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Monday, March 19, 2018

"बाड़ी"

मीतैं पीड़ा हूँद, मी परैं  दांत नी पुड़्यांण,
बस जीब (जीभ) मा धरण अर घऽल्ल घ्वुऽलण।
आराम से रै, मितैं पच्च नी पच्चकाणू ।
छ्वटी सी ढिन्ढु बणै, बस दाऽल मा रऽलाण।
अहा उड़द राज्मा ह्वाअ,
अर गैथौं फाणु, अजी क्या ब्वन वाह्अ वाह्अ।
बगछट्ट बणी नाची जौं, रंग ढंग देखी कबर्यौं ज्यू कादु।
पर ह्याँ मी कैकी थाली मा, दुऽलुणु नी कन च्हांदु।
मेरू दिल त नौणी छ जी, मी देखी नी डन्न ।
अर दै  दुश्मनौं  अग्नैं मेरी  मजाक  नी कन्न।
हे! इनै औदी रै बड़ू आदिमा....
भलौ म्यरा समणी बैठी त्वैतैं शरम आणी ह्वैली।
पण बुबा त्यरा पितृ द्यव्तौं आँखी,
अजी बी वै लोक मा बी मितैंई खुज्याणी ह्वैली।
आँ रै आख्यौं सी याद यै,
अरै मीकुणै बिस्तरा न जरा फुंडै सी लगाण।
चौमीन, पीज्जा मोमो तैं मेरू समणी नी सुलांण
ऊँक क्या छ, रातभर निरभग्यूँन खँसुणू राण।
अर खप्प खप्प कैरि तैं मेरी नींद बी हरचाण ।
स्वच्यूँ छ मेरू, कैदिन तौंकु मिन ब्वक्चा बणाण।
चप्प कै सालौं कु खग्वठौं बैठ जाण।
झंगोरू भैजी देखी लियाँ तैदिन तौंथै तब कैल नी बचाण।
अरे छोड़ा यार तौंतैं,बस परदेश मा हम्तैं न भलु कै रयेणु च्हेणू,
साल छै मैना मा पाड़ौ चक्कर लगायुँ च्हेणू।
मैत्यौं का सारा मा बल बैठीं रैंदिन,
कौणी,ऊँमी,च्यूड़ा बुखणा,
कैबर्यौं खैर खबर ऊंकी बी दिदौं पूछी ल्हीण च्हेणू।
स्वरचित/**सुनील भट्ट**
14/09/17

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