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Wednesday, July 29, 2015
जै जै स्वदेशी ! जै जै स्वदेशी ! (1928 की कविता )
रचना :
सदानंद कुकरेती
(ग्वील , ढांगू , 1886-1937 )
इंटरनेट प्रस्तुति -
भीष्म कुकरेती
हे देवि दे भाव तु मै स्वदेशी , हे देवि दे भेख तु मैं स्वदेशी
हे देवि दे भाव तु मै स्वदेशी , लाणों लगौणों सवि दे स्वदेशी।
सपूत तेरो जु सदा स्वदेशी , निभाव पूरो ब्रत जो स्वदेशी
निशेध भाव करि जो विदेशी , बिजै मनौला करि जै स्वदेशी।
प्राणीक प्राणू कि लगै जु बाजी , जै जो विदेशों कर साज साजी
गावो जु ध्यानो नित जै स्वदेशी ,
जै जै स्वदेशी ! जै जै स्वदेशी।
या देह निश्चै छुटली ही भाई , ह्वै जीर्ण कुत्तादिक की सि भाई
पूजी सदा पूज्य कि माँ स्वदेशी गाई बजाई
जै जै स्वदेशी।
सो यज्ञ मा आत्म बलि को देइ , द्यो त्यागी दासत्व प्रभुत्व लेई
गावो सपूतो तुम जै स्वदेशी ,
जै जै स्वदेशी,
जै जै स्वदेशी।
सेवा स्वदेशी कि छ धर्म्म भाई , यो ही सपूत जु गाई बताई
देई इनो ही तु सपूत माई ,
जै जै स्वदेशी ! जै जै स्वदेशी।
छै आदि शक्ति कि इबारे माई , जो भाव मैतूं अवतार माई
जै दैणा ह्वीं श्री स्वसुराज दाई , हे माई !गौं तेरि मि जै सदाई।
('गढ़वाली' में प्रकाशित , 8 /9 /1928 )
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