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Tuesday, June 30, 2015

पातञ्जलि योग संहिता -1

गढ़वाली अनुवाद - भीष्म कुकरेती 
[ आजकल योग की बहुत चर्चा है जो आवश्यक भी थी।  किन्तु आम लोग योग को केवल आसन तक सीमित समझते हैं।  जबकि योग एक जीवन शैली है।  पातञ्जली ने योग संहिता में योग का सारा निचोड़ दिया है याने सूत्र दिए हैं।  इन सूत्रों का नौवाड करते मुझे अति प्रसन्नता है। ] 
         अथ योगानुशासनम् -१ 
गढ़वाली - अब योग की पवाण -
        योगश्चित्तवृत्तनिरोधः -२ 
योग चित्त की वृतियां (अस्थिरता ) रुकणो नाम च।
            तदा द्रष्टुः स्वरुपावस्थानम् -३ 
तब दृष्टि की स्वरूप मा अवस्थिति हूंदी याने जब चित्त वृतिहीन हूंद तब आत्म दर्शन हूंद।
               वृत्तिसारूप्यमितरत्र - ४ 
वृति की समानरूपता भिन्न अवस्था मा हूंद
  वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टाक्लिष्टा -५ 
 वृति /अस्थिरता पांच तरां की हूंदी अर कष्ठदायक दाई हूंदन  
प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृत्यः -६ 
 प्रमाण , विपर्यय/ विरोधी बात  , अवचेतन मन /स्वप्न , स्मृति से चित्त (मन , वृद्धि , अहम ) मा अस्थिरता आंदि

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