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Friday, April 2, 2010

उड़ि जा रे मन

तू पंछी बणिक, ऊँ डाडंयौं का पोर,
जख डाळ्यौं मा घुघती, होलि घुराणि,
कखि होलु बासणु चकोर.

भौंरा रिटणा होला फूलूमा,
हिंसर किनगोड़ की दाणी,
गाड डगदन्यौं मा बगणु होलु,
छोया ढुंग्यौं कू पाणी.

कखि होलि सजिं बैखु की कछड़ी,
होला ऊ बैठिक छ्वीं लगाणा,
गौं का बाटौं फुन्ड होला हिटणा,
ज्वान अर दाना सयाणा.

कखि होला बजणा ढोल दमाऊँ,
कखि होलु लगणु घड्याळु,
होलु क्वी डगड़्या देवतों का ऎथर,
देणु घरया घ्यू कू धुपाणु.

बुबा जी होला तिबारी मा बैठ्याँ,
कुड़ कुड़ ह्वक्का पेणा,
सैडा खोळा का भै बन्ध होला,
ओंगणा हबरि सेणा.

हैंसणि होलि जोन द्योरा मा,
डांडी कांठी होयिं जुन्याळि,
टिट्यौं पोथ्लु होलु टिट्याणु,
बोडा बोन्नु मैन सुण्यालि.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, प्रकाशित २७.३.२००३ )
दूरभास: ०९८६८७९५१८७
E-mail: j_jayara@yahoo.com

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