"हाय मेरि बिच्लि"
तीन घसेरि थै जांण लगिं,
घास की गडोळि मुण्ड मां धरि,
खड़ी ऊकाळ ऊब.
एक दानु बुढ़्या,
बीच ऊकाळ मूं बैठिक,
थौ बोन्न लग्युं "हाय मेरि बिच्लि".
घसेरियौंन जब यनु सुणि,
तब ऊन बुढ़्या जी तैं पूछि,
क्या छै तुम बोन्ना "बिच्लि- बिच्लि".
तब बुढ़्या जी न बताई,
बुबौं, आज मैकु अपणी,
बिच्लि उम्र याद छ औणि,
उबरी मैं फाळ मारि-मारिक,
यीं ऊकाळ ऊब हिट्दु थौ.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(6.3.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
utkrishta garhwali kavya. Ini lagi jan dandon ma chali gyan.
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