जल रहे हैं जंगल, धधक रही है ज्वाला,
देख रहे हैं उत्तराखंडी, कौन बुझाने वाला?
तरस रहे हैं उत्तराखंडी, सूख गया है पानी,
प्यासे हैं जलस्रोत भी, किसने की नादानी?
तप रही है धरती, गायब है हरयाली,
हे पहाड़ का मन्ख्यौं, तुम्न क्या करयाली.
पर्यटकों की हलचल, भाग रही हैं गाड़ी,
कूड़ा करकट फेंक रहे, सचमुच में अनाड़ी.
रोजगार गारंटी योजना, सर्वे सर्वा हैं प्रधान,
पहाड़ के सतत विकास का, यह कैसा समाधान.
मोबाइल संस्कृति छाई है, क्या बुढया क्या ज्वान,
पहाड़ की संस्कृति हो गयी, बीमार के सामान.
पहाड़ प्रेमी होने के कारण, घूमने गया गढ़वाल,
देखा अपनी आँखों से जो, मन में उठे सवाल.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
29.6.2009
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