जनता ठगी ठगी सी है, बदल दिया कर्णधार,
ऐसा न जाने क्योँ किया, जो था ईमानदार.
बनवा रहे थे गाँव गाँव तक, पक्की सड़कों का जाल,
विकास की बयार बहती, समृद्ध होता कुमायूं गढ़वाल.
परिकल्पना साकार न हो सकी, तंत्री मंत्री थे परेशान,
भूखे बाघ की तरह भटक रहे, भृकुटी अपनी तान.
जो भी हो विजन था, उत्तराखंड का सही विकास,
जय हो राजनीती तेरी, आज जनता हुई निराश.
कुछ नहीं बदला उत्तराखंड में, तंत्र है वही पुराना,
नाम बदला काम नहीं, समझो क्या समझाना.
इस दुनिया में कौन है, सच्चाई के साथ,
साथ अगर दें सभी, कितनी अच्छी बात.
हम तो प्रवास भुगत रहे, उत्तराखंड से दूर,
सोचा था साकार होंगे, सपने हुए चकनाचूर.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
30.6.2009
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