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Monday, March 23, 2015

अनमीनिंग फुल चैट

चबोड़ इ चबोड़ मा - सुनील थपलियाल घंजीर 
दलेदर दा ! प्रणाम ।
ह्वो ! प्रणाम कि परिणाम ?
नना ! बुनाई नमस्कार ।
हब्बै !आज भौत नमो नारायण करूंणु छै ,जामा फर त छैंछै कि ना ! जौंकु काम गोर उज्याड़ हकांणौ रैंद वी करदीं भंड्या मुंड झुकै । क्या च रै ?
दलेदर दा ! जरा इन बथावदी कि ये गीत को हमरा पाड़ अर समाज फर क्य व्यापक असर पोड़ी कि बल" अगर तुम मिल जावो जमाना छोड़ देंगे हम " । बतावा त सै ?
निरबै थोकदारै मवसिक खुंड  ढुंगा इतगा नि बींग सकणु छै तू ! देख ये गढवाल मा "अगर तुम मिल जाओ" का मतबल हूंद नौकरी !
अब त्वी बथा त्वे दिल्ली मा चपड़सी खनसामा की नौकरी मील जा त तू मुंड मां खुटा धैरी जमन त क्या अफ्फु  थै भि छोड़ देलो ! कन बोली म्यारा ख्वींडा दथड़ा ।
आप थै त पतै च कि मेरी टक त कबि ये कि यूं भ्याळ  भौंकारू छोड़ ग्या बस जरसि क्वी मी फर चुंगनी लगै द्या त मी फुर ।
हां खत्यांकरा इं  चुंगनी को परिणाम च धुरपळी  धुरपळी  फर रयाड़ पोड़ ग्या ।
सर्वाधिकार - घंजीर  

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