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Sunday, October 7, 2012

*तिन क्य जणण मेरि पीड़

एक गढ़वाळी व्यंग्य कविता-

      कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

तिन क्य जणण मेरि पीड़ 
मी पर पैलि  क्य-क्य बीत 
तू रिंगणू छै देळी-देळी आज 
त्वे चैंद सिर्फ अपणी जीत 

मेरि त कूड़ी पुंगड़ी बोगीगे
ख़तम ह्वैगे सब घर परिवार
तू उड़णू छै सर्र इनै सर्र फुनै
त्यारा  त क्य मजा हुयाँ छें

म्यारा खुटों मा त रोज 
इनी हूणी रैंद खांदी कटदी 
दिन रात काम का बोझ से 
थक्युं पल़ेख्युं छौं 

तू भागवान खै पेकि 
दणसट लग्युं छै जुगार 
मि अपण गुजर बसर का 
जुगाड़ मा लग्युं छौं 

मै तै भौत खैरि खाण पड़द
एक एक बीं टिपण मा
तू इनु खर्च करदी जनु कि
त्यारा खीसा चिर्याँ ह्वीं 

कुछ बि पाण त मि तै कन पड़द
अपणी हड्ग्युं कि रसि
त्यारू त क्या च 
फ़ोकट मा काम बणि जांद

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

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