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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 30, 2015

मैदानुं माँ रैकि पहाडुं की कल्पना हूणि छन

भग्यान विनोद उनियाल (अमाल्डु , डबरालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल ) 

अन्नु  दा कि 
फटीं कुर्ति 
फटीं सुलरि 
समाज -वादै खोज मा 
पहाड़ छोड़ीइ 
मैदानु मा ऐ ग्ये 
वे कि 
फटीं टुपलि 
बदले ग्ये खादिकि 
सफेद टोपी मा 
कुर्ति 
अर सुलरि -चम्म सुलार 
बृजु दा अब 
पक्को बगुला भगत
अनिल उदयपुरी बण्यू च 
मैदानु , दिल्ली मा रैकि 
पहाडुं की कल्पना हूणि च 
ऊंचि  ऊंचि डाँड्यूं मा 
कागजी कुँआ ख्वदेणा छन 
अर 
तब ब्याखान दियेणा छन 
ऊँ हौरि अन्नुऊँ  तैं 
जौंका गात पर 
फटीं कुर्ति बि नी च 
भुलौं टक लगै सुणों 
समाजवाद , विकास सुदी नि आंदो 
यां का बाना 
खांण प्वड़दन 
खैरि -सुसगरि 
ख्यलण प्वड़दन कतनै खंड 
बदलण प्वड़दन -दल का दल 
मिथै इ देखल्यावदि 

 
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