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Tuesday, October 19, 2010

"त्वे आण प्वाडलू

रंगली बसंत का रंग उडी जाण से पहली
फ्योंली और बुरांश का मुरझाण से पहली
रुमझुम बरखा का रुम्झुमाण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

बस्गाल्य्या गद्नियुं का रौलियाँण से पहली
डालीयूँ मा चखुलियुं का च्खुलियाँण से पहली
फूलों फर भोंरा - पोतलियूं का मंडराण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

उलैरय्या होली का हुल्करा कक्खी ख्वै जाण से पहली
दम्कद्दा भेलौं का बग्वाल मा बुझ जाण से पहली
हिन्सोला ,किन्गोड़ा और डांडीयों मा काफुल प़क जाण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

छुंयाल धारा- पंदेरोउन का बिस्गान से पहली
गीतांग ग्वेर्रऊ का गीत छलेएजाण से पहली
बांझी पुंगडीयों का डीश, खुदेड घ्गुगती का घुराण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

मालू , गुईराल , पयें और कुलैं बाटू देखेंण लग्गयाँ
और धई जन सी लगाण लग्गयाँ त्वे
खुदेड आग मा तेरी , उन्हका फुक्के जआण से पहली
त्वे आण प्वाडलू

आज चली जा कतागा भी दूर मी से किल्लेय भी
मेरु लाटा ! पर कभी मी से मुख ना लुक्केय
पर जब भी त्वे मेरी खुद लागली ,त्वे मेरी सौं
मुंड उठा की ,छाती ठोक्की की और हत्थ जोड़ी की
त्वे आण प्वाडलू
त्वे आण प्वाडलू
त्वे आण प्वाडलू

"मातृभूमि उत्तराखंड की वहीं धरती थेय सादर समर्पित जू आज भी आस लग्गे की निरंतर हमरी कुशल-कामना कन्नी चा सिर्फ इंही आस का दगडी की वहु कब्भी ता आला बोडि की अपणी माँ का और अपणा गौं का ध्वार "

रचनाकार: गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत :म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " एवं "पहाड़ी फोरम " मा पूर्व - प्रकाशित

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