कमर तोड़ मेहनत करना,
सिर पर ढोना बोझ भारी,
पहाड़ों पर उतरते चढ़ते,
बीतता है जीवन तेरा,
हे पहाड़ की नारी..
घने और खतरनाक जंगलों से,
घास, पात और लकड़ी लाना,
कभी कभी बाघ और रीछ से,
जान बचाने के लिए भिड़ जाना...
सामाजिक बुराईयों से,
मिलकर संघर्ष करना,
घर परिवार की देख रेख,
समर्पित भाव से करना....
सीमाओं की रक्षा में,
आजीविका के लिए प्रवास में,
गए जीवनसाथी की इंतज़ार में,
बीत जाता है तेरा जटिल जीवन,
तू महान है पहाड़ की नारी....
संघर्ष आपका सफल रहा,
तभी तो शैल पुत्र,
आज ऊंचा कर रहे हैं,
आपका और जन्मभूमि का नाम,
देश और दुनियां में,
कवि, लेखक,खिलाड़ी, सैनिक अफसर,
पर्यावरण रक्षक और अफसर बनकर,
तू सचमुच महान है,
और तेरा संघर्ष,
हे "पहाड़ की नारी".
सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(22.4.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
very nice poetry......
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