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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, November 2, 2009

कशिश

सरहदों के बीचो बीच
मेरा घर था
जो अब बीराना होगया है !
जो कही गुलजार हुआ करता था
दोनों तरफ के लोगो से
कोई आता ,कोई जाता
घडी दो घडी बैठकर
हमारी सुनते ,अपनी सुनाते
कल फिर आयेगे
कह कर जाते ..
वो पल लौटा नहीं आकर !

अचानक
जाने क्या हुआ
अब तो वो दोनों एक दुसरे पर
बंदूके ताने है
एक दुसरे के लहू के प्यासे है
न सुनते है न सुनाते है
अब तो वो केवल
गोलियो की भाषा जानते है !

मेरा घर....
छलनी हो गया है
इन दोनों की गोलियों की मार से
काश ....
वो का सकता की
मर तुम रहे हो ...
मर तो नहीं मै रहा हूँ
तुम्हारी इन गोलियों से !

पराशर गौड़
दिनाक १२ अक्तूबर ०९ समय ३.०६ स्याम न्यू मार्किट

1 comment:

  1. Parashar ji Aaaj ki sachai bayan karti aapki rachna bahut acchi lagi. Kash log aapas mein pyar se rahana seekh pate to ye jahan kitna sundar hota..........
    Badhai

    ReplyDelete

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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