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Wednesday, June 2, 2010

संस्कार

माँ बाप सी मिल्दा छन,
जू ऊन्कू फर्ज होन्दु,
औलाद तैं देण कू,
औलाद ऊँ फर अमल करदि,
भला अर बुरा कू ख्याल रखिक,
जीवन रुपी पथ मा अग्नै बढदि.

अपणी बोली भाषा कू प्रसार,
औलाद तक जरूर कर्युं चैन्दु,
यू भी "संस्कार" कू अंग छ,
फिर संस्कृति भि कायम रलि,
हमारा प्यारा उत्तराखंड की.

ख्याल रख्यन, कखि यनु नि हो,
हमारा बाल बच्चा बोल्दा नि छन,
पर थोड़ा-थोड़ा बींगते जरूर हैं,
अगर यनु छ दिदा, भुलौं,सोचा!
ये बल किसका कड़वा कसूर है?

आज का जमाना मा,
अपणी बोली भाषा सी ज्यादा,
अंग्रेजी सब्यौं कू मन लुभौन्दि,
सोचा! भाषा कू तिरस्कार छ,
जू गढ़वाळि, कुमाऊनी नि औन्दि.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित-"संस्कार" १८.५.२०१०)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल.
(मेरा पहाड़, यंग उत्तराखंड,हिमालय गौरव उत्तराखण्ड पर प्रकाशित)

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