आज की भाग दौढ़ की जिंदगी में बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को अनियमित दिनचर्या, खान -पान, रहन-सहन आदि कारणों से कई प्रकार के रोगों ने आ घेरा हैं. आज के समय में किस को क्या रोग हो जाये, कोई कुछ नहीं सकता. इसके बावजूद हमारे आस-पास ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो लोगों के दर्द के परवाह न करते हुए अपने आप को स्वस्थ बताते हुए लोगों का मजाक उडाने में जरा भी पीछे नहीं रहते. ऐसे लोगों की बातों से कोई दुखी आदमी क्या सोचता है, उसी सन्दर्भ में कुछ पंक्तियाँ ........
जब कोई किसी अच्छे -खासे दिखते
पर बार -बार बीमार होते आदमी से पूछता है -
'कैसे हो '
तो उसे होंठों पर ' उधार की हंसी'
लानी ही पड़ती है
और मीठी जुबां से
'ठीक हूँ '
कहना ही पड़ता है
अगर जरा भी जुबां फिसल गयी
और उसने का दिया
'नहीं वह तो बीमार है '
तो कुछ लोग समझ बैठते हैं
कि अब वह बेकार है
फिर वे कहाँ कहने से चूकते हैं
दुनिया भर की दवा-दारू बताने लगते है
कहने लगते हैं -
'अरे भई! तुम तो कुछ भी खाते -पीते नहीं हो
फिर भी बीमार हो
अरे हमें देखो! हम तो सबकुछ खाते-पीते है
पर कभी तुम्हारी तरह बीमार नहीं रहते हैं
अरे भई! सबकुछ खूब खाया -पिया करो
और हमारी तरह सदा स्वस्थ रहा करो ''
बेवस होकर वह बेचारा सोचता है कि -
अच्छे -खासे दिखते आदमी को
जब कोई रोग लग जाता है
तो क्यूँ? वह कुछ लोगों के लिए
अच्छा -खासा मजाक सा बन जाता है
क्यूँ वे लोग आकर दवा-दारू बताने लगते है
जो ज़माने भर के बेदर्द हुआ करते है.
copyright@KavitaRawat,Bhopal
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