Link of Mud Therapy in Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -86
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) -86
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--189) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -189
पारम्परिक भारतीय चिकित्सा में आहार चिकित्सा , जल चिकित्सा , नीन पेट व्रत चिकित्सा , औषधि चिकित्सा व मृदा चिकित्सा मुख्य चिकित्सा वर्ग हैं।
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र व मैदानी क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र रहे हैं तो मनुष्यों को तकरीबन हर दिन मिट्टी के सम्पर्क में रहना होता है तो मिट्टी से चिकित्सा के रिकॉर्ड नहीं मिलते हैं किन्तु मृदा चिकित्सा के कुछ सूत -लिंक अवश्य मिलते हैं। रुपायी , गुड़ाई आदि में स्वयमे मृदा चिकित्सा हो जाती है। मिट्टी पत्थर के घर में स्वास्थ्य व सुरक्षा अंतर्हित थी। लिपाई में लाल मिट्टी का उपयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी था।मिट्टी से बर्तन धोने व सूचि हेतु मिट्टी से हाथ धोने के पीछे मिट्टी का महवत्व झलकता ही है।
चाहे अनचाहे अनाज में मिट्टी गार मिलते ही थे और लाभकारी या हानिकारक खनिज मिलता ही था।
प्राचीन साहित्य में उत्तराखंड के चींटियों या दीमकों द्वारा निकाला गये स्वर्ण चूर्ण की अन्य क्षेत्रों में बड़ी मांग थी। शायद यह स्वर्ण चूर्ण औषधि अदि में प्रयोग होता होगा।
अपघात में कई बार अंग कट जाता है और बड़ा घाव होने पर तो पहले जब चिकित्सालय नहीं थे तो घाव पर पेशाब कर चिपुड़ माटु या चिकनी मिटटी का लेप लगा लेते थे। कुछ समय पहले भी बड़े घाव पर चिपुड़ माटु लगाकर दुखियारे को चिकित्सालय ले जाया जाता था। अब प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध हो गयी हैं जैसे डिटोल या शराब डालकर बैक्ट्रिया वाइरस प्रसारण रोका जाता है।
कुछ जानकार वैद दीमक या चींटियोँ द्वारा निकाली मिट्टी का औषधि में उपयोग करते थे शायद हड्डी के इलाज हेतु कम्यड़ को औषधि में मिलाने का भी रिवाज था।
गेरू को पीसकर औषधि मिश्रण तैयार किया जाता था। कभी कभी वैद त्वचा रोग में गेरू की पीसी मिट्टी लेप का भी सलाह देते थे।
मैंने कई बड़े बूढ़ों को मिट्टी व रेत को शरीर पर रगड़ कर नहाते देखा है और ये बुजुर्ग साबुन को बुरा मानते थे पर माट रगड़ने को स्वास्थ्य वर्धक मानते थे।
दाद -खुजली में विशेष स्थान की चिपुड़ मिट्टी का लेप सामन्य बात थी जो शायद सन साठ तक भी चलता था।
पैर फटने पर कमेड़ा का लेप भी सामन्य बात थी। जूं मारने के लिए कभी कभी सिर्प्वळ के साथ कमेड़ा भी प्रयोग करते थे।
मुल्तानी मिट्टी का आयात कुछ नहीं अपितु चिकित्सा तंत्र का एक अंग था। तिबत का नमक वास्तव में खनिज था जो पहाड़ खोदकर निकला जाता था। राजस्थान के पहाड़ खोदकर निकाला नमक भी खनिज ही है। काला नमक आज भी शहरों में भी प्रचलित है।
पशुओं के कई रोग निदान में मिट्टी का उपयोग होता था विशेषतः खुरपका में मवेशियों के खुरों पर चिपुड़ मिट्टी का लेप किया जाता था। कीचड़ में मिट्टी का तेल डालकर उस पर मवेशियों को चलाना भी मृदा चिकित्सा ही थी।
गंगा तट पर रेत में लेटना या गड्ढे बनाकर उसमे रहना जोगियों के लिए नित्य कर्म था।
उत्तराखंड में रेत के अंदर लेटना या मृदा चिकित्सा उद्यम के अच्छे अवसर हैं। विभिन्न स्थानों के चिपुड़ मिट्टी की रसायनिक जांच भी आवश्यक है ही।
Copyright @ Bhishma Kukreti 27/4 //2018
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास part -6
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