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Sunday, August 5, 2012

ब्याळि स्वीणा मा बाघ द्याख मिन


[भीष्म कुकरेती कि गढ़वळि पद्य, गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली गीत, गढ़वाली संगीत, उत्तराखंडी पद्य, उत्तराखंडी गीत, उत्तराखंडी कविताएँ लेखमाला से ] 
 
मदन डुकलाण कि आधुनिक कविता

घाम मा बळु सी तपद द्याख मिन
नयारी छाल वो तिसाला द्याख मिन
द्वार मोर ढेकि दियां सींदी बगत

ब्याळि स्वीणा मा बाघ द्याख मिन
घुमणु गै छौ गौं , गर्मी मा पण
चौछ्वड़ी बणौ मा आग द्याख मिन
भैरा का सुकिला छन जो
वूंकी जिकुड़ी मा दाग द्याख मिन
हरची गेन सुर अर ताल बैठिगे
दुन्या को बिग द्यूं राग द्याख मिन
 
सर्वाधिकार @ मदन डुकलाण देहरादून  
भीष्म कुकरेती कि गढ़वळि पद्य, गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली गीत, गढ़वाली संगीत, उत्तराखंडी पद्य, उत्तराखंडी गीत, उत्तराखंडी कविताएँ लेखमाला जारी ...

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