आज लाठी का सारा हिटणी छ,
भौं कबरी बोन्नि छ,
बेटा, अब त्वै फर ही छ सारू,
फर्ज निभौ तू,
बोझ समझ या भारू.
उबरी जब तू छोट्टू थै,
तेरा खातिर मैन ज्यू मारी,
यू ही सोचि थौ मैन,
बुढापा का दिन जब आला,
प्यारु नौनु सेवा करलु हमारी.
ब्वै दुनियाँ मा होन्दि छ,
सबसी प्यारी,
टौल पात जथ्गा ह्वै सकु,
हमारी छ जिम्मेदारी.
ब्वै का दूध की लाज,
रखन्णु छ फर्ज हमारू,
ऋण नि चुकै सकदा हम,
माणदी छ हमतैं सारू.
ख्याल रखन्णु सदानि,
ब्वै का आँखों माँ,
कब्बि भि नि अयाँ चैन्दन,
दुःख का आंसू,
अनुभूति प्रगट कन्नु छौं,
तुमारु दग्ड़्या "जिग्यांसू"
सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
3.6.2009
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