Home

Friday, July 31, 2015

म्यारु मुलक (सन 1935 -50 का बीचक कविता )

रचना -- कमल साहित्यालंकार (हरुली , तळाइं , पौड़ी गढ़वाल, 1909 -स्वर्गीय ) 
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती 

 
जनु रम्यळु म्यारु मुलक इनु त कैको नी च 
ज्ञान गुरु ब्वंदी दुनिया का बीच। 
हथगुळि मा ब्रह्मकमल झमकदो कैलास 
रूद्र महादेव जख देवतौं का बास 
गंगा जमुना मा मुक्ति घोळिका छुळी च।
            हिंवाळी रौल्यूं को पाणी दूध जनो हूंद 
            डांडिऊँ की चुफळि  मथि सर्ग थैं छूंद 
            चंदन तिलक मनींद गंगा जीको कीच।
ऋतु  ऋतु  को फेरो यख खिलदा पारिजात 
सूना का छै दिन हिंवळया चांदी कि छै रात 
कर्म कळा रैंद यख अंगुळयूँ का बीच।
बावन तीरथ यख ऋषि मुन्यों का बास 
हरर गंगा सरर जमुना ब्वगद आस पास 
मुक्ति मिली जांद जैका भाग मा बदीं  च।

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments