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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 29, 2019

असूजे मैनी धाण काज-अर रामलीला

निमड्दा असूज की मैनी अर जड्डा कु आगमन, पुंग्ण्यूं मा बारनाज का बीच, हमारा गौं-मुल्क मा, रामलीला कु आगाज होंदू छो, बढी-चढी लोग छुट्टी लीतै ये मौका पर जरूर घौर ओंदा छा।
रामलीला हमारा पहाड़ मा कभी मनोरंजन कु मुख्य साधन होंदि छे, एक तरफ असूजा मैनै काम धामे दौडाभागी, लवैमंडै धुंण्सा-फुंण्सि, तखि नौ नाज अर बुखणां, चूडा भूजण कूटणे आपाधापी।
दिनभरे धांणी मा पळेख्या लोखू तै मनोरंजन करीतै, पळोख बिसरौण कु एक बेहतरीन साधन छे रामलीला।
रामलीला का पात्रों कि रिहर्सेल एक हफ्ता पैलि बटि जोरशोर से शुरु होंदि छे।
हारमोनियम पर रात-रात तक बैठी भौंण चैक करी सुर जणगुरु बड़ी साधना कर्दा छा। यि जणगुरु कै दिन-रात मैनत करीतै, कै आवाज परखदा छा, तब सेट होण पर ही फाइनल कर्दा छा।
करड़ी मोटी आवाज तै, रावण, मेघनाथ जन पात्रों तै, जबकि सुरिलि हल्की पिच की आवाज सीता, सुनैना जन महिला पात्रों तै दिये जांदि छे।
रावण-कुंभकरण का कुछ पात्र इथ्या फैमस होंदा छा, कि यथ-वथ गौं क्षेत्र मा भी न्यूतेंदा छा, रामलीला वास्ता।
तबार बिजली की छवीं-बथ, खाली समाचारों मा ही सुंणेदि छे या सीमित छे,तब पेट्रोमैक्स अर छुला जगै तै सैरि रात रामलीला निभौंदा गौं का सकल कार्यकर्ताओं का जज्बा आज की दिखौटि दुनिया मा मिशाल होंदा छा।
पेट्रोमैक्स का मैंटल मिस्योंदा अर मर्त्योळ भन्ने मा के टैम लगदू छो। रामलीला कु मंडप सजौण बणौणौ तै सैरा गौं बटि कैका तिरपाल कखि बै चद्दर कुर्सी दरी अर साडी लोग अफ्वी ल्येक ओंदा छा
गौं मा तिरपाल पेट्रोमैक्स दन्ना जन सामान फिक्स रंदू छो कि के मौं का यख बटि क्या ओलू।
बडी जिम्मेदारी का साथ सैरा गौं का कठ्ठा आठ दिनों कु ये कार्यक्रम तै निभोंदा छा।
रात-रात तक चाय बणदि छे अर लोग रामलीला देखीतै विशेषकर नारी शक्ति अपडि खैरि बिपदा अर दिनभरे पळोख फुन चुळे द्येंदा छा।
आज जु हिस्सा टैम हमुन टीवी सिरियल तै अर मोबैल तै दीन्यू च ते समै पर धर्म कर्म अर मनोरंजन तीनों कु समागम यन कार्यक्रमों तै दिये जांदू छो।
धन प्रबंधन पर भी खूब ध्यान रंदू छो, लाल रिबन हर दिन पर्दा पर बंध्ये जांदू छो गौं का संपन्न लोगों तै मनेतै रिबन कटवै जांदू छो अर पैसा भी कठ्ठा होंदू छो।
बीच बीच मा लोग दान दक्षिणा भी द्येंदा छा त दानी दाताओं का नाम की घोषणा भी कर्ये जांदि छे।
सीता की चौपाई -  'पूजन को अंबे गौरी,  चलियो  सखी चमेली-----'
रावण कु डायलाॅग   ---'-चलता हू जिस जमीं पर--भूचाल आ जाता है---'
जख परशुराम अर लक्ष्मण संवाद मा भी दर्शक खूब देर तक चिपक्या रंदा छा तखि लक्ष्मण सूर्पणखा संवाद 'नाक कटी नकटी बन आई---' मा हंसी भी नि रोकि सकदा छा।
बच्चा त सूर्पणखा की हैंसी अर रूदन देखी डरि जांदा छा!
एक सीन का बाद, जब हैका सीन की तैयारी होंदि छे, त बीच- बीच मा हंसोणो तै छोटा मोटा ड्रामा भी कर्ये जांदा छा,
 हनुमान  सुग्रीव की बांदर सेना अर राजा का मंत्री खूब मजा गडौंदा छा,
अशोक वाटिका मा जब सीता माता बैठी रंदि छे, अर हनुमान जी औंणा त सीन मा खूब फल भी लटकांया रंदा छा, हनुमान जी कुछ फल खांदा, कुछ दर्शकों तक चुळोंदा छा, लोग प्रसाद मांणी संभाल्दा छा।
कबि, नै कलाकार त अपणी चौपाई अर सीन बिसरि जांदा छा त पर्दा पैथर अर अगल-बगल बैठ्या दगडया ही अगने याद दिलै द्योंदा छा। 
मंच रावणा पात्रा हिसाबन तैयार होंदू छो, खूब डील-डौल अर हैना-फैनी करीतै रावण, कै बरसों तक, अपडु स्थान गौं अर क्षेत्र मा पछांण बणै रखदू छो, लोग अजूं भी याद कर्दा रावण मेघनाथ राम का पात्रों का रंगमंच तै।
महिला कु पात्र भी,मर्द खूब बढ़िया निभोंदा छा,
चौंक तिरवाळ-धिस्वाळ भीड़ जमा रंदि छे, गौं मा नवयुवकों तै अपडि प्रतिभा दिखौणो मौका ये मंच से ही मिलदू छो, जख देखदरा भी अपडा, सुणदरा, सिखंदरा, अर निभंदरा भी अपडे रंदा छा।
गायन अर रंगमंच का ये स्टेज बटि भगवान श्री राम का आदर्श नै छवाळि तक पौछदा छा, पीढीयू कु गैप एक हवे जांदू छो,  जब नाती, दादा, पिताजी,बेटा एक साथ बैठीतै देखीतै अर पात्र निभैतै भगवान राम का गुणगान कर्दा छा। बडा बुजुर्ग कु अनुभव नै पीढ़ी तक सरकुदू छो, नै काध्यूं तक आयोजन की जिम्मेदारी जांदि छे।
दूर-दूर का गौं बटि भी लोग खूब बढि-चढीतै दर्शक बणी, रामलीला देखण औंदा छा, अर मैमान मांणी खूब सत्कार कर्दा छा तौंकू।
रामलीला आंठवा दिने तैयारी जरा अलगे होंदि छे। राजतिलक का दिन राम दरबार सजदू छो, थोड़ा दूर बण बटि जब राम परिवार स्टेज मा ओंदू छो, त लोग बड़ी भक्ति-आस्था से, पूरा दरबार कु आशीर्वाद लैंदा अर दगडि यूं सात दिनों का मनोरंजन तै याद करी खुदैंदा भी छा।
यी खुद मा, गौं कु आपसी माहोल अर एक-दुसरा से जुड़ाव रात-रात तक चौक-खौळा मु बैठी निःस्वार्थ भगवान राम की भक्ति मा मगन, गौं कु माहोल ही धार्मिक हवे जांणे खुद समांईं रैंदि छे।
आज जख हमारा अपडू तै ही समै निकळन भौत मुश्किल होयूं च, तखि नब्बे का दशक का दौरान की यि रामलीला बटि दूर हम कुछ टीवी-सिरियल अर सोशल- साइटों तक ही सीमित हवेगिन।
अब नौकरी,पढै अर डिजिटलाजेशन का बीच सिर्फ    गारा- सिमेंट अर मकान तै सोचदा मनखी तै रामलीला, अब त बीत्या पुरांणा दिनों याद समौंण बणी!
रामलीला कु इतिहास हमारा बीत्या जमाने की समौंण दगडि हमुतै गर्व भी मैसूस करोंदि, जख पौडी की रामलीला विश्व विरासत मा शामिल च, तखि श्रीनगर की रामलीला कु इतिहास भी भौत खास च। जु अजूं तक भी जोश का दगडि संचालित कर्ये जांदि।
कलाकार अर प्रतिभा की बात कर्ये जौ त गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी जन कलाकार अर प्रीतम भरतवाण जन जागर सम्राट कु उद्भव मा स्थानीय रामलीला मंचों कु अहम योगदान रै। कला- प्रतिभा अर एकता की मिशाल, यूं मंचों की बदौलत ही हमुतै कभी गौं मा अकेलापन मैसूस नि हवे। लोग छज्जा-तिबार, चौक तिरवाळ तक सौल- पंखी ओढीतै बेठया रंदा छा।
खौला का यौं तरफ आग भी सुलगणी रंदि छे त ढोले पूंड भी तांचणी रंदि छे।
आज जख गौं मा विकासा नौं, मीटिंग मा खोजेतै चार लोग भी कठ्ठा कन मुश्किल च, तखि रामलीला जन मंचों पर सैरु गौं घिर्र कठ्ठा हवेतै आठ दिनों तक बिना लैट संसाधनों का भी पूरी रामलीला निभै जांदा छा।  ना झगडा, ना तेरु-मेरु, ना जाति पाति भेद भौं, सबि मिलिजुलि दर्शक बणी प्रोत्साहन कर्दा छा।
हमुतै अपडि यन संस्कृति पर सदानि गर्व रौलू।।।
-----अश्विनी गौड़ दानकोट अगस्त्यमुनि बिटि-----

Thursday, September 19, 2019

मैं दर्पण

मैं दर्पण
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  मैं दर्पण
   मेरा परिचय सिर्फ़ इतना
    कि मैं सच बोलता हूँ ,
    मगर आज मेरे अस्तित्व पर
    सवाल खड़े है,
    कि मैं अपने मूल भूत स्वभाव से
    भटक गया हूँ,
     मैं सच नहीं बोलता अब
     सुगबुगाहट सी हवा में कहीं चली आ रही है
     मैं दर्पण वो नहीं दिखा रहा जिसके लिए
     कभी मेरा स्वाभिमान अटल था,
     शफ़क़, उजला, निश्छल, निर्भीक नहीं रहा अब मैं
     ऐसा क्या हुआ कि मैं बिक गया हूँ
      अनेक रंगो के लिए,
       मैं इतना खुदगर्ज क्यों हो गया हूँ,
        मैंने अब दो दो चेहरों से सौदा किया है
       सौदा प्रलोभन का, महत्वाकांक्षा का,
       और आत्मसम्मान को गिरवी रखने का,
         झूठ को दिखाकर सच को छुपाने का
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                                       ज्योत्स्ना जोशी

तुम कृष्ण हो ।

तुम कृष्ण हो ।
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तुम उन्मुक्त अल्हड़ बेफिक्र
   प्रेम की दास्तान हो,

  बंद कमरो में पनपती
  हवस की भूख नहीं  ,

  तुम यमुना के तीर की
   विरह वेदना की तीस हो
   जरूरत की चादर में लिपटा
     आलिंगन नहीं,

   तुम राधा का समर्पण हो
   उसके निश्छल नयन का ग़ुरूर हो
    समझौता और पश्चाताप की अग्नि में
      जलती हुई भूल नहीं,

     तुम बंशी के रन्ध्रों से आह्लादित स्वर
       और चहुँ दिशा में विद्यमान प्रेयसी के लबों पर
       विश्वास से सजा गीत हो ,
      
         कि वो हर साज पर गाये
           हाँ मैं प्रेम में  हूँ  !!!!!!!!!
                   क्योंकि तुम कृष्ण हो ।
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                                           ज्योत्स्ना जोशी
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ये मेरा अभागा पहाड़

ये मेरा अभागा पहाड़
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   अश्कों की बरसा
     हर बरसात करता ,
     त्राही त्राही कर लाचारों को
     बेघर करता,
     हुक्मरान की झूठी संवेदनाओ तले
     अपने बेबस अधरों को शीलता हुआ,
      गिरता, सम्भलता फिर कण कण बिखरता,
       आपदाओं का इतिहास पन्ना दर पन्ना गढ़ता
      जीने को बिलखता, जीवन को तरसता
       नयनो के सम्मुख सब लुटता देखता
        सरकती जमी पर सियासत का आडम्बर सहता
         शिलान्यास के मुखोटे पर वेदना की अनंत
         चादर लपेटता,
        अंजान, अबोले इंसानों को ताकता,
         रोदन, मर्म ,किलकारियों से गूंजता
           ये मेरा अभागा पहाड़,,

          
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                                           ज्योत्स्ना जोशी
                                                      ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अबके सावन

अबके सावन ,,,,,,,,,,,,

    ,,,,, अबके सावन में हमदम
         हम यूँ जज़्बात में भीगेगे ,,,,

           तुम दूर रहो  या पास रहो
           हम ख्य़ालो में थिरकेंगे ,,,,,
         
          एक एक बूँद से आपना पन हो
             यूँ फुहारों संग बात करेंगे ,,,,,

          घन उमड़ आये जब रिक्त व्योम पर
          तब हम खुद को सम्पूर्ण समझेंगे ,,,,

        आभासे यूँ उदगार हृदय का
         जब बदरा अपने मद में गरजेगा ,,,,

         जीत लिया है एक दूजे को
         उत्कंठित होता इन्द्रधनुष तब क्षितज
          से झांकेगा ,,,,,,
    
         रोम रोम यूँ गीत गाये
          वन उपवन मुस्कायेगा ,,,,,,

        कलरव करते खग चित्त खोल रहे
       वो अन्तर्मन तक बस जायेगा ,,,,,

         मौसम की अंगड़ाई पर तुम
        मुझमें होकर मुझको खोजोगे ,,,,,

     अभिनंदन कर नूतन सृजन सृष्टि का
       उर विहंग होकर प्रीति लुटायेगा ,,,,,,

      अबके सावन में हमदम
        हम जज़्बात में भीगेगे ,,,,,,,,,,

         .............. ज्योत्स्ना जोशी ..................

Wednesday, September 18, 2019

पौराणिक गढ़वाली लोकगीत

ये गीत जो की अब सुनने को न मिलते एक जमाना था जब गाँव की शादियों में ये सब चलता था । बारात के आगे आगे आदमी ढोलकी ले कर महिलाएं घाघरा पहनके इन्ही सुंदर सुंदर गानों में नाचा करते थे उस समय बैंड बाजों का रिवाज नहीं था इन्ही की सुंदर प्रस्तुति हुआ करती थी सच में कितना अच्छा समय था । अब ये सब तो शायद कोई भी नहीं जानता होगा ||


उत्तराखंड संस्कृति चैनल आपको इन भूले बिसरे गीतों से आपकी पुरानी याद ताजा करने की कोशिश करेगा .

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Sunday, September 15, 2019

शिक्षा पर्यटन के प्रेरक कारक 

शिक्षा पर्यटन के प्रेरक कारक 

Motivational factors for Education Tourism Development 


उत्तराखंड में शिक्षा पर्यटन संभावनाएं  - 8 


Education Tourism  Development in Uttarakhand -8 

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना -  411

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management - 411

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती 

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  शिक्षा पर्यटन के मुख्य प्रेरक कारक मुख्य हैं -


 स्थान की छवि ( जात -पांत ; भेदभाव आदि ) 


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कम रिस्क 

 विदेशी भाषा ज्ञान प्राप्ति 

 भौगोलिक सुगमता या सुलभता 

सांस्कृतिक सुगमता 

उच्च शिक्षा में उच्च छवि अथवा विशेष शिक्षा जो देस में उपलब्ध न हो 


सुरक्षा 


अंतरास्ट्रीय संस्कृति तक पंहुच 

देस में विशेष शिक्षा का आभाव 

रोजगार प्राप्ति में सुगमता या अधिक लाभ 

प्रवेश व वीसा आदि की सुगमता 

शिक्षा व रहवास की कीमत 

शिक्षा स्थल में  शिक्षा के साथ कमाई के साधन 

शिक्षा उपरान्त विदेश में वसने की सुविधा 

समाज का प्रभाव 

    

Copyright@ Bhishma Kukreti 2019


Developing Education Tourism in Pauri Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Haridwar Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Dehradun Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Uttarkashi Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Tehri Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Chamoli Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Rudraprayag Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in  Udham Singh Nagar Kumaon , Uttarakhand; Developing Education Tourism in  Nainital Kumaon , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Almora  Kumaon , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Pithoragarh  Kumaon , Uttarakhand; गढ़वाल में शिक्षा पर्यटन विकास ; कुमाऊं में शिक्षा पर्यटन विकास , हरिद्वार में शिक्षा पर्यटन विकास ; देहरादून में शिक्षा पर्यटन विकास , उत्तरी भारत में  शिक्षा पर्यटन विकास की स्म्भावनाएँ ; हिमालय , भारत में शिक्षा पर्यटन की संभावनाएं 


ज़िन्दगी  को

ज़िन्दगी  को

उन्मुक्त हो जाने दो

प्रेम-गीत 

गाने दो 

बेरोकटोक 

हँस ने दो 

खिल खिलाने  दो

बिखरने दो अलमस्त 

समेटो मत

बह जाने दो 

हवाओं में 

उड़ती है 

उड़ जाने दो

लहर-लहर

तैरती है 

तैर जाने  दो

फूल  सजे हैं 

रंग  बिखरे  हैं 

पग सधे हैं

नूपुर  बँधे हैं

रोम-रोम  सिहरन है 

रग-रग थिरकन है 

मृदंग बज जाने  दो

आने दो 

जिन्दगी को

लय में  आने दो. ....


@ कमला विद्यार्थी 


Shukracharya: The first management Guru of the Earth

Shukracharya: The first management Guru of the Earth


(Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series -1


: Bhishma Kukreti (The management Historian)


 Today, management authors cite examples of many Management Gurus. However, the first management Guru had been Shukracharya.


 Mahabharata is the first recorded book that deals first time on King managing the kingdom.  Mahabharata is the first recorded book that refers first time the Neeti or policy or code of conduct or management (mostly King or Kingdom officers or mangers). 


    In 59th Chapter of Mahabharata of Shanti Parva (After the death of Bhishma and Bhishma offering Management lessons to Yudhishthara) , there is discussion on Neeti or Policy or management science  In that chapter, the narrator states that when in the earth there was loss for righteous deeds , Gods reached to Prajapati and requested him to bring back the Dharma (righteous deeds) . Prajapati create a Shastra that is Neeti Shastra (Policy, morality management) or Dandneeti.


  It is stated in  Shukraneeti book (1) that initially, Shiva created Vaishalaksha Neetishastra comprising 10000 shlokas. Indra condensed that Grantha and created Bahudantak shastra comprising 5000 shlokas. After that, Gods  Guru Brihaspati condensed Bahudantak and created Baharspatya Grantha comprising 3000 sholkas. Later on Shukracharya ( Guru of Devils) condensed Baharspatya Grantha and created Shukraneeti comprising of 2200 shlokas.


  Shukraneeti was essential for Kings to manage the Kingdom.  From that time , other Kingdom management gurus as Vidur , Prahsar, Bhishma , Chanakya folloed Shukraneeti too. Today too, Shukraneeti is essential for chief executive officers , prime ministers, ministers, managers at various levels to follow Shukraneeti for managing the institution.


Shukraneeti deals with the rights and duties of the King (CEO); Rights and Duties of prince (second in command); Characteristics of Nation and King (Institution and CEO); Characteristics of friend and enemy; Resource management; Relationship between the King and the citizens (Relationship between CEO-staff- customers); Art and Knowledge; Common policies; King characteristics; defence mechanism ; army management (strategies) etc. All the above subjects of Shukraneeti are relevant today for all managers and CEOs .


  In the following chapters, this author will offer teaching of Shukraneeti relevant to politicians, administrators, managers and policy makers at all levels in all institutions including UNO.


  References


1-Shukraneeti (Neeti Vishayak ek Shreshtha granth) , Manoj Pocket books, Delhi , page Vishay pravesh 1-3)


      


Copyright@ Bhishma Kukreti, 2019


Guidelines for Chief Executive Officers; Guidelines for Managing Directors; Guidelines for Chief Operating officers (CEO); Guidelines for  General Mangers; Guidelines for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines for Executive Directors ; Guidelines for ; Refreshing Guidelines for  CEO; Refreshing Guidelines for COO ; Refreshing Guidelines for CFO ; Refreshing Guidelines for  Managers; Refreshing Guidelines for  Executive Directors; Refreshing Guidelines for MD ; Relevancy of Shukraneeti for CEOs


सपनों की वो सड़क

सपनों की वो सड़क

अरे बेटा उठ जा जल्दी तुझे जाना भी है, अपने काम पर म कहते हुए संदीप की मॉ ने राजन को उठाया। बेटा जल्दी कर पहली गाड़ी आठ बजे निकल जाती है।  देर हो जायेगी तुझे, यह आवाज संदीप की कानों में गूूंज रही थी लेकिन वह बिस्तर में करवटें बदलने में लगा था, उसकी ऑखे बार बार बंद हो रही थी, इतना ठंडा मौसम और वह भी खिड़की के सामने चारपाई लगी हुई थी। संदीप को दिल्ली अपने कर्म स्थल के लिए लौटना था।

     चार दिन की छुटटी लेकर गॉव आ रखा था।  संदीप का गॉव नीलकंठ के पास जोगियाण गॉव में था, उसका गॉव सड़क के सात किलोमीटर दूरी पर था, महादेवसैण जहॉ पर गॉव का कच्चा रास्ता सड़क पर आकर मिलता था वहीं पर आकर गाड़ी के दर्शन होते थे।  संदीप के जैसे बहुत से साथी घर आना चाहते थे लेकिन महादेव सैण से 07 किलोमीटर की खड़ी चढायी को देखकर उनकी योजना धरातल पर नहीं उतर पाती थी।

      जोगियाणा गॉव जो नीलकंठ धाम के नजदीक होते हुए भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से कोसों दूर था। गॉव में जब आता तो गॉव से वापस दिल्ली जाने का मन नहीं करता और जब दिल्ली चला जाता तो गॉव आने का मन तो करता लेकिन खडी चढायी हमेशा पैर पीछे खींच लाती। संदीप ने करवट बदली और फिर कुच्छ देर यही सोचता रहा कि यार जब उसकी दोस्त नेहा को पता चलेगा कि उसका गॉव सडक से इतनी दूर है तो क्या वह उससे शादी कर लेगी, बस इन्हीं सवालों का जबाब ढूढ रहा था उधर से पिताजी ने आवाज लगायी बेटा साढे 06 बज गये जल्दी तैयार हो जाओ नीचे उतरने में भी तो समय लगता है, गाडी किसी का इंतजार नहीं करती हैं वह निकल जायेगी तो फिर दो घंटे और रूकना पडेगा तुमको।  

     यह सुनकर संदीप मन मसोरकर उठा, मॉ ने वहीं पर चाय पकड़ाई वह पी और सीधे बाहर घूमने निकल गया।  सामने नीचे गंगा बह रही थी, हल्का सा बरसात का कोहरा लगा हुआ था, इधर गहथ के ऊपर जाले लगे हुए थे, और मंदिर के चारों ओर सुंदर लाल फूल खिले हुए थे। खेतों में कहीं मंडुआ तो कहीं झंगोरे की बाल झुकी हुई थी।  संदीप इन सबको देखकर बड़ा प्रसन्न हो रहा था और सोच रहा था कि अपना गॉव कितना सुन्दर है। दिल्ली मे जहॉ कोलहाल भरी जिदंगी और एक यहॉ शान्त वातावरण।

 लेकिन इस शान्त वातावरण का करना क्या है, एक अदद सड़क तक तो गॉव में पहुॅची नहीं है, किसी से बात करो तो सब कहते हैं कि यह यहॉ नेता बनना चाहता हैं। क्या गॉव में सड़क लाने पर चर्चा करना नेता हुआ, और जो नेता हैं वह यहॉ सड़क क्यों नहीं लाते इन्ही सब बातों में उलझा था कि सामने गॉव के एक वृ़द्ध व्यक्ति ने पूछा कि अरे संदीप कितने और दिन की छुट्टी हैं, दो चार दिन बाद ककड़ी खाकर ही जायेगा। संदीप ने कहा नहीं दादा जी मुझे आज ही जाना है दिल्ली।


      दोनो गॉव की सड़क पर चर्चा करते हुए घर आ गये, दादा जी ने बोला कि बाबा हमारे जीते जी यह सड़क आ जाती तो बढिया था कम से कम तुम लोगों को हमारे मरने के बाद महादेवसैण तक कंधें में लाश तो नहीं बोकनी पडेगी। बाकि तो जीवन के सारे बसंत चढाई चढते और उतरते कट गये। संदीप ने कहा दादा जी ऐसा मत कहो अभी तो आपको हमारे बच्चे भी संभालने हैं, उन्हेंं भी तो कहानी सुनाओगे, यह सुनकर दादा जी ने कहा अरे लाटा जब ब्याह करेगा तभी तो बाल बच्चे होगें, इसी हॅसी मजाक के साथ दोनों अपने अपने घर निकल गये। 

      संदीप घर आया फटाफट नहा धोकर तैयार हुआ मॉ ने मक्की को रोटी और चंचेडा की  सब्जी खिलाई और चार रोटी रास्ते के लिए रख दी।  संदीप ने पिताजी को प्रणाम किया मॉ ने उसके  बैग को सर पर रखकर आधे रास्ते तक छोड़ने आयी, संदीप को छोड़ने के लिए उनका पालतू कुत्ता कालू भी आगे आगे पूॅछ हिलाता हुआ जा रहा था। मॉ ने संदीप को आम के पेड़ जो गॉव की सीमा पर था वहॉ तक छोड़ा और वापस घर आ गयी। संदीप तेजी से दौड़ लगाते हुए महादेव सैण पंहुच गया।


       संदीप वहॉ से गाड़ी में बैठा और ऋषिकेश आया फिर वहॉ से बस से दिल्ली के लिए रवाना हो गया। दिल्ली पहॅचकर अगले दिन अपने ऑफिस गया तो उसकी सहकर्मी और उसकी दोस्त नेहा ने कहा अरे राजन आ गये तुम घर से। यार गॉव से आये हो तो गॉव से स्पेशल खाने पीने की चीज क्या ला रखी है। नेहा को संदीप ने इतना बता रखा था कि उसका गॉव नीलकंठ के पास है। नीलकंठ का नाम नेहा ने अच्छी तरह सुन रखा था, क्योंकि उसके मामा पिछले सावन में नीलकंठ आये थे। उसे लगा कि उसका गॉव भी सड़क के किनारे होगा। 

      इधर संदीप और नेहा में करीबीयां बढती गयी, नेहा ने तो संदीप के साथ शादी करने का फैसला तक कर दिया लेकिन संदीप ने कुछ नहीं कहा। उसका मानना था कि दिल्ली शहर में पली बढी लडकी क्या 07 किलोमीटर की चढायी चढना स्वीकार कर लेगी। एक दिन की बात होतो कोई बात नहीं लेकिन मुझे तो हर चार महीने में गॉव जाना होता है, इन चार महीनों मे नेहा दो बार तो मेरे साथ जायेगी ही तो वह जा नहीं पायेगी, फिर गॉव वाले मेरी मजाक उड़ायेगे।  बस इसी उधेडबुन में वह रोज नेहा को टालता रहता।  उसने सोचा यदि एक दो साल में गॉव में सड़क बन गयी तो नेहा को अपनी दिल की बात कह दूॅगा नही तो फिर किसी गॉव वाली लड़की से शादी कर लूंगा। 


    लेकिन उसके गॉव में एक दो लड़क जो अविवाहित थे उनके रिश्ते की बात चल रही है जहॉ भी गॉव में किसी लड़की की जनम पत्री मिलती मॉ बाप और लडकी यही सवाल पूछते कि क्या बाहर जमीन ले रखी है, या कोई मकान है, हमारी बेटी नहीं चढ पायेगी इतनी चढायी। 


      इधर नेहा उस पर दबाव बना रही है कि यार अब मेरे मॉ पिताजी मेरे लिए रिश्ता ढूढ रहे हैं, मै कितने लड़को को रिजेक्ट करूं अब तो मॉ पिताजी कहने लगे कि अगर तुम्हें कोई लडका पसंद है तो बताओ हम उससे मिलकर रिश्ता तय कर लेगें लेकिन तुम कुछ कहते ही नहीं हो। आज नेहा ने संदीप को बोला कि क्यों तुम कुछ छिपा रहे हो या तुम मुझसे प्यार नहीं करते हो इसलिए टाल रहे हो। नेहा के बहुत अधिक दबाव डालने पर संदीप को बताना पड़ा। 

      संदीप ने कहा नेहा मेरा गॉव सौभाग्य से नीलकंठ के पास है,लेकिन दुर्भाग्य यह है कि मेरे गॉव में आज भी सड़क नहीं है। इस सदी में हम 07 किलोमीटर चढायी चढकर अपने गॉव जाते हैं, जब हम पैदल जा रहे होते हैं तो लगता है कि हम तो केवल लोक लुभावने भाषणों और वोट देने की मशीन हैं, नागरिक के तौर पर तो हम बाहरी लगते हैं।


     क्योकि हमारा दोष सिर्फ इतना है कि हम जोगियाणा गॉव में बसे, या हमारा गॉव के अगल बगल दूसरा गॉव नहीं है जिस कारण हमारे लिए सड़क के मानक नहीं बन पा रहे हैं। नेहा जब घर जाते हैं तो महादेवसैण की चढायी चढते वक्त लगता है कि बस आज के बाद कभी ना आऊं लेकिन गॉव की मिट्टी की खुशबू अपनी ओर खींच लाती है, क्योंकि रग रग में गॉव बसा है। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे से शादी करके बाद में पछताओ।  मैं तो गॉव आता जाता रहूॅगा ही लेकिन तुम नहीं जा पाओगी और वह सड़क कहीं हमारे भविष्य में दरार न पैदा कर दे। इसलिए हम एक अच्छे दोस्त ही बनकर रह लेगे। तुम अपने माता पिताजी के पंसद की शादी कर सकते हो। नेहा ने संदीप बको बहुत समझाने का प्रयास किया लेकिन राजन नहीं माना।


     इधर नेहा भी गुमसुम रहने लगी, उसकी मॉ ने पूछा कि नेहा क्या बात है तुम कुछ बदली बदली नजर आ रही हो। नेहा ने बातों मे टाल दिया। एक दिन नेहा कि मामा की लड़की मानसी उनके घर आयी हुई थी तो बातों ही बातों में नेहा ने मानसी को संदीप और अपनी बात बताई। यह भी बताया कि संदीप एक अदद सड़क के नहीं होने से मुझसे शादी नहीं करना चाहता और मैं कह रही हॅूं कि वह अपने माता पिताजी को शादी के बाद यहॉ ले आये लेकिन वह मानने को तैयार नहीं।  मानसी ने कहा यार ये तो बड़ी समस्या है, हम कोई सांसद विधायक या सरकार के नुमाइंदे होते तो सड़क ही बनवा लेते।  


      सरकार का नाम सुनते ही मानसी को याद आया कि उसके एक दोस्त के पापा उत्तराखण्ड सरकार में विधायक हैं, उनसे बात करके देख लेते हैं। मानसी ने अपने दोस्त अश्वनी को फोन किया, और सारा माजरा बताया। अश्वनी ने कहा कि मै पापा से बात करके देखता हॅू अगर कुछ बात बन जाय तो। 

    अश्वनी ने अपने पिता को जब संदीप और नेहा की बात बतायी तो वह सोचने को मजबूर हो गये कि एक अदद सड़क दो प्रेमियों के बीच में रोड़ा बन रही है। उसने पूछा कि क्षेत्र के विधायक कौन है जरा पता करके बताओ,  अश्वनी ने फोन करके विधायक के बारे में पता करके बताया।  इधर अश्वनी के पिता को पता लगा कि जिस क्षेत्र की यह सड़क है और नीलकंठ का नाम सुनते ही उन्हें विधायक का पता लग गया वह भी उन्हीं की पार्टी की विधायक है। 


     अगले दिन अश्वनी अपने पिताजी के साथ संबंधित विधायक के यहॉ गये और वहॉ पर जाकर संदीप और नेहा के प्रंसग को सुनाया। अश्वनी के पिता ने कहा कि हम मंचों पर बड़ी बड़ी बात करते हैं, आज उन बातों पर अमल करने का दिन आ चुका है अब हमको दो प्रेमियों को एक सड़क के कारण अलग नहीं होने देना है। दोनों विधायको ने लोकनिर्माण विभाग के मंत्री से बात करके सड़क स्वीकृत करने के लिए दबाव डाला।

       एक महीना बाद महादेवसैण से जोगियाणा गॉव के लिए सड़क की पैमाईश शुरू हो गयी और गॉव से  संदीप के पास फोन आया कि आज सड़क का सर्वे हो गया है, सुनने में आ रहा है कि जल्दी ही सड़क का निर्माण हो जायेगा। यह सुनकर संदीप की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा।  यह खुशखबरी सबसे पहले नेहा को सुनायी, यह सुनते ही नेहा भी बहुत खुश हुई। इधर दशहरे के दिन नेहा और संदीप की सगाई हो रही है, उधर महादेव सैण से जेसीबी मशीन लग गयी है, जैसे ही संदीप ने नेहा को अंगूठी पहनाने जा रहा था और आसमान में जोर से बिजली कड़की और जोर से आसमान गरजा, संदीप की नींद खुल गयी।  यह सब वह सपनें में देख रहा था। क्या संदीप  का सुबह का सच सपना होगा और उसके सपनों की रानी नेहा से शादी हो पायेगी, इसका जबाब शायद भविष्य के गर्भ में ही होगा।

©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।✒📝📝📝 14 /09/2019


फिंची फिंची देरादूण,

फिंची फिंची देरादूण,
बगोटा छोड्या पाड़ मा।
अफू उड्या सि हैली-हैली,
हम छोड़्या बगदी गाड़ मा।

परजा बिचारी सास लगीं,
सि अळज्याँ राजनीत्या जाळ मा।
भितरा-भितरी सि मामा पूफ्वा,
भैर सुदी धना यका-हैका झाड़ मा।
अफू उड्या सि हैली-हैली
हम छोड़्या बगदी गाड़ मा।

सूखा पड़्याँ धारा पन्ध्यरा,
मनखी सबी रड़दी जाँणा।
नीति बण्णी निस देरादूण,
अर समस्या यख पाड़ मा।
अफू उड्या सि हैली-हैली
हम छोड़्या बगदी गाड़ मा।

न रोजगार न काम धन्धा,
जंक लगणू सब्सिडी बाँटी।
दिक्कत होंणी अगने का दाँत,
सुई लगणी अकले दाड़ मा।
अफू उड्या सि हैली-हैली
हम छोड़्या बगदी गाड़ मा।

चौवन मैना बौंहड़ा पड़्याँ,
आखिर मा कन्ना तंग खड़ा।
साढ़ी चार साले सपोड़ा सपोड़ी,
जांदी वक्त द्वी रुप्या बाँधी देंदा हमारी नाड़ मा।
अफू उड्या सि हैली-हैली
हम छोड़्या बगदी गाड़ मा।

सर्वाधिकार सुरक्षित-नन्दन राणा


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


Saturday, September 14, 2019

राउमावि पाला कुराली जखोली का छात्रों की स्वरचित गढवाली कविता ।


गढवाली भाषा मा छात्र पालाकुराली  जनपद रूद्रप्रयाग मा न सिर्फ गढभाषा कु साहित्य पढणा बलकन कुछ रचणा बुण्णा भी छिन ।
पालाकुराली मा गढभाषा की मोबाइल लाइब्रेरी भी स्थापित करी च जैमा गढवाली भाषा कु साहित्य छात्रों तक  निशुल्कौ  पौछाये जांदू जैकु परिणाम यु हवे छात्र अपडि भाषा मा कविता कहानी चरण बैठिन।
पहाड़ विषय पर स्वरचित गढवाली कविता वर्क शाॅप कु आयोजन किए गै जैमा छात्रों न आधा घंटा का समय मा कुछ यन कविता मनोभाव लिखिन।
प्रस्तुत च ईं गढभाषा वर्कशाॅप कु कुछ अंश----अश्विनी गौड स0अ0 विज्ञान राउमावि पाला कुराली जखोली रूद्रप्रयाग ।।।


---पहाड कु बुग्याळ----


पहाड कु बुग्याळ
गौं पुंग्ण्यूं कि सार,
रंगिलू फूल बहार
ल्ये ओंदू मोल्यार ।


चौ-डांडीकांठयू
 घाम चमचमलांदू
गौं-डांडयूं लाल,
बुंराश चमचमलांदू,
फ्योलि  रंग,
घर्या उठे ल्यांदू,
गौं का सामणि
जब घाम ए जांदू।


गौं सार्यू फ्यूंलि,
 पैंया बुरांश
चकुला बासदा ,
कखि कफ्फू- हिंलास।


बौंण डाल्यू मा,
काफले दांणि
गौं का पंध्यारा बगदू,
 ठंडू पाणी।।।


------रविना राणा  कक्षा 10 राउमावि पाला कुराली (स्वरचित)


--बसंत बहार----


मेरा पहाड़ मा,
ऐगि बसंत-बहार,
बनि-बनि का,
फूल खिलिगिन,
फैलिगी रंगिलू संसार।


पहाड़न क्या कुछ,
 नि सिखे!
पर
सि पहाड़ छ्वोडण,
 लग्या छिन
तौं दुष्टुन जरा,
 नि सोंचि
पहाड़ू विनाश
 कना छिन।


सौंणो मैनू ऐगि
बरखा लगी रिमझिम
पहाड़े रौनक बौडी
जौंका लग्या सिमसिम।


---श्वेता राणा कक्षा-10 राउमावि पाला कुराली (स्वरचित)


----बसग्याळ----


बसग्याळ ऐगि
 पहाड़ मा,
लगौण बैठिन
 कोदु झंगोरु,
औंण लेगिन
 गाड़-गदरा,
पैटण बेठिन
 रोंपणि सार।


मेरा पहाड़े,
 ठंडी हवा,
तनि सु
 ठंडु पाणि।


चित्त कबि नि बूझदू
ये पहाड़ देखी
दिल कखि नि लगदू
पहाड़ छोडी।


कति प्यारु दिखेंदु,
 मेरु पहाड़
कन प्यारी लगदि
हरी-भरी सार।


हरी-भरी सार मा
लग्या लोग धाण मा।


घेंघारु किरमोडु खांणा क्वी
क्वे घ्यू दूधे गंगा बगौणा
कखि मेळा- थोळा होणा,
क्वे झुमेलो मंडाण लगौणा।


-------अम्बिका राणा कक्षा-9
राउमावि पाला कुराली (स्वरचित)।


--- सौंण भादो---


हमारा पहाड,
 छोड़ी ना जावा
जळमभूमि बे मुख,
 मोडी ना जावा!
इतग्या रौंत्यालु  मुल्क
सबुकू मन हरदू च।


सुदि बि क्या धर्यू,
 तौं सैर  बजारु मा,
सबि धाण्यू,
  ऐस  यख पहाड़ मा
ऊजदि गर्म्यू मा,
 आवा दू
ठंडू बांजो पाणी,
 प्यावा दू।


पहाड़ की
गोद मा रोला,
कोदू-झंगोरु,
 बारनाज खोला
हैर्यालि बीच रोला
सौंण भादो काकडी मुंगरी खोला।


-------राजपाल सिंह राणा कक्षा -10 राउमावि पाला कुराली (स्वरचित)


--पहाड़ सिखोंदु---


मेरु पहाड़ ल्योंदू मोल्यार,
कबि पहाड नि होंदू नाराज,
मेरु पहाड़ हर्यालि द्येंदू,
द्येंदू बुरांशि का फूल।


मेरा पहाड़ ऊंचू हिमालै
बांज बुरांश द्येंदू पहाड।


मेरु पहाड़ मोल्यार द्येंदू
कबि डाळो छैल
मेरु पहाड़ हमुतै सिखोंदु
उकाळि चढोंदू,
 अर
मैनत करोंदू।


हिमालै कि रक्षा करा
पहाड़ तै बचावा
हर्यालि लगा,  पहाड़ सजा
आवा सबि आवा।


-----कुलदीप सिंह राणा कक्षा10  राउमावि पाला कुराली ( स्वरचित)


--पहाड़---


पहाड़ सु च
जु हम सणि
हवा-पाणी,
 घास फल
 द्येंदू ।
हमारा पहाड मा,
 ठंडी हवा
हर्या-भर्या पेड़,
छिन
क्वे कखि,
घासो जाणा
क्वे ठंगरा
झटगा ल्यौणा।
------अंकुश राणा कक्षा-7
राउमावि पाला कुराली (स्वरचित


Band Kara Polythene: An Inspiring drama for stopping Polythene Bags Uses

Band Kara Polythene: An Inspiring drama for stopping Polythene Bags Uses


(Chronological History and Review of Modern Garhwali Stage Plays)


Review of Garhwali Stage Play collection ‘Bandyo ki Chitthi (Plays by Dr. Umesh Chamola -1 )


(Review of Children Stage Play ‘Band Kara Polythene) ’ the Stage play created by Dr. Umesh Chamola    )


Review by: Bhishma Kukreti (Literature Historian and Critic)


-


   Dr. Umesh Chamola is a versatile Garhwali language literature creative that created short stories, novel, dramas and collected folk stories too. ‘Bandyo ki Chitthi (letter from Forest Godess) is 10 children Garhwali dramas collection by Umesh Chamola. ‘Band Kara Polythene’ is first stage drama from the said collection.


           The drama ‘Band Kara Polythene’ is about the wrongs of polythene and very harmful for the earth and for the animals health too. The drama is short but purposeful and inspiring too.


 The language, the dialogues, are simple for children and the twist is proper for inspiring children for not using polythene bags.


  The education department should instruct teachers for playing the said  drama in every  school.


Stage Play: Band Kara Polythene


By: Dr. Umesh Chamola


From ‘Bandyo ki Chitthi ‘ Stage Plays Collection


Pub: Samay Sakshya , Dehradun


Year :2018


Copyright@ Bhishma Kukreti


Friday, September 13, 2019

देहरादून में शिक्षा पर्यटन विकास के कारण व भविष्य

देहरादून में शिक्षा पर्यटन विकास के कारण व भविष्य 


Dehradun developing Education Tourist District 


(Factors for Developing Education tourism) 


उत्तराखंड में शिक्षा पर्यटन संभावनाएं  - 6 


Education Tourism  Development in Uttarakhand -6 


उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना -  409


Uttarakhand Tourism and Hospitality Management - 409 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती 

-


  उत्तराखंड में शिक्षा पर्यटन प्राचीन कल से ही प्रसिद्ध रहा है किन्तु देहरादून ब्रिटिश काल से शिक्षा पर्यटन में सदा ही कमजोर रहा है।  


 ब्रिटिश राज आने से देहरादून शिक्षा पर्यटन में जग प्रसिद्ध स्थल निर्मित हुआ।  मसूरी ब्रिटिश  व यूरोपीय अधिकारियों के लिए इच्छापूर्ण स्थान होने के कारण देहरादून को महत्व मिला और ब्रिटिश व यूरोपीय व भारतीय नागरिकों ने देहरादून में आधारिक शिक्षा के अतिरिक्त कई प्रशिक्षण व शिक्षण संस्थान खोले जिससे देहरादून शिक्षा दायक शहर बन गया।  


आज उत्तरी भारत में देहरादून अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि वाला शिक्षा पर्यटक जनपद है और कहा जा सकता है कि देहरादून का शिक्षा पर्यटन में भविष्य उज्जवल है। 


  देहरादून का शिक्षा पर्यटन विकास के वही कारण है जो कारक किसी भी स्थल को अंतरास्ट्रीय छवि प्रदान करता है:- 


  भौगोलिक कारण - मसूरी निकट होने से ब्रिटिश राज ने कई शिक्षण संस्थान खोले जैसे वन अनुसंधान संस्थान , सर्वे ऑफ इण्डिया व साथ में  कई व्यक्तयों ने भी शिक्षण संस्थान खोले जैसे डीएवी संस्थान , गुरु राम राय  संस्थान आदि. स्वतन्त्रता पश्चात  भी सरकार व गैरसरकारी संस्थानों ने शिक्षण संस्थान खोले  . आज देहरादून को School Capital of India  का ख़िताब मिला है। 


  मानव हेतु आरामदायक व स्वस्थ जलवायु - देहरादून की जलवायु  मानव हेतु स्वस्थ व आरामदायक होने से देहरादून ने शिक्षकों व विद्यार्थियों को आकर्षित किया। 


 शिक्षा आधारिक संरचना या Infrastructure निर्माण - देहरादून में ब्रिटिश राज से सरकार व व्यक्तिगत रूप से समाज ने शिक्षा हत्य आधारभूत संरचना का निर्माण किया याने संस्थान व बोर्डिंग हॉउस व वास भोजन की व्यवस्था। 


 अंतरास्ट्रीय स्तर के शिक्षकों की उपलब्धता -  शुरू से ही ब्रिटिश राज में  अंतरास्ट्रीय स्तर के शिक्षक व प्रशिक्षक देहरादून को उपलब्ध होते रहे और वर्तमान में भी देहरादून कंपीटेंट शिक्षकों व प्रशिक्षकों को आकर्षित करता रहता है.


  इंफ्रास्ट्रक्चर - विद्यार्थियों व शिक्षकों हेतु समाज ने भी रहने व भोजन व्यवस्था में योगदान दिया ( किराये पर मकान मिलना व  भोजनालय खुलना ) 


   म्युनिस्पैलिटी -  औपचारिक तौर पर देहरादून म्युनिस्पैलिटी 18 67 में स्थापित हो चूका था जिससे शिक्षा ही नहीं वस् हेतु म्युनिस्पैलिटी ने कई इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण किये जो शिक्षा पर्यटन हेतु आवश्यक होते है   


परिहवन - देहरादून 1900 से रेल व मोटर मार्ग से जुड़ चूका था तो विद्यार्थियों व अभिभावकों को आने जाने की सुविधा उपलब्ध थी। 


अंग्रेजी  भाषा शिक्षण उपलब्धता :  देहरादून में ब्रिटिश राज (1857 ) शुरू होते ही अंग्रेजी माध्यम में शिक्षण व प्रशिक्षण उपलब्ध होता गया  जो अंतरास्ट्रीय व गैर हिंदी भाषी छात्रों हेतु एक आवश्यक अवयव था। 


बहुआयामी विषय - ब्रिटिश काल से ही देहरादून में बहु आयामी विषयों का शिक्षण व प्रशिक्षण उपलब्ध रहा है और आज भी यह गति मिरंतर चल रही है। 


शांत व सभ्य समाज - देहरादून की  शुरू से शांत  शहरों में गिनती की जाती है और आज भी शांत शहरों में उच्चता प्राप्त किये है। 


  भौगोलिक व ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल - देहरादून में विद्यार्थियों व गैर विद्यार्थियों  के लिए दर्शनीय स्थल सुलभ हैं। 


   सभी मिख्य श्र्मावलम्बियों हेतु प्रार्थना स्थल  उपलब्धता - देहरादून में  लगभग सभी धर्मावलम्बियों हेतु प्रार्थना स्थल उपलब्ध हैं 


   उपरोक्त मुख्य कारणों ने देहरादून को  School Capital of India  की उपाधि से नवाजा। 



 

Copyright@ Bhishma Kukreti 2019


Developing Education Tourism in Pauri Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Haridwar Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Dehradun Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Uttarkashi Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Tehri Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Chamoli Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Rudraprayag Garhwal , Uttarakhand; Developing Education Tourism in  Udham Singh Nagar Kumaon , Uttarakhand; Developing Education Tourism in  Nainital Kumaon , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Almora  Kumaon , Uttarakhand; Developing Education Tourism in Pithoragarh  Kumaon , Uttarakhand; गढ़वाल में शिक्षा पर्यटन विकास ; कुमाऊं में शिक्षा पर्यटन विकास , हरिद्वार में शिक्षा पर्यटन विकास ; देहरादून में शिक्षा पर्यटन विकास , उत्तरी भारत में  शिक्षा पर्यटन विकास की स्म्भावनाएँ ; हिमालय , भारत में शिक्षा पर्यटन की संभावनाएं , Factors for  Dehradun developing Education Tourist place; How Dehradun became famous Education tourism hub