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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, September 19, 2019

अबके सावन

अबके सावन ,,,,,,,,,,,,

    ,,,,, अबके सावन में हमदम
         हम यूँ जज़्बात में भीगेगे ,,,,

           तुम दूर रहो  या पास रहो
           हम ख्य़ालो में थिरकेंगे ,,,,,
         
          एक एक बूँद से आपना पन हो
             यूँ फुहारों संग बात करेंगे ,,,,,

          घन उमड़ आये जब रिक्त व्योम पर
          तब हम खुद को सम्पूर्ण समझेंगे ,,,,

        आभासे यूँ उदगार हृदय का
         जब बदरा अपने मद में गरजेगा ,,,,

         जीत लिया है एक दूजे को
         उत्कंठित होता इन्द्रधनुष तब क्षितज
          से झांकेगा ,,,,,,
    
         रोम रोम यूँ गीत गाये
          वन उपवन मुस्कायेगा ,,,,,,

        कलरव करते खग चित्त खोल रहे
       वो अन्तर्मन तक बस जायेगा ,,,,,

         मौसम की अंगड़ाई पर तुम
        मुझमें होकर मुझको खोजोगे ,,,,,

     अभिनंदन कर नूतन सृजन सृष्टि का
       उर विहंग होकर प्रीति लुटायेगा ,,,,,,

      अबके सावन में हमदम
        हम जज़्बात में भीगेगे ,,,,,,,,,,

         .............. ज्योत्स्ना जोशी ..................

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