अतिथि होता है यात्री,
जो आपका देश प्रदेश देखने,
आता है बहुत दूर से,
जिसके बारे में उसने,
सिर्फ सुना ही था,
आज आया है यात्री बनकर,
घूमने घुमंतू की तरह.
अतिथि देवो भवः,
परिकल्पना सचमुच सही है,
क्यौंकि, उसके मन में,
एक तम्मना है,
आपकी संस्कृति के अवलोकन की,
ताल, बुग्याल, बर्फीली चोटी देखने की,
देवभूमि के वासी,
सर्वशक्तिमान देवताओं के दर्शन की.
जब लौटकर जाये अपने यहाँ,
उसे याद आये बार बार,
आपके देश प्रदेश की,
कहेगा सभी को,
आपका मुल्क सबसे सुन्दर है.
सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
1.6.2009
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