क्यों बचपन के साथी,
क्यों बचपन के साथी,
योवन में माटी से मुंह मोड़ लेते हैं,
जनम लिया इस धरती पर,
और खेले कूदे मेरी गोद में,
चलना सीखा, पढना सीखा,
जीवन का हर जज्बा सीखा,
लोट पोट कर मेरे आँगन में,
बाल्यकाल का हर सपना देखा,
उत्तरायनी का कौथिक देखा,
पंचमी का भी किया स्मरण,
फूल्देही पर भर भर फूलो की टोकरी,
गाँव गाँव भर में घुमते देखा,
बैशाखी पर पहने कपडे नए,
भर बसंत का आनंद लूटा,
क्यों चले आज तुम ये झोला लेकर,
क्या रह गयी कमी मेरे दुलार में,
क्या मेरी माटी में नहीं होती फसल,
या फिर ये है समय का चक्र चाल,
गंगा जमुना और बद्री केदार की धरती,
गांवो में आज वीरान सी पड़ी है,
कभी आना मेरे देश लौटकर ए मुसाफिर,
यदि लगे तुम्हे परदेश में ठोकर,
@Vivek Patwal
bhaut hi marmik dhang se likha hai apne dhanya bad
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