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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, May 28, 2009

फिर मुझे बच्चा बना दो

फिर मुझे बच्चा बना दो!
मैं बहुत छोटा सा हूँ इस बड़ी ख्वाबों की दुनिया में,
माँगता हूँ बस एक नन्ही सी जंगल की कहानी,
और माँ के पहलू में जगह दो!
फिर मुझे बच्चा बना दो!
मानता हूँ मैं कि मुझसे, ग़लतियाँ होती बहुत सी,
दे दुहाई भाग्य की मैं, कर्म पर हूँ दोष मड्डता,
पर मुझे कुछ भी ना भाता, ना इधर का ना उधर का,
मेरी सब क़मियाँ मिटा दो!
फिर मुझे बच्चा बना दो!
हो गया हूँ जड़,झुका के सर मैं जड़ मूरत के आगे,
विवश लगती हैं मुझे जग की समस्त दर्शनिकता.
थक गया हूँ लड़ते लड़ते मन से अपने.
फिर मुझे लोरी सुना दो!
फिर मुझे बच्चा बना दो!
जो हुआ सो हो गया अब आगे देखूं,
जो करूँ शुरूवात, रख इस मंत्र को मैं मुख में अपने,
पर सलाहें,मशविरे, और दुहाई बीते कल की आ पहुँचते लोग सारे चौखट पे मेरी..
ऐसे कटु, वो दर्द यादें, ऐसे कड़वे पल वो सारे, स्मृति में फिर उभर आते.
ऐसे फिर चलने को आगे में आपाहिच हो गया हूँ .
मुझको सबकुछ तुम भुला दो!
फिर मुझे बच्चा बना दो!


अपने दिल की बात, आपके दिल तक पहुँचाने की आशा में
आपका मित्र
उमेश गुसाईं

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