खाणा भी छीं,
पीणा भी छीं ,
कुरचणा भी छीं,
अटयरणा भी छीं,
हल्याणा भी छीं,
फुकणा भी छीं,
लठीयाणा भी छीं,
चटेलणा भी छीं ,
कटाणा भी छीं ,
लुटाणा भी छीं ,
जू ब्याली तक लगान्दा छाई ग्वाई,पंचेती का चुनोव मा ,
पहाड़ मा आज राजनीति की पतंग,बथौं मा व्ही उड़ाणा भी छीं,
जौंल लगाणु छाई मलहम पिसूडों फर,
व्ही उन्थेय आज डमाणा भी छीं,
ख्वाला आँखा जरा देखा धौं, कु छीं अपडा इन्ना
जू नीलाम कैकी पहाड़ थेय बिकाणा भी छीं
जू नीलाम कैकी पहाड़ थेय बिकाणा भी छीं
जू नीलाम कैकी पहाड़ थेय बिकाणा भी छीं
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
Source: म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित
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