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Wednesday, June 27, 2012

मदन डुकलाण की कुछ गढवळि गजल (गंजेळि कविता)

मदन डुकलाण की कुछ गढवळि गजल (गंजेळि कविता)
 
[ श्री राजेन्द्र धष्माना का मानना है कि गढवाली में गजलों को गंजेळी कविता कहना उचित है. गंज्यळ में भी ऊपरी भाग आवश्यक है किन्तु उसका अनाज कूटने में  प्रयोग नही होता. मध्य भाग से ही जोर या शक्ति लगाई जाती है और निम्न छोर की भाग की चोट से अनाज कुटता है . उसी तरह गजल में पहला पद आवश्यक है किन्तु चोट या संवेदना अंतिम पद से होती है जब कि मध्य पद दोनों मों मिलाने में आवश्यक है . वहु प्रतिभा संपन (कविता, नाटक, फिल्म लेखन- एक्टिंग, सामाजिक कार्यकलाप , संपादन)   
मदन डुकलाण की कुछ गढवळि गजल पढ़ कर आप भी धष्माना जी से सहमत होंगे की गजल को गंजेळी कविता /गंजेळी गीत कहना उचित है]
 
 कुछ भितरों लोग कळेजी छौंकणा छन,  
बाकी चौछ्वड़ी पेट सबका धौंकणा छन I
 
नी च क्वी गैल्या मेरी, मंजिल बि नी च,
खुट्टा छन  कि आस मा ये दौड़ना छन I
 
ब्याळि  उरड़ी आई, फ्यूंळी सबि झैड़  गेन
किनगौड़ा  छन आज बि हंसणा छन I
 
जौं सिखै छौ ब्याळि ,  हमना ब्वन-बच्याणु  ,
आज गिच्चा वो इ हम पर भौंकणा छन I  
 
न त क्वी उमेद, न आशा रईं च
जिन्दगी दुखदो ठस्वलणा -फोड़णा छन I

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