishes, Recipes , Food, Dishes of Uttarakhand , Recipes of Garhwal, Food of Kumaon
फाणु
Bhishma Kukreti
सामान्यत: फाणु गौथ (गहथ , कुलथ ) कु बणदू छौ . उन मूंग, हरड़ , उड़द , सूंट, मसूर कु बि फाणु बणद .
फा णु बणाणा खुण दाळ तैं भिजये जांद , फिर सिलवट/मिक्सी मा पीसिक मस्यट बणये जांद
फिर आंच मा धरीं कढ़ाई मा तेल डाळीक कुछ मस्यट से पट्यूड़/ या पकोड़ी बणये जांद .
पट्यूड़/ पकोड़ी तैं अलग धौरिक मस्यट तैं तेल में भुने जांद अर फिर लूण, मैणु मसाला आदी क दगड़ पाणि मिलैक थड़कए जांद . दगड़ मा
कट्यां हरा पत्ता ( प्याज, कण्डाळी , पलिंगु, मूल़ा, खीरा टुखुल ) बि डाल़े जान्दन .
जब फाणु तैयार ह्व़े जावू त फाणु मा पटुड़ी क टुकडा या पक्वड़ी डाळ दिए जांद
Copyright @ Bhishma Kukreti, Mumbai, India, 2010

टेमरू कू लठ्ठा

अति प्यारू होन्दु छ,
नरसिंग देवता तैं,
जोगी सन्यास्यौं कू,
बाठ हिटण वाळौं कू,
हर घर मा रखदा छन,
हमारा पहाड़ मा,
नरसिंग देवता का,
मंदिर मंडुला मा,
झोळी का दगड़ा.

बद्री-केदार धाम मा,
चढौन्दा छन जात्री,
प्रसाद का रूप मा,
टेमरू की प्यारी पत्ती,
धोन्दा छन दांत,
टेमरू की डण्डिन,
ज्व दांत का खातिर,
तंत दवै भि छ.

आज येका अस्तित्व तैं,
पहाड़ मा खतरा पैदा ह्वैगी,
कथ्गा काम कू छ टेमरू,
धीरू-धीरू आज ख्वैगी.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित दिनांक: १.७.२०१०)

जौन नि पस्सारी कबि हथ

सरय साल
बनै जु पुनगड़ी पटली
ये बस्गाल
सब्य बगिगैन |

ड़ाला ब्वाटों
दे खाद पाणि
लगीं फल
त सैडीगैन |

छाई छ जु कूड़ी
चून्दों क डौर से
वूंकी पाल्युन पर
तिडवाल पोडीगैन |

नोन्याल जु गै छ
पढ़णखु
वून्का बस्ता
घौर पोछिगैन |

अन्न पाणी
दवा - दारु
पौंछि नि सकदू
सड़की रयाड़
बनीगैन |

असमानमा
रिन्ग्दा बैरा गरूढ़का
आन्खाबी
फूटीगैन |

जौन नि पस्सारी
कबि हथ
कैका अग्ने
वी आज
मोहताज़
ह्वेगैन |

विजय मधुर