मैं दर्पण
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मैं दर्पण
मेरा परिचय सिर्फ़ इतना
कि मैं सच बोलता हूँ ,
मगर आज मेरे अस्तित्व पर
सवाल खड़े है,
कि मैं अपने मूल भूत स्वभाव से
भटक गया हूँ,
मैं सच नहीं बोलता अब
सुगबुगाहट सी हवा में कहीं चली आ रही है
मैं दर्पण वो नहीं दिखा रहा जिसके लिए
कभी मेरा स्वाभिमान अटल था,
शफ़क़, उजला, निश्छल, निर्भीक नहीं रहा अब मैं
ऐसा क्या हुआ कि मैं बिक गया हूँ
अनेक रंगो के लिए,
मैं इतना खुदगर्ज क्यों हो गया हूँ,
मैंने अब दो दो चेहरों से सौदा किया है
सौदा प्रलोभन का, महत्वाकांक्षा का,
और आत्मसम्मान को गिरवी रखने का,
झूठ को दिखाकर सच को छुपाने का
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ज्योत्स्ना जोशी
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