धन तेरी नथुलि,
धन तेरु मिजाज,
रंग रूप देखि तेरु,
खट्ट खौळेग्यौं आज....
तेरि नथुलि देखि मैकु,
खुद लागिगी आज,
प्यारा उत्तराखंड कू,
बदलिगी मिजाज.....
ढै तोळा नाथुलि तेरि,
नाक मा बिसार,
हेरि हेरि रंगमता,
बैख देख हपार......
जब जब नथुलि तेरि,
नाक मा हल्दी,
मेरी ज्युकड़ी कनुकै बतौँ,
धक् धक् करदी.......
कबरी होन्दि थै नथुलि,
हमारा मुल्क की शान,
जथ्गा बड़ी होन्दि नथुलि,
वथगा बड़ु मान......
वक्त बदली नथुलि हर्ची,
मेरा प्यारा मुलक,
कुबानी की नई नथुलि,
ऐगी सुरक सुरक.......
सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(21.4.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
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