मृत्यु वास्तव में कुछ नहीं, ये किसी गिनती में नहीं आती.
मैं केवल अगले कमरे में चला गया हूँ,
कुछ नहीं हुआ, कुछ भी तो नहीं हुआ,
सब कुछ वैसा ही है जैसा था.
मैं, मैं हूँ; तुम, तुम हो,
कुछ नहीं हुआ,
कुछ भी तो नहीं हुआ.
सब कुछ वैसा ही है जैसा था,
मैं, मैं हूँ; तुम,तुम हो,
कुछ नहीं बदला, कुछ नहीं हुआ.
एक साथ हमने प्रेम पूर्वक जो जीवन व्यतीत किया,
वह अनछुआ, अपरिवर्तित रहा.
हम एक दूसरे के लिए जो कुछ थे,
अभी भी वैसे ही हैं.
कुछ नहीं बदला, कुछ भी तो नहीं बदला.
मृत्यु आखिर क्या है?
बस एक साधारण सी दुर्घटना.
क्या मैं मन से केवल इसलिए दूर हो जाऊं,
कि मैं नज़र नहीं आता!
बल्कि मैं तो तुम्हारे इन्तजार में हूँ.
एक अन्तराल है कहीं बहुत ही निकट,
बिल्कुल अगले मोड़ पर.
सब कुछ ठीक है, सिवाय उन लोगों की निकटता के,
जो,
इस संसार में रह गए लोगों के लिए बेमानी है.
जब हम इस संसार से जातें हैं तो अपने साथ कुछ नहीं ले जाते,
ना अपना सामान, ना अपनी दौलत, ना अपना दिमाग और
नाही अपनी बुद्धि.
मृत्यु पर जीवन की वास्तविक विजय वही है,
जो हम पीछे छोड़ जातें हैं -
एक नाम........., एक याद........, एक छवि.
(स्वरचित)
मोहन सिंह भैंसोरा,
सेक्टर-९/८८६, रामाक्रिशनापुरम,
नई दिल्ली -११००६६.
(श्री फलिमान द्वारा स्वर्गीय एस.डी.शोरी जी की मृत्यु पर शोकाकुल परिवार एवं मित्रों को दी गई सांत्वना एवं माननीय श्री खुशवंत सिंह जी द्वारा एक लेख मैं उसका सन्दर्भ, पर आधारित)
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