स्कूली दिन ले कतु भल रहनी,
स्कूली दिन ले कतु भल रहनी,
ज्वनिम हमेशा याद रहनी,
कतु ले हम ठूल हजु,
पर उन दिना कभे नि भुलनी,
कनम किताबू बोझ धरी बे,
स्कूली वर्दिम दौड़ लगाने,
हसने, खेलने, बात घटु मजी,
ढुंग ल्फाव्ने क्रिकेत खेलने,
या कभे जन्गाऊ में लुका छिपी खेलने,
पुजी जंछी स्कूल माँ,
स्कूल घंटी ले तब याद धारम बे सुनुछी,
तब हम आपण समय अंदाज लगुछी,
स्कूल छुट्टी ले समय पत नि रहंची,
स्कूल श्यो देखि बे अंदाज लगुछी,
वर्दिम ले उ बखत टाल रहन्छी,
ख्वारम ले भरी भरी तेल लगुन्छी,
न जाने कब हम जवान ह्वेगु,
पुराण दिनु के भूली नि सकुन,
आपण बखत के यादी करिबे ,
आज पर्देशम हरे सा गोयु,
Vivek Patwal
very lovely piece of work. It took me to the days of my childhood. Though I do not know kumaoni but I got 90 percent of this poem. Thanks, Mr Patwal.
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