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Thursday, March 14, 2013

सुबह का इन्तजार


आज सुबह जब उठा तो सोचा

एक सुन्दर सी गजल लिखूंगा

किसी परी सी खुबसुरत हसीना को

...
अपने ख्यालों के लिबाज से सजाऊंगा

मगर क्या पता था के आज की सुबह भी

बीती रात की कालिख साथ लेकर आएगी

जिसे सुनकर मै सृंगार रस तो भुलजाऊंगा

और करुण रस के साथ रोष के अथाह सागर में डूबजाऊंगा

और हैं कितने असहाय व् निर्बल हम

क्या पता था के मै इस गिलानी में डूब जाऊंगा

और फेर सृंगार रस की जगह कोई करुण रस से

भरी कविता का अवलोकन कर जाऊंगा

अबतो सोचता हूँ मै बस यही के

आएगी कब वह शुभ सुबह

जब मै अपनी सृंगार रस की गजल पूरी कर पाउँगा ...........
देवेश बहुगुणा

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