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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, March 26, 2009

जन्म दिन

जन्म दिन

तुम सबने मिलकर
मेरे ५०वे साल ग्रह पर
एक षड़यंत्र रचा
मुझ को बूडा करने का --

ताकि, मै
हमेशा ------
आज के बाद बार बार
पीछे देखा करूंगा
अपने भबिष्य में
तरसता रहूंगा ....
अपने बचपन और जवानी के दिनों को
कि
हाय .. क्या दिन थे वे ?

अरे -- निर्दियो ....
थोडा तरस तो खाते
मेरी इस ठलती जवानी पर !

बूढा तो हो ही रहा हूँ
और हो भी जाउंगा
परन्तु ,
तुमारे बाप का क्या जाता
अगर तुम मुझ को ----
जवानी के भ्र्हम में
कुछ और दिन जीने देते !


पराशर गौड़

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