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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, September 16, 2009

"ज्वानि का बाद"

औजि ब्वडा कू ढोल बजि,
तब पैटि थै बारात,
लगि लंगट्यार, पौणौं की,
ज्वानि की छ या बात....

बामण दादान मंत्र पढिन,
तब ह्वै थान फेरा,
ब्योलि कू थौ, मुक्क ढ़कैयुं,
खुशि थै मन मा मेरा.....

दगड़्यौन खाई दारू माशु,
ब्यो का दिन की बात,
ब्योलिन लिनि बचन मैसि,
निभौणु होलु साथ......

जिंदगी की, गाड़ी अग्वाड़ि,
ज्वानि कू जोश,
कुजाणि कब, बितिगी सारी,
अब औणि छ होश....

बितिगी अब, सुणा हे दगड़्यौं,
अब छ गधा चाल,
भारी छ बितणी,
"जिज्ञासू" कू कवि मन,
पौंछ्युं छ, वे छबीला गढ़वाल....


(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
13.9.२००९, दूरभास:9868795187
E-Mail: j_jayara@yahoo.com

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