"बिछोह"
निष्ठा की मैंने की, प्यार किया तुमसे,
तुम्हारे गाँव से,
गाँव मैं बसे सीधे रिश्तों से,
टेढ़े मेढ़े घूमते रास्तों से,
गीली माटी से, कच्चे पक्के घानों से,
हरे चीड़ के झड़े पत्तों से.
कोशी मैं तैरते झड़े अखरोट के दानों से,
प्यार किया मैंने,
बूढ़ी आखों से, नन्हे क़दमों से,
झोडों पर थिरकते वे सुंदर पाओं
और उन पाओं पर खनकती पायलों से,
बुरांस के खिले फूलों की तरह लाल सुर्ख गालों से,
सच, प्यार किया मैंने.
सभी कायम रहे अपनी जगह अपनी रीढ़ पर,
बस, हमारी तुम्हारी दोस्ती ही गुम हो के रह गई,
इस शहर की भीड़ मैं, ना जाने किस मोड़ पर.
(स्वरचित)
मोहन सिंह भैंसोरा
सेक्टर-९, ८८६-आर.के.पुरम, नई दिल्ली
26.3.2009
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments