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Wednesday, June 8, 2016

गढ़वाली की उत्कृष्ट कविताओं में से एक कविता

गढ़वाली की उत्कृष्ट कविताओं में से एक कविता 

श्री प्रेम लाल भट्ट (देवप्रयाग , 1931 ) हिंदी के जाने माने  कृतिकार है. गढ़वाली में भी प्रेम लाल भट जी का योगदान प्रशंसनीय है।  गढ़वाली भाषा में दो कविता संग्रह और एक महाकव्य के रचयिता प्रेम लाल भट्ट की निम्न कविता पंक्तियाँ गढ़वाली काव्य संसार की घरोहर  हैं -

इन रुत रुत मी ह्वे गयों / जनु मेरु दुश्मन भी न हो।  
मी तैं उर्ख्यळा  की घाण सी /क्वी धोळि गै क्वी कुटि गै 
फंड फूकि द्यों ये समाज न मि फुकीं चिलम को तमाखू सी। 
कटण दे नाक या स्वेण हो , यो निसाब ही म्यरा साथ रै 
( उमाळ काव्य संग्रह )  

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