ज़िन्दगी को
उन्मुक्त हो जाने दो
प्रेम-गीत
गाने दो
बेरोकटोक
हँस ने दो
खिल खिलाने दो
बिखरने दो अलमस्त
समेटो मत
बह जाने दो
हवाओं में
उड़ती है
उड़ जाने दो
लहर-लहर
तैरती है
तैर जाने दो
फूल सजे हैं
रंग बिखरे हैं
पग सधे हैं
नूपुर बँधे हैं
रोम-रोम सिहरन है
रग-रग थिरकन है
मृदंग बज जाने दो
आने दो
जिन्दगी को
लय में आने दो. ....
@ कमला विद्यार्थी
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ReplyDeleteसुंदर भाव।
ReplyDelete6ठी पंक्ति में 'हँसने' एक शब्द नहीं होना चाहिए?