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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, June 30, 2014

गूमखाळ बजार मा शराबबंदी का पोस्टर अर होर्डिंग !

घपरोळया , हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती      
                     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

वैदिन मुंबई की एक उत्तराखंडी संस्थाक   जळसा मा भूतपूर्व मुख्यमंत्री अर आजका विरोधी दल का नेता  सुपिन चन्द्र खंडूड़ीन गढ़वाल-कुमाऊं  मा शराबौ बढ़दो रिवाज का विरुद्ध इथगा गरजणि मार कि माइक टूटी गे अर दगड़ मा अयाँ दुसर भूतपूर्व मुख्यमंत्री सगत सिंग कोशियारिन   शराब को बढ़दो चलन से ग्रामीण उत्तराखंड की युवा पीढ़ी खतम हूणी च पर जोर से ऐड़ाट -भुभ्याट कार कि  कोशियारी जीक हल्ला से मेज कुर्सी हिलण लग गेन। 
दुई मुख्यमंत्र्युं मुंबई मा करीं गर्जना की खबर उत्तराखंड का फ़ाइल न्यूजपेपर (जु खाली सरकारी  विज्ञापन लीणो का वास्ता छपदन ) ही ना असली अखबारों मा बि प्रकाशित ह्वे गेन अर सोसल मीडिया मा बि यां पर बहस शुरू ह्वे गे।  भूतपूर्व मुख्यमंत्र्युं की गर्जना का असर इथगा जादा छौ कि दिल्ली , मुंबई , न्यूआर्क , कनाडा का पियक्कड़ भाइ लोग बि  रोज स्याम दैं ठीक आठ बजी 8 PM का पैग  मारदा मारदा फेस बुक मा राज्य सरकार तैं  गाळी दीण लग गेन कि शराब बंदी का वास्ता राज्य सरकार कुछ नि करणी च।  
राज्य सरकार हिल गे। सोसल मीडिया मा शराब बंदी पर बहस से हाइ कमांड का वरद हस्त का बाद बि राज्य का मुख्यमंत्री गिरीश रावत की कुर्सी बि हिलण लगि गे अर रावत जी  तैं आधिकारिक तौर याने औफिसियली पैल बार पता चौल कि ग्रामीण उत्तराखंड शराब का चपेट मा ऐ गे। 
मुख्यमंत्रींन फटाफट शराबबंदी मंत्री तैं आदेश दे कि उत्तराखंड का हरेक ब्लॉक मुख्यालय का बजाराम एक शराब से नुकसान का होर्डिंग लगाओ अर सौ सौ पोस्टर लगाओ।  5 करोड़ रुपया जनहित मा शराबबंदी विज्ञापनों बजट पास ह्वे गे। 
दुसर दिन वित्त मंत्र्याणी श्रीमती जिकुड़ेस्वरि जी मुख्यमंत्री जी से मील कि 5 करोड़ रुपया कखन आल अर कै मद से आल।  मुख्यमंत्री जीन आबकारी मंत्री जी तैं बुलाइ अर ब्वाल ,"राज्य तैं पांच करोड़ रुपया की अतिरिक्त आवश्यकता च त तुरंत कुछ कारो। "
 ठीक दस दिन बाद हरेक ब्लॉक  का मुख्य बजार मा शराब का नुक्सान वाळ होर्डिंग अर पोस्टर चिपक्याणा छया अर लोग एक समाचार बि पढ़णा छया कि राज्य मा पांच विदेशी शराब का अर दस देसी शराब का कारखाना लगणा छन जौं कारखानौं  से राज्य की बीस करोड़ रुपया अतिरिक्त आमदनी  ह्वेलि।  


Copyright@  Bhishma Kukreti  29 /6/2014   
    

*लेख में  घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं ।

Ayedi Khilan/Shikar Karna or Hunting the Traditional Sport/Folk Game from Garhwal, Kumaon and Haridwar

Notes on Traditional Folk Games/Sports from Garhwal, Kumaon and Haridwar (Uttarakhand Folk Games) Part -25   

 Outdoor Traditional/Folk Games of Garhwal, Kumaon and Haridwar part- 16

                          Narration: Bhishma Kukreti (Folk Literature Research Scholar)

             Ayedi Khilan/ Shikar Karna or hunting is one of the oldest games of Garhwal and India. Even the God and Goddesses are said to hunt. Lord Shiva has one name Mrigyavyadha that means hunter of deer. According to Mahabharata, Pandu came to Garhwal for hunting.
 In old age people used to for hunting/trapping individually or in collective way. Hunting deer families, wild boars, rabbit, porcupines, birds, chickens, were common practice in Garhwal. Many times, people used to make wild boars or deer run for miles. Porcupines are killed by infusing heavy smoke into the burrow of porcupine.  
There are /were many methods of killing animals for hunting.

Copyright@ Bhishma Kukreti 27 /6/2014
      References

Bhishma Kukreti, 2010, Folk Games of Uttarakhand, merapahad.com
XX
Ayedi Khilan/Shikar Karna or Hunting the Traditional Folk Games/Sports from Garhwal, Kumaon and Haridwar, Himalaya, North India, South Asia; Ayedi Khilan/Shikar Karna or Hunting the Traditional Folk Games/Sports from Pauri Garhwal, Udham Singh nagar Kumaon and Haridwar, Himalaya, North India, South Asia; Ayedi Khilan/Shikar Karna or Hunting the Traditional Folk Games/Sports from Chamoli Garhwal, Nainital Kumaon and Haridwar, Himalaya, North India, South Asia; Ayedi Khilan/Shikar Karna or Hunting the Traditional Folk Games/Sports from Rudraprayag Garhwal, Almora Kumaon and Haridwar, Himalaya, North India, South Asia; Ayedi Khilan/Shikar Karna or Hunting the Traditional sport/Folk Game from Tehri Garhwal, Champawat Kumaon and Haridwar, Himalaya, North India, South Asia; Ayedi Khilan/Shikar Karna or Hunting the Traditional sport/Folk Game from Uttarkashi Garhwal, Bageshwar Kumaon and Haridwar, Himalaya, North India, South Asia; Ayedi Khilan/Shikar Karna or Hunting the Traditional sport/Folk Game from Dehradun Garhwal, Pithoragarh Kumaon and Haridwar, Himalaya, North India, South Asia;

अजकाल मोदी स्टाइल मा प्रजेंटेसन दिखणो कम्पीटीसन चलणु च

घपरोळया , हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती      
                     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )


अचकाल , कखिम बि , कै बि टैम , कै तैं कुछ पूछो वु कड़क ह्वेक बुल्दु ," ठीक से प्रजेंटेसन दे !"। मोदी सरकार आण से इण्डिया मा अच्छा दिन आइ गेन  कि अबि आण बाकी छन ,  मंहगाई की कमर टूटी ह्वे या ना किंतु कै हैंक से प्रेजेंटेसन मांगणो फैशन बड़ो जोरों से चलण मिसे गे। 
अबि मि परसि कोलकत्ता जयुं छौ त चाइना टाउन मा एक लेफ्टिस्ट बुद्धि जीवी एक कखड़ी बिचण वाळ से बचळयाणु छौ। 
लेफ्टिस्ट इंटेलेक्चुअल - त्वी छे ना कखड़ी बेचणु ?
कखड़ी व्यापारी -हाँ , कै तैं कुछ कन्फ्यूजन च ?
लेफ्टिस्ट बुद्धिजीवी -ठीक च जरा प्रोफेसनल वे मा प्रेजेंटेसन देकि बतादी कि तेरी कखड़ी काबिल कखड़ी छन। 
कखड़ी विक्रेता -बाममार्गी जी ! जु मि प्रेजेंटेसन दीण जि जाणदु त मि तैं भाजपा से  लोकसभा टिकेट नि मिल जांद।  मेरी जगा चन्दन मित्रा तैं टिकेट मील किलैकि वै तैं प्रजेंटेसन दीण आंद च।
इनि अचकाल केश कर्तानलयुं मा रोज कहा सुनी हूणि रौंद।  केश धारक केश कटण वाळ नाइ से कम्प्यूटर का जरिया बाळुं नया  नया फैसन का प्रजेंटेसन की मांग करणा रौंदन अर हर बार नाइ सफाई दींद ," जु मि तैं कम्प्यूटर चलाण जि आंद,  त मि कम्प्यूटर लर्निंग क्लास ना सै इंटरनेट कैफे नि खोलि दींदु ?"
केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्रा तो नरेंद्र मोदी क प्रजेंटेसन स्टाइल से बड़ा परेशान छन।  कलराज मिश्रा जी तैं अब पता लग कि किलै लाल जी टंडन अर कैलाश जोशी सरीखा दिग्गज नेताओंन चुनाव लड़न से इनकार कार।  सब तैं पता छौ कि मंत्री बणनो बाद मोदीक समिण प्रजेंटेसन दीण पोड़ल अर दगड़ मा दिनांक का हिसाब से कु काम कै दिन पूरु ह्वे जाल बि बताण पोड़ल।  कलराज मिश्रा जीन प्रजेंटेसन दीण सिखणो बान चार पांच क्रैश कोर्स बि करि आलिन किन्तु सुणन मा अयि कि अबि बि कलराज मिश्रा पर प्रजेंटेसन नाम सुणिक ही कंपकंपी छूट जांद।  
कॉंग्रेस जु नरेंद्र मोदीक गुजरात मॉडल अर अधिनायक वाद से खार खांदी , ज्वा पार्टी अबि बि बुलणि च कि नरेंद्र मोदी की क्वी लहर नि छे अपितु मनमोहन सरकार का विरुद्ध लहर छे वा पार्टी बि अब प्रजेंटेसन फॉर्मूला का जरिया सिद्ध करणी च कि लोकसभा चुनाव की हार कॉंग्रेस की हार च अर यीं हार मा राहुल गांधी कु नेतृत्व अपण पीक (उच्च चोटी ) पर पौंच।  नितरसि कॉंग्रेस का ऑफिस मा कॉंग्रेस कोर कमेटी की कछेड़ी मा चुनाव विश्लेषण पर एक कम्पनीन पावर प्वाइंट प्रजेंटेसन इन दे -
प्रोडक्ट - राहुल गांधी जी  कॉंग्रेस मा सर्वमान्य पसंदीदा परसन छन । 
प्राइस - मनमोहन सरकार की प्राइस राइज पॉलिसी से राहुल गांधी जी तैं बहुत नुकसान ह्वे। इलै सबि प्रदेशों अध्यक्षों तै बदलण जरुरी च। 
पब्लिसिटी - पीपल (जनता ) जाहिल छन ।   राहुल गांधी का अंग्रेजी पोस्टर  की भाषा जनता अबि बि नी समझ सकणी च।  इलै कॉंग्रेस का सभी महासचिवों तै इस्तीफा दीण चयेंद। 
प्लेसमेंट - मनमोहन सरकार की नाकामयाबी छे कि अपण पॉलिसी क्रियावन्नित नि कार साक इलै प्रदेशो का मुख्यमंत्री बदलेण चयेंदन। 
पीपल - जनता थर्ड क्लास च। इलै कॉंग्रेस मा जिला स्तर पर बदलाव जरूरी च।  
नरेंद्र मोदीक प्रजेंटेसन फैसन कु असर मुलायम सिंग पर बि ह्वे गे।  वैदिन एक मीटिंग मा बुलणा छा ," सभी यादवों और मुसलमान भाइयों को अब प्रजेंटेसन सीखना ही होगा और खतरे में आया हुआ सेक्युलरिज्म को बचाना होगा। "
लालू प्रसाद यादव का हिसाब से त प्रजेंटेसन शब्द ही नॉन सेक्युलर च तो ऊंक पार्टी मा प्रजेंटेसन पर रोक च। 
म्यार ड्यारम बि प्रजेंटेसनौ रोग लग गे। 
ड्यारम त मि सिगरेट पे सकुद किन्तु मि तैं दिन मा द्वी-चार  बीड़ी पीणो नि मील तो मि तैं लगदो इ नी च कि मीन सिग्रेटौ धुंवा उड़ाइ।  वाइफ कु बुलण च कि बीड़ी फेमिली इमेज का वास्ता हानिकारक च।  इनि हम आठ दस लोग छंवां जु फेमिली इमेज का चक्कर मा ड्यारम बीड़ी नि पे सकदा।  हम सब घाम अछल्याण पर अपण मुहल्ला से दूर एक बेंच मा बैठिक चर चर बीड्युं पर फ़काफ़क सुट्टा मरदवां अर फिर बगीचा मा घुमणो जांदवां।  वाइफ समजदी मि स्वास्थ्य लाभ हेतु स्याम दैं जॉगिंग करणो जांद पर मेरो असली मकसद त बीड्यूं पर सुट्टा मारण रौंद।
ब्याळि मि जनि घुमणो तयार हों कि वाइफन ब्वाल - कख जाणा छंवां ?
मि -सद्यानो तरां घुमणो !
वाइफ - पैल कम्प्यूटर से फॉर्मल प्रजेंटेसन द्यावो कि तुम तैं घुमण जरूरी च कि ना ? अब ये घर मा बगैर प्रजेंटेसन दियां चाय बि नि पिए जाली। 
वाइफन कम्प्यूटर ऑन कार अर मीन पावर प्वाइंट मा प्रजेंटेसन दे। 
परपज (उद्येस्य ) - स्वास्थ्य लाभ अर बोरियत भगाण 
                           कार्य 
१- प्रणायाम - हवा भीतर लीण अर भैर खैंचण ( मीन झूट नि ल्याख किलैकि बीड़ी पीण मा यि सब करणी पोड़द ) 
२- चक्षु ध्यान - चक्षु सेकन प्रक्रिया से आंखुं स्वास्थ्य बढ़ाण। (मि झूट तब बि नी छौ किलैकि आंद जांद जनान्युं पर ध्यान से हम बुड्या चक्षु सेकन कार्य बड़ी चतुराई से करणा रौंदा )
३- घुमण 
४- कथगा लोग - छ -सात लोग 
५- कब तक - छै बजि से साडे सात तक 
६- कथगा खर्चा - कुछ ना ( बीड्युं खर्चा तो हम बच्चों कीसौंदन इनि चुरै लींदा )
जब मीन प्रजेंटेसन पूरु कार दे तबी जैक मि बीड़ी क्लब जै सौकुं।  ऊख पता चौल कि अजकाल सब्युं ड्यार प्रजेंटेसन कु भूत लग्युं च अर आज हरेक देर से आई किलैकि सब तैं अपण वाइफ तैं प्रजेंटेसन जि दीण छौ ।
घूम घामिक ड्यार औं तो मेरी वाइफ हमारी  नौकरी करदार बहु तैं पावर प्वाइंट का जरिया प्रेजेंटेसन दीणी छे - 
विषय - सासुओं को K टाइप सीरियल देखना क्यों आवश्यक है ?






Copyright@  Bhishma Kukreti  27 /6/2014   
    

*लेख में  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । 


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Baugalu Matu t: A Garhwali Poetry Collection about Span of Daily Life in Garhwal

Critical Review of Garhwali Literature- 2279
(Review of Modern Garhwali Literature series)
Baugalu Matu t: A Garhwali Poetry collection by Dr. Dinesh Chamola “Shailesh’

 Review by: Bhishma Kukreti (Regional Language Promoter)

                  Till date, Dr. Dinesh Chamola (born in 1964) published more than 71 (Seventy one) books in Hindi and four books in Garhwali.
                     Garhwali language poetry collection Baugalu Matu’ by Chamola illustrates many facets of life in rural Garhwal.
              The poems of present collection assures that  Dr Chamola is keen observer of rural Garhwal including images of nature (rivulets, hills etc), religion-rituals, food habits, changing society, women of Garhwal, animals, seasons, alcoholism in hills, environment, death and identity, aspirations from Uttarakhand and the reality after getting Uttarakhand  etc.  The poet has sense of humor too.
 The 63 poems are of free verses and are created in normal short form.
                   The poet uses simple Garhwali symbols, phrases for creating images of Garhwal, life and philosophy. Dinesh uses figure of speeches for creating desirable flow in poems. The metaphors create energy.   Mostly, the poet does not surprise at the end of poem or stanza ending.
 63 poems illustrate various facets of Garhwal life.
The collection is valuable in Garhwali language literature development.

Poetry Collection- Bauglu Matu t
Poet- Dr. Dinesh Chamola ‘Shailesh’
Numbers of poems- 63
Pages 150
Publisher- Adish Prakashan, Abhivyakti, Garh Vihar, Mohkampur, Dehradun, Uttarakhand
Price-200/-



Copyright@ Bhishma Kukreti 27 /6/2014
Bhishma Kukreti, 2013, Angwal, Garhwali Kavita Puran (History of Garhwali Poetry) Dehradun, India 
Critical Review of Garhwali Literature to be continued…
Critical Review of Garhwali Poetry Collection to be continued…
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गढ़वाळि व्यंग्य शब्दकोष -भाग 2

संकलन (बटोळन्देर)  - भीष्म कुकरेती 


अंडा -खुजनेर वैज्ञानिकुं मुसीबत बल ब्वै पैल कि बेटि पैल ?
अंङैल (जैक पेट मा अन्डा ह्वावन )- सरकारी नौकरी 
अंतक्रिया , अंत्येष्टि -जखमा लोग रिलैक्स महसूस करदन या रिलैक्स हुणों आंदन। 
अंतरिख , अंतरिक्ष - मंहगाईक  गंतव्य स्थान।
अक्रिय -सरकारी फ़ाइल 
अकल -ज्वा असल समय पर घास चरणों जांदी। ज्वा भैंस से छुटि च।  
अकलमंद  - ड्यार अयुं मेमान तैं भगाणम उस्ताद, दल बदलिक बि दलबदल कानून तैं चुषणा दिखाण वाळ। 
अखरा , झूठा -वकील या  गवाह कु एक मुख्य अवतार । 
उऋण , ऋणमुक्त - सरकारी बैंक से ऋण लीण वाळ. 
अखंड -लालकृष्ण आडवाणी की प्रधानमंत्री बणनै चाहत। 
अगम (जख क्वी नि जै सौक )  -सरकारी कमीसन रिपोर्ट 
अंछेरी, अप्सरा  -जैं से हरेक बुबा दोस्ति करण चांदो पर कबि नि चांदो कि वैंक नौनु पर वींक  छोप पड़ो। 
अतिमैथुन ,अत्याधिक  स्त्री प्रसंग - नारायण दत्त तिवारी।
अतिरंजना - अच्छे दिन आएंगे। 
अतिलंघन (लम्बो उपवास ) - जु अन्ना हजारे बस कु बि नीं  च 
अधिकारी -कर्तव्य बिमुखी , अधिकार मुखी अर अंडर दि टेबल हाथ पसर्या 
अर्थहीन - लोकसभा -राजयसभा मा बहस कुँ इक नाम
अल्पसंख्यक - रिजर्वेसन /आरक्षण का आशा रखण वाळ



व्यंग्य शब्दकोश जारी रहेगा ……।


Copyright@ Bhishma Kukreti 30 /6/2014 

Thursday, June 26, 2014

Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays

Characteristics of Garhwali Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays part -181      
Classical Rag Ragini, Tal, Bol, Music Beats, Music Notations or Music Scripts in Garhwali Folk Songs and Folk Music part -11 

    गढ़वाली लोक गीत संगीत (गढ़वाली लोक नाटकों में तालराग रागिनी-11
                             
                     Bhishma Kukreti (Folk Literature Research Scholar

                   In Garhwal, Kumaon and Haridwar, Damaru /Damru/Daunru is played in religious events as Ghadela, Saheli etc. Jagri plays Damaru/Damru. Damru is played with bronze Thali.
.
  Damaru/Damru has three Fundamental Bol/Taal or rhythm- Dain, Dip, Di and rarely Ghurr.
  Following are a few Bol/Taal/Rhythm/beats of Damaru/Damru-

                     Char Matraon ki Chalti Chal Music Taal/Bol in Damaru/Damru Playing

Dain dain   didip di
Or Ghurr dain i  didip di


                         डमरू /डौंर के ताल /बोल में चार मात्राओं की चलती चाल 
डेंइ डेंइ डिडिप   ड़ि
अथवा
घुर्र डेंइ डिडिप   ड़ि

                Adyali Yukt Music Taal/Bol in Damaru/Damru Playing

 Di-p dip di dip . di  s p dip di . deni  deni di dip di .
                       डमरू /डौंर के ताल /बोल में अड़यलि युक्त
डि - प डिप ड़ि डिप डि  डिप ड़ि । डैइ डैइ डि डिप ड़ि 


                       Chauras ki Uthaun Music Taal/Bol in Damaru/Damru Playing
 Dain dip di , dani dip di ..
                             डमरू /डौंर के ताल /बोल में चौरास की उठौंण 

 डेंइ डिप डि डेंइ डिप ड़ि। 
      Chauras ka Nirbandh Chhand  Music Taal/Bol in Damaru/Damru Playing
 Dain dain dip dain dip , dain dain dain dain , dip dip  s s s
                        डमरू /डौंर के ताल /बोल में चौरास का निर्बंध छंद 

डैञ डैञ डिप ,डैञ डैञ डिप डैञ डैञ डैञ डैञ डिप डिप s s s s
                    Aadi Chal Music Taal/Bol in Damaru/Damru Playing
 Ddain i – daini  dip di .
                      डमरू /डौंर के ताल /बोल में आड़ी चाल 
डैञ इ -डेंइ डिप ड़ि। 

                             Khadi Chal Music Taal/Bol in Damaru/Damru Playing
 Dain s dain dip dn I .. di s s p dip dip dip . dain s dip dn in ..
                           डमरू /डौंर के ताल /बोल में खड़ी चाल

डैञs  डैञ डिप डं इं।। डि s s  डिप डिप डैञडैञ डिप डं इं।।   



** s = आधी अ  half a 
संदर्भ - डा शिवानंद नौटियाल गढ़वाल के लोकनृत्य -गीत

Copyright@ Bhishma Kukreti 26 /6/2014 for interpretation notes  
Contact ID -bckukreti@gmail.com
Characteristics of Garhwali Folk Drama, Community Dramas; Folk Theater/Rituals and Traditional to be continued in next chapter
                 References
1-Bharat Natyashastra
2-Steve Tillis, 1999, Rethinking Folk Drama
3-Roger Abrahams, 1972, Folk Dramas in Folklore and Folk life 
4-Tekla Domotor , Folk drama as defined in Folklore and Theatrical Research
5-Kathyrn Hansen, 1991, Grounds for Play: The Nautanki Theater of North India
6-Devi Lal Samar, Lokdharmi Pradarshankari Kalayen 
7-Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas part 1-12
8-Dr Shiva Nand Nautiyal, Garhwal ke Loknritya geet
9-Jeremy Montagu, 2007, Origins and Development of Musical Instruments
10-Gayle Kassing, 2007, History of Dance: An Interactive Arts Approach
11- Bhishma Kukreti, 2013, Garhwali Lok Natkon ke Mukhya Tatva va Charitra, Shailvani, Kotdwara
12- Bhishma Kukreti, 2007, Garhwali Lok Swangun ma rasa ar Bhav , Chithipatri
13-Manorama Sharma, Tribal Melodies of Himachal Pradesh: Gaddi Folk Music
14- Anoop Chandola, 1977, Folk Drumming in Himalaya: A Linguistic Approach to Music 
15- Jugal Kishor Petshali, 2002, Uttaranchal ke Lok Vadya
16- Jason Busniewski, Bagpiping in the Indian Himalaya
17- Ian Woodfield, 2000, Music of the Raj
18-Stefen Fiol, 2008, Constructing Regionalism: Discourses of Spirituality and Cultural Poverty in Music of Uttarakhand, North India
19- Andrew Alter, Mountainous Sound Spaces-Listening to History and Music in the Uttarakhand Himalayas 
20 Keshav Anuragi
21 Dayashankar Bhatt 
22- Glossary of Indian Classic Music
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Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Kumaon, Haridwar , Garhwal; Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Dehradun Garhwal, Himalaya; Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Juansar  Garhwal, Himalaya; Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Uttarkashi Garhwal, Himalaya; Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Tehri Garhwal, Himalaya; Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Rudraprayag Garhwal, Himalaya; Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Chamoli Garhwal, Himalaya; Taal/Bol/Music Beats/Rhythm of Damaru/Daunr used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Pauri Garhwal, Himalaya;

Dalund Huli Khilan, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Garhwal, Kumaon and Haridwar

Notes on Traditional Folk Games/Sports from Garhwal, Kumaon and Haridwar (Uttarakhand Folk Games) Part -24   

 Outdoor Traditional/Folk Games of Garhwal, Kumaon and Haridwar part- 15

                          Narration: Bhishma Kukreti (Folk Literature Research Scholar)
              Dalund Huli Khilan or Jhulan means that the tree swinging. Usually, children in rural Uttarakhand swing on tree branch without aid of rope and rope-swing seat. Many times, just the ropes are used for tree swinging. Many times, the strong vine/tendril of Bakrya or Malu tree or rarely aerial roots of banyan tree are used for swinging. Tree Swinging seat is sued in plains more than hills.
          Most of the time, the tree swinging is non competitive game.  

Copyright@ Bhishma Kukreti 25 /6/2014
      References

Bhishma Kukreti, 2010, Folk Games of Uttarakhand, merapahad.com
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Dalam Jhulan/ Huli Khilan/ Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Garhwal, Kumaon and Haridwar; Dalam Jhulan, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Haridwar, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan/Huli Khilan/, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Champawat Kumaon, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Bageshwar Kumaon, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Almora Kumaon, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan/ Huli Khilan/, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Nainital Kumaon, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan/ Huli Khilan/, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Dehradun Garhwal, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan/ Huli Khilan/, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Pauri Garhwal, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan/ Huli Khilan/, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Chamoli Garhwal, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan/ Huli Khilan/, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan/ Huli Khilan/, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Tehri Garhwal, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia; Dalund Jhulan/ Huli Khilan/, Tree Swinging: a Traditional Folk Games/Sports from Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand, Himalaya, North India, South Asia;

एक हैंक गढ़वाळ तैं तिरैल (उपेक्षा ) त सवादी साहित्य कखन आलु ?

विचार -बिमर्श       -भीष्म कुकरेती      
                     
(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

 चाहे व्याकरण -भाषा विद डा अचलानन्द जखमोला , स्वर सम्राट नरेंद्र सिंह नेगी , लोक साहित्यौ जणगरु चन्द्र सिंह राही , गढ़वाली साहित्य तैं नई सोच दीण वाळ प्रेम लाल भट्ट , या आज का नामी गिरामी साहित्यकार सब्युं एकी राय च बल आज गढ़वाली भाषा मा अधिक छपेणु च किंतु वो साहित्य नि मिलणु च जांकि उम्मीद छे , आस छे।  अधिकतर विश्लेषकुं बुलण च बल गढ़वाली साहित्य मा डिगचा ना तौल्युं -डेगुं  हिसाब से साहित्य रच्याणु च पर बेसवादी साहित्य दिखणो मिलणु च।  अधिकतर चिंतकुं चिंता च बल जादातर अचकालौ नवाड़ी साहित्यकार वुं ही विषयुं पर कलम घिसै करणा छन जौं विषयुं पर पुरण साहित्यकारों कलम घिसेक खुंडी ह्वे गे छे।  याने अधिकाँशतः  आजौ साहित्य शब्द,  भावनौं  , कवित्व , संवेदनशीलता , प्रभाव कु हिसाब से बिखळण्या साहित्य च। अधिकतर आजौ साहित्य मा बस्याण आदि। आजौ गढ़वाळि साहित्य मा तत्व -सार , उत्तेजना , ऊर्जा , उत्साह त सफाचट हर्ची गे।  गढ़वळि साहित्य मा ठहराव आयुं च।  रचनाकार जाम हुयां छन।  
 साहित्य शब्दों खेल च , कविता शब्दों जादू च , कविता प्रतीकों प्रयोग च , कथा शब्दों की हेराफेरी च, शैली की विभिन्नता -विशेषता साहित्यौ  आधार च पर आज की कविता पढिल्या तो नया ढंग का प्रतीक मिलदा ही नि छन।  बस सैकड़ों साल से घिस्यां -पिट्यां -पितयां प्रतीकों से हम काम चलाणा छंवां।  आज  ब्याळो समाज अर आजौ समाज मा  180 डिग्री को अंतर ऐ गे किन्तु गढ़वाळी कवितौं या गद्य  मा इन लगद नया प्रतीकों को अकाळ पोड़ी गे हो धौं। 
 जख तक गद्य को सवाल च आज गढ़वाली मा सम्पादकीय , तथाकथित व्यंग्य , प्रशंसा युक्त आलोचना ही अधिक च अर कबि कब्यार कथा दिखेंदन , नाटकबाज बि कमि छन।  याने गढ़वाळी गद्य कु त कुहाल च अर यु गद्य बि सुमरिण लैक कमि हूंद। कविता ही गढ़वळि मा अधिक रच्याणी छन। 
आखिर किलै इन बुल्याणु च कि गढ़वळि साहित्य मा पौण बिंडी छन पर वा रौनक नी च जांक हम उम्मीद मा बैठ्याँ छंवां। गळयुं मा लैम्प पोस्ट बिंडी लग्यां छन किंतु लैम्प पोस्टों पर अधिकतर बल्ब ज़ीरो वाट का बल्ब छन।
साहित्य मा  विबिधता विषय अर शब्द लांदन किन्तु हमर गढ़वळि साहित्य चार पांच विषयुं पर अटक्युं च -पलायन , उजड़दा कूड़ , विकास नि हूण , भ्रष्टाचार , गाउँ मा कृषि को खात्मा, गांव की याद । 
गढ़वळी साहित्य मा बिखळाण आणो  एक कारण च हमारा शहरी (प्रवासी ) अर ग्रामीण द्वी तरां का साहित्यकार केवल ग्रामीण गढ़वाळ तै ही गढ़वाळ  मानिक बैठ्याँ छन।  जब कि असलियत या च कि 60 -70 प्रतिशत गढ़वाल प्रवास्युं गढ़वाळ च। 
आज का गढ़वळि साहित्यकार ये 60 -70 प्रतिशत गढ़वाल की सफाचट अवहेलना करणु च।  असली गढ़वाळ तै हम तिराणा छंवां।  गढ़वाळि साहित्यकार अधिसंख्यक गढ़वळयुं विषय नि उठाणु च। 
एक समौ छौ जब कन्हयालाल डंडरियाल , जयानंद खुकसाल 'बौळया', ललित मोहन थपलियाल, अबोध बंधु बहुगुणा सरीखा साहित्यकारोंन प्रवासी गढ़वाळयुं विषय बड़ा संवेदनशीलता से उठाई अर गढ़वाली साहित्य मा ताजगी  लाइ।   किंतु अब जब प्रवासस्युं संख्या रहवास्युं से अधिक ह्वे   गे तो गढ़वाळि साहित्य मा बि प्रवास्युं विषय उथगा ही जोरों से आण चयेणु छौ।  प्रवास्युं रहन सहन , प्रवास्युं दिक्क्त ,प्रवास्युं  आनंद , प्रवास्युं सामजिक स्थिति , प्रवास्युं स्थानीय राजनीती मा  पैठ की सफलता  बिफलता , शादी -ब्यौ की बात , नौकरी को टेंसन , प्रवास्युं संस्था, भाषा समस्या , विदेश मा बसण से प्रवास्युं स्थिति मा बदलाव आदि हजारों विषय छन जो सामयिक त छैं इ छन वांक अलावा साहित्य तैं ताजगी बि दीण मा सफल छन।  प्रवास्युं विषय उठैक साहित्यकार गढ़वळी  साहित्य मा ताजगी तो लाला ही दगड़ मा नया नया प्रतीक अफिक आल।  चंडीगढ़ का प्रवास्युं विषय मुंबई का प्रवास्युं से अलग हूण से विषय भिन्नता अर विषय विशेषता तो अफिक ऐ जालि कि ना। 
मि एक उदाहरण दीण चांदु।  पाराशर गौड़ जी कनाडा प्रवासी छन।  गौड़ जीका  भाई बंद का परिवार बि कनाडा मा छन अर ऊनि उत्तरी अमेरिका मा सैकड़ों उत्तराखंडी परिवार छन किन्तु मि तैं आज तक पराशर जीक एक बि कविता , लघु व्यंग्य -कथा उत्तरी अमेरिका प्रवासी विषयक बांचणो नि मील।  यदि पराशर जी उत्तरी अमेरिकी प्रवास्युं विषय अपण साहित्य मा लाणो कोशिश करदा तो अवश्य ही वो साहित्य ताजा विषयी हूंद , वे साहित्य मा कनाडा आदि को नया प्रतीक अफिक आंद तो अवश्य ही पाठकों की रूचि गढवळि साहित्य पढ़ण मा बढ़दी।  यदि जापान मा रौण वाळ प्रभात सेमवाल जापान मा प्रवास्युं स्थिति पर कलम चलांद तो एक अलग ही स्वाद आंद या जिठुड़ी मिडल ईस्ट का प्रवास्युं पर कविता गंठ्यांदा तो गढवळि तैं नया आभूषण मिलदा। 
इनि दिल्ली का दिनेश ध्यानी , बालकृष्ण भट्ट, जगमोहन जयाड़ा कु च।  मीन आज तक युंक कै बि साहित्य मा दिल्ली का प्रवास्युं संबंधित साहित्य नि देखि।  हर समय तू होली बीरा उची निसि डाँड्यूं मा घसियार्युं भेष जन खदेड़ कविता से काम नि चल सकद।  दिल्ली का प्रवास्युं अलग परिवेश , अलग आकांक्षाएं बि त छन किलै दिल्ली का साहित्यकार दिल्ली  प्रवासी केंद्रित साहित्य रचना नि करणा छन ?
 म्यार मानण च कि जब तक हम लिख्वार प्रवास्युं तैं केंद्रित विषय नि लौला गढवळि साहित्य मा एक तरां को ठहराव रालो।  आज गढ़वळि साहित्य तैं फ्रेशनेस की आवश्यकता च तो प्रवासी विषय अवश्य ही ताजगी द्यालो।  



Copyright@  Bhishma Kukreti  26 /6/2014   

Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays

Characteristics of Garhwali Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays part -180     
Classical Rag Ragini, Tal, Music Beats, Music Notes or Music Scripts in Garhwali Folk Songs and Folk Music part -10 

    गढ़वाली लोक गीत संगीत (गढ़वाली लोक नाटकों में तालराग रागिनी-10
                             
                     Bhishma Kukreti (Folk Literature Research Scholar

 Hudki or a type of drum is used in Ghadela religious rituals and in folk songs specially love folk songs –dances in Garhwal and Kumaon. The Hudki is used with Thali in Ghadela and in other songs, Hudki is used solo.
 There are many Taal or Music Beats/Bol of Hudki play. Following a few Taal/Music beats used in Hudki in Garhwal, Kumaon and Haridwar.
         गढ़वाली लोक वाद्य -संगीत  में हुड़की के ताल 

हुड़की का उपयोग जागरों व श्रृंगारिक लोक गीतों में होता है।  जागरों में हुड़की के साथ कांसे की थाली भी बजाई जाती है। श्रृंगारिक गीतों में हुड़की अकेली बजाई जाती है।
           Fundamentals of Taal /Bol of Hudki Playing

Dahun , d , k dhaun
             हुड़की के मौलिक बोल
              दहुँ द क्  धौं
Dhun,d , k , dhaun
 सामन्यतया हुडकी संगीत वादन में सभी ताल प्रस्तुत किये जाते हैं. कुछ विशेष ताल निम्न हैं –
                        ‘Khadi Chal’ Taal /Bol of Hudki Playing
Dahuk dhaun  dahun dk dhaun

                      हुड़की वादन में 'खड़ी चालताल

   दहुंक धौं  । दहुँ  दक्  धौं
                ‘Chalti Chal’ in Taal /Bol of Hudki Playing

Dhaun- dk –k – d hun  d dn hun d  hun k dhaun -
                हुड़की वादन में 'चलती  चालताल
धौं -दक् -। क - द  हुँ । द दं हुँ द । हुँ क धौं –

                   ‘Langdi Chal ‘Taal /Bol of Hudki Playing

Dahun – k  d hun  dhaun - 

                  
हुड़की वादन में 'लंगड़ी  चालताल
 
दहुँ - क् । द हुँ । धौं -।
        Chauras   Taal /Bol of Hudki Playing

Dhaun -  d d hun 
          हुड़की वादन में 'चौरास  चालताल

  धौं -।    द हुँ 
            Aadi Chal ‘  Taal /Bol of Hudki Playing
Dhaun dhaun dahun - dhaun dhaun  d hun  kd hun -
              हुड़की  वादन में 'आड़ी  चालताल

 धौं  धौं  दहुँ  -। धौं धौं । द हुँ । क्द हुँ -। 

** संदर्भ - डा शिवानंद नौटियाल, गढ़वाल के लोकनृत्य -गीत page 386-387
Copyright@ Bhishma Kukreti 25 /6/2014 for interpretation notes  
Contact ID -bckukreti@gmail.com
Characteristics of Garhwali Folk Drama, Community Dramas; Folk Theater/Rituals and Traditional to be continued in next chapter
                 References
1-Bharat Natyashastra
2-Steve Tillis, 1999, Rethinking Folk Drama
3-Roger Abrahams, 1972, Folk Dramas in Folklore and Folk life 
4-Tekla Domotor , Folk drama as defined in Folklore and Theatrical Research
5-Kathyrn Hansen, 1991, Grounds for Play: The Nautanki Theater of North India
6-Devi Lal Samar, Lokdharmi Pradarshankari Kalayen 
7-Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas part 1-12
8-Dr Shiva Nand Nautiyal, Garhwal ke Loknritya geet
9-Jeremy Montagu, 2007, Origins and Development of Musical Instruments
10-Gayle Kassing, 2007, History of Dance: An Interactive Arts Approach
11- Bhishma Kukreti, 2013, Garhwali Lok Natkon ke Mukhya Tatva va Charitra, Shailvani, Kotdwara
12- Bhishma Kukreti, 2007, Garhwali Lok Swangun ma rasa ar Bhav , Chithipatri
13-Manorama Sharma, Tribal Melodies of Himachal Pradesh: Gaddi Folk Music
14- Anoop Chandola, 1977, Folk Drumming in Himalaya: A Linguistic Approach to Music 
15- Jugal Kishor Petshali, 2002, Uttaranchal ke Lok Vadya
16- Jason Busniewski, Bagpiping in the Indian Himalaya
17- Ian Woodfield, 2000, Music of the Raj
18-Stefen Fiol, 2008, Constructing Regionalism: Discourses of Spirituality and Cultural Poverty in Music of Uttarakhand, North India
19- Andrew Alter, Mountainous Sound Spaces-Listening to History and Music in the Uttarakhand Himalayas 
20 Keshav Anuragi
21 Dayashankar Bhatt 
22- Glossary of Indian Classic Music
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Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Pauri Garhwal; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Chamoli Garhwal; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Rudraprayag Garhwal; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Tehri Garhwal; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Uttarkashi Garhwal; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Dehradun Garhwal; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Garhwal, Uttarakhand ; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Garhwal, Himalaya; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Garhwal, North India; Taal/ Music Beats of Hudki Playing used in Garhwali Folk Songs of Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays from Garhwal, South Asia