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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, September 16, 2009

"बरखा तूने"

पर्वतवासियौं, शहरवासियौं,
ग्रामवासियौं, कृषकों को,
पहले बिन बरसे,
खूब तरसाया,
उड़ गई नींद,
सत्तासीन सरकार की,
खूब छकाया,
क्या अहमियत है मेरी?
यह भी बताया,

और अब इंतज़ार के बाद,
प्यासी धरती को,
प्यासे पर्वतों को,
सभी को, खूब हर्षाया,
बूँद-बूँद बचाओ मेरी,
सबक लेकर सभी,
अपना सन्देश बताया.

लेकिन!
अपने शहर दिल्ली में,
"जिज्ञासु" और मित्रों को,
बरस कर भी सताया,
बरखा तूने.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
11.9.२००९, दूरभास:9868795187
E-Mail: j_jayara@yahoo.com

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