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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 24, 2009

"पहाड़ प्यारा उत्तराखंड"

जनमत दिया पहाड़ ने, छिपी है कुछ बात,
वक्त भी यही कहता है, मिल जाये सौगात.

उत्तराखंड में जो सरकार है, लगती खाली हाथ,
करना कुछ वे चाहते, नहीं मिलता है साथ.

अब देखना उत्तराखंड में, होगा सत्ता का खेल,
विकास भी जरूर होगा, और चलेगी रेल.

सड़कें हैं बन रही, सर्वत्र हो रहा है विकास,
धैर्य धरो हे उत्तराखंडी, रखना मन में आस.

बिक रहा है उत्तराखंड, ये है सच्ची बात,
प्रवास हैं हम भुगत रहे, क्या है हमारे हाथ.

चर्चाओं में है छाया है, उत्तराखंड की राजधानी,
वहीँ रहेगी सच है, जहाँ होगी बिजली पानी.

राजनीति भी बाधक है, कैसे हो पहाड़ का विकास?
जल खत्म, जंगल जल रहे, संस्कृति का हो रहा है नाश.

पहाड़ पर बिक रहा है पानी, सर्वत्र छाई है शराब,
कुछ लोग चर्चा करते हैं, समाज के लिए है ख़राब.

सब कुछ है बदल रहा, नहीं बदले पक्षिओं के बोल,
डाल डाल पर चहक रहे, जिन पर हैं उनके घोल.

आज भी लग रहा है, देवताओं का दोष,
बाक्की जब बोलता है, उड़ जातें है होश.

पहाड़ घूमने गया था, ये हैं आखों देखे हाल,
उत्तराखंड राजी रहे, तेरी जय हो बद्रीविशाल.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
20.५.2009

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